सहारा इंडिया में नयी नौटंकी: बे-उर्दू को ग्रुप एडीटर बनाया

बिटिया खबर

क्या सुब्रत राय की जानकारी के बिना हुआ फेरबदल : सहारा न्यूज नेटवर्क के आलमी सहारा उर्दू चैनल में मुखिया बनाए गए इस्माइल जफर खान : उर्दू न आने की वजह राष्ट्रीय सहारा अखबार से हटाया था सुब्रत राय ने : अब चोर दरवाजे से उर्दू चैनल से चस्पा कर दिए गए इस्माइल खान :

दोलत्‍ती संवाददाता

नई दिल्‍ली : सहारा न्यूज नेटवर्क के उर्दू चैनल आलमी सहारा में एक बार फिर एक ऐसे शख्स को ग्रुप एडिटर बना दिया गया है, जिसे उर्दू नहीं आती है। दिलचस्प बात यह है कि उर्दू न आने की बिना पर ही उन्हें उर्दू अखबार रोजनामा राष्ट्रीय सहारा से खुद सुब्रत राय ने हटाया है। इसके बावजूद उन्हें चोर दरवाजे से उर्दू चैनल आलमी सहारा का ग्रुप एडिटर बना दिया गया है। ऐसा पहले भी किया गया था, जिससे अखबार और चैनल को बहुत नुकसान हुआ था और बाद में सैयद फैसल अली को हटा दिया गया था। उन्हें भी उर्दू बरायनाम आती थी।
सहारा न्यूज नेटवर्क ने अपने बहुप्रतीक्षित उर्दू चैनल आलमी सहारा को 2010 में लांच किया था। उर्दू अखबार निकालने के बाद उर्दू चैनल की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा ही थी। हालांकि इसे काफी जल्दबाजी में लांच कर दिया गया था। चैनल को चलाने के लिए उर्दू अखबार से लोगों को चैनल में लाया गया था और हिंदी चैनलों के स्टॉफ की मदद से इसे शुरू कर दिया गया था। कुल मिला कर आलमी सहारा को हिंदी चैनलों के भरोसे चलाया जा रहा है। यानी कि हिंदी चैनलों के कंटेंट को ही ट्रांसलेट कर के उर्दू चैनल में खबरें चलाई जा रही हैं। कम संसाधनों के बावजूद उर्दू चैनल लांच होने के बाद से ही गति पकड़ गया और कई देशों में इसे दर्शक भी मिलने लगे।
लांच के कुछ दिनों बाद ही उर्दू अखबार और चैनल में ग्रुप एडिटर के तौर पर सैयद फैसल अली को ला कर बैठा दिया गया। सैयद फैसल अली को ढंग से उर्दू नहीं आती थी। इसके बावजूद उन्हें उर्दू अखबार और चैनल पर एक तरह से थोप दिया गया। कुछ दिनों बाद उनके कमजोर फैसलों की वजह से चैनल और अखबार का नुकसान शुरू हो गया। इसके अलावा अयोग्य होने की वजह से लोग काम करने में भी मुश्किल महसूस करने लगे।
बताते हैं कि सुब्रत राय ने मुसलमानों में पकड़ बनाने के लिए यह चैनल शुरू किया था। यही वजह रही कि उन्हें कुछ दिनों बाद उर्दू अखबार के ग्रुप एडिटर के पद से हटा दिया गया। उनकी जगह अखबार के ही एक सीनियर को जिम्मेदारी सौंप दी गई। कुछ दिनों बाद सैयद फैसल अली को उर्दू चैनल से भी चलता कर दिया गया। बाद में वह पोलटिकल सपोर्ट की बदौलत दोबारा वापस लौटने में कामयाब रहे, लेकिन यह दूसरी पारी भी लंबी नहीं टिकी। दिलचस्पी के लिए बता दें कि लालू यादव की पार्टी से वह बिहार में चुनाव भी लड़े, लेकिन बुरी तरह हार गए।
अब एक बार फिर सहारा का उर्दू अखबार रोजनामा राष्ट्रीय सहारा और उर्दू चैनल आलमी सहारा चर्चा में हैं। अखबार और चैनल में ग्रुप एडिटर के तौर पर इस्माइल ज़फ़र ख़ान को लाकर बैठा दिया गया। मजेदार बात यह है कि उन्हें भी उर्दू नहीं आती है। भाषा को लेकर यह परेशानी धीरे-धीरे वबाले जान बनने लगी तो इसकी शिकायत सुब्रत राय से की गई। उन्होंने इस्माइल जफर खान का उर्दू ज्ञान का टेस्ट कराया तो वह उसमें फेल हो गए। नतीजे में उन्हें हटाने का आदेश जारी हो गया। उर्दू अखबार से इस्माइल खान को हटा कर अब्दुल माजिद निजामी को ग्रुप एडिटर बना दिया।
उर्दू अखबार से उर्दू भाषा न जानने के बिना पर उन्हें ग्रुप एडिटर के पद से हटा दिया गया, लेकिन अब उर्दू न जानने के बावजूद उन्हें उर्दू चैनल आलमी सहारा और उर्दू वेबसाइट का ग्रुप एडिटर बना दिया गया है। अभी तक मीडिया में सामान्य सा यही नियम रहा है कि उस भाषा का जानकार ही संपादक या समूह संपादक होता रहा है, लेकिन सहारा में कुछ भी मुमकिन है कि परिपाटी पर उन्हें लाकर उर्दू चैनल पर थोप दिया गया। अभी यह साफ नहीं हो सका है कि यह मामला सुब्रत राय की जानकारी में आया है या नहीं? और क्या उर्दू चैनल को एक बार फिर से फैसल अली के दौर की तरह बर्बादी में लाने के लिए छोड़ दिया गया है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *