: एससीएसटी एक्ट के नाम पर एक दलित दम्पत्ति ने एक कर्नल को हवालात में बंद करा दिया : अपनी जमीन खोजने के चक्कर में एक अराजक कानून बना दिया मोदी ने : मामला खुला तो फरार हो गया है एडीएम :
दोलत्ती संवाददाता
लखनऊ : देश के लिए दो युद्ध लड़ चुके 18 मैडल जीत चुके 75 साल के बुजर्ग कर्नल वीरेंद्र चौहान पर एससीएसटी एक्ट का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया मुजफ्फरनगर के एडीएम हरीश चंद्रा और उनकी बीवी उषा चंद्रा ने। उषा चंद्रा भी पीसीएस अफसर है। इसके पहले इन दोनों मियां-बीवी ने पहले बुजुर्ग को सड़क पर घसीट कर पीटा, और फिर हवालात के हवाले कर दिया। कर्नल का कुसूर था कि उसने अपने इस पड़ोसी के अवैध रूप से बन रहे निर्माणाधीन मकान पर ऐतराज किया था। इस पर इस अफसर दम्पत्ति ने दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज कर कर्नल को हवालात भेज दिया। लेकिन मामला खुलने के बाद से यह दोनों मियां-बीवी फरार बताये जाते हैं।
यह है प्रधानमंत्री और भाजपा की नीतियां। आज पहली बार मुझे शर्म आ रही है कि कोई जिम्मेदार पद पर बैठे पदाधिकारी और एक दल कितनी मूर्खतापूर्ण कृत्यों से देश को अराजकता की आग में झोंक सकते हैं। हालत यह है कि यह हरकत किसी आम आदमी ने नहीं, बल्कि उस दम्पत्ति ने अपने दलित होने की धमक सुनायी, जो खुद ही पीसीएस अफसर हैं। नतीजा यह हुआ कि देश के लिए शेर की तरह लड़ने वाले कर्नल साहब हथकड़ी लगाए तोलिये से मुह छिपाए गिरफ्तार कर के ले जाये गए। वो फौजी जो देश के लिए जिया,, उसने बिना किसी जुर्म के हाथों में हथकड़ी पहनी।
यही है वह अपराधी, झूठा और दलित के नाम पर कलंक एडीएम अफसर हरीश चंद्रा
वह तो गनीमत थी कि कर्नल के साथ उसे फौजी साथी सामने आये और घटना की सीसीटीवी फुटेज सामने आई तो पता चला कि असल में शोषित दलित एडीएम साहब ने अपने बॉडीगार्ड के साथ कर्नल चौहान के मुंह पर मुक्का मारा जिससे वो 75 साल का बुजुर्ग फौजी जमीन पर गिर गए। इसके बाद डीएम ने इन दोनों मिया-बीवी पर मुकदमा दर्ज करा दिया है। लेकिन असल सवाल तो यह है कि यह मामला अगर किसी कर्नल का न होकर किसी अन्य सामान्य व्यक्ति का होता, तो फिर क्या होता।
इसके पहले भी बाड़मेर के एक पत्रकार दृगसिंह राजपुरोहित को बिहार के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के इशारे पर दलित उत्पीड़न के फर्जी मामले में दर्ज कर बिहार की जेल में ठूंसा जा चुका है। जयपुर के राजनीतिक कार्यकर्ता रियाजुल खान सवाल पूछते हैं कि अब कर्नल साहब जेल से रिहा तो हो जाएंगे पर उनका सम्मान कौन वापस दिलाएगा भाई? कौन जिम्मेदार है इस अपमान का? ये लोग अपने कार्यक्षेत्र में कितने सवर्णो ओर पिछडों का शोषण करते होंगे ये भी सोचने की बात है?
लखनऊ के ही एक पत्रकार राघवेंद्र प्रताप सिंह भी मोदी के इस फैसले पर खासे नाराज हैं। वे कहते हैं कि एसी एसटी एक्ट पर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जी उड़ाते हुए मोदी ने जो अधिनियम लाया , उससे उत्साहित होकर एसीएसटी एक्ट के तहत दलित द्वारा झूठे आरोप के आधार पर, देश के लिए युद्ध लड़ चुके कर्नल वीरेंद्र चौहान का जेल जाना मोदी सरकार के गाल पर जबर्दस्त तमाचा है। जिसकी गूंज 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सुनाई देगी ।वो अलग बात है वोटों का लालच, ढोंग रूपी शोक की लहर में ये सरकार अपने लाल गाल को नहीं देख पा रही हो।