सुब्रत राय: नवें दिन उगा फैसलाकुन सूरज, जयब्रत और ओपी पहुंचे

मेरा कोना

: सुब्रत राय ने हमारे आंदोलन को कुचलने के लिए प्रेस में पीएसी तैनात करा दी : नुक्कड़ नाटक के बाद टोपी दिखा कर हम सब मांगा करते थे सहयोग-राशि : तनाव बढ़ने लगा, सुब्रत राय का तख्त-ए-ताऊस हिलने लगा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : तो फिर आखिरकार नवां दिन का सूरज भी उगने लगा। सुब्रत राय: नवें दिन उगा फैसलाकुन सूरज, जयब्रत और ओपी पहुंचे sahara-india-subrat-rai-hadatal-nukkad-natak-press

दिन भर तो मेला लगता ही रहता था, लेकिन अब हर रात भी गुलजार होने लगी। दिन भर धरना-प्रदर्शन और रात भर चकल्लस और अगले दिन के आंदोलन की तैयारियां। खास  कर नुक्कड़ नाटक और दीगर ओद्योगिक आस्थानों-फैक्ट्रियों के आंदोलनकारी मजदूरों के बीच जोशीले गीत और नाटक। इस आयोजन के नेता हुआ करते थे आदियोग। झूम झूम कर हम लोग पूरा लखनऊ छाना करते थे। किसी भी आंदोलन की सूचना वहां के मजदूर हम सब को पहले से ही बताया दिया करते थे। जहां भी नाटक या सांस्कृतिक आयोजन किया, वहां बाद में हम सब एक चादर बिछा कर जाने-जाने वाले राहगीरों और मजदूरों से आर्थिक मदद मांग लेते थे। हम सब कैप पहनते थे, मदद मांगने के लिए यह टोपी सामने दिखा करते थे। कोई पांच, कोई दस-बीस। कोई बहुत मेहरबान हो जाता था तो एक सौ रूपये का नोट भी मिल जाता था। पूरी रकम हम सब एकत्र करके उस फैक्ट्री की मजदूर यूनियन के सामने रख देते थे। और फिर जो भी उनकी इच्छा होती है, अपने पास रख कर वे हम लोगों को दे देते थे। यकीन मानिये, हमारे सारे आंदोलन का सारा खर्च यह इसी तरह चलता रहा।

मजदूर लगातार ही हमारे साथ जुड़ते ही जा रहे थे। दिन-रात मजदूरों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। जाहिर है कि तनाव बढ़ता ही जा रहा था। प्रशासन के लोग भी नियम से आने लगे। हर दिन एक डाक्टर श्याम अंकुरम की सेहत की जानकारी लेने लगा। मसलन, वजन, दिल की धड़कन, ब्लड प्रेशर, आंख की पुतलियां, वगैरह वगैरह। खुफिया विभाग के लोग भी आसपास फटकने लगे। प्रशासन को आशंका थी कि कहीं कोई बवाल बढ़ जाए, इसलिए यह सारी कवायदें चलने लगी थीं।

सुब्रत राय ने सहारा-कीर्ति प्रेस में एक टुकड़ी पीएसी पहले ही लगा दी थी। दिन में हम लोग प्रेस के अंदर नहीं जा सकते थे, लेकिन शाम होते ही प्रेस के मुख्य भवन को छोड़ कर बाकी इलाका हमारा ही विजित क्षेत्र हुआ करता था। शौच, खाना, विश्राम वगैरह तब वहीं पर बेधड़क होता था।

नवें दिन का करीब बजे का वक्तम रहा होगा। सुबह कोई नौ बजे सहारा इंडिया के बड़े आफिसर्स प्रेस में पहुंचने लगे। 15 मिनट के भीतर करीब 50 की संख्या में सहारा के अधिकारी लोग पहुंच चुके थे। आखिर में सहारा के एक निदेशक ओपी श्रीवास्तव, जो तीन दिन पहले ही मुझे भतीजा के तौर पर मुझे पुकार चुके थे, सुब्रत राय का भाई जयव्रत राय और कम्प्नी के सचिव अखिलेश त्रिपाठी एक कार से भीतर में पहुंचे।

आपको बता दूं कि तब तक सहारा इंडिया की खासी छीछालेदर हो चुकी थी। यह हम लोगों का ही दबाव था कि सहारा को मिलने वाले एक बड़े भूखंड में प्रशासन ने आपत्ति लगा दी। यह बिक्री ही अनियमित थी। हस्तक्षेप किया था हम लोगों ने। उधर लालबाग में एक भवन जहां मुख्यालय हुआ करता था, उस भवन पर भी नोटिस आ गयी। श्रम कानून और भविष्य निधि के घोटालों पर ऐतराज हो गया। इन सब से सहारा वाले अब इस मामले को निपटाना की जुगत में लग गये। लेकिन सुब्रत राय कोई ऐसी सूरत देखना चाहते थे कि जिसमें सांप भी मर जाए और डंडा भी बुलंद रहे। ( क्रमश:)

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