रोकथाम-नौटंकी सफल। चिकनगुनिया और डेंगू जिन्‍दाबाद, जिन्‍दाबाद

बिटिया खबर

: फॉगिंग और सतर्कता के नाटक पर यवनिका-पतन, मच्‍छरों का जन-जागरण अभियान जारी : आज आईबी सिंह चारोंखाने चित्‍त हुए, फिर मंत्री और आला अफसर भी लेटे दिखेंगे : अण्‍डा और प्रजनन में मच्छर धकधकव्‍वा, योगी हिमाचल में, ब्रजेश पाठक बनारस में, और एके शर्मा गैर-हाजिर :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पूरे प्रदेश की हालत का सटीक अंदाजा यूपी की राजधानी से ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस पैमाने पर उत्‍तर प्रदेश की तस्‍वीर कुछ इस तरह बन चुकी है, कि ओद्योगिक विकास में लखनऊ भले ही बरसों से सिफर बना रहा हो, मगर अपने अण्‍डे और प्रजनन-उत्‍पादन में मच्छरों की स्‍पीड धकाधकव्‍वा चल रही है। जाहिर है कि यह सफलता डेंगू और चिकनगुनिया जैसी महामारी को फिलहाल तो राजधानी में अव्‍वल स्‍थान हासिल कर चुकी है। इन मच्‍छर-जनित बीमारियों से तड़पते मरीजों और उनके परिवारीजनों की बेहाली का आलम केवल इसी घटना से आंका जा सकता है कि राजधानी के मेडिकल कालेज और लोहिया अस्‍पताल, सरकारी अस्‍पताल ही नहीं, बल्कि प्राइवेट अस्‍पतालों की हालत भी बदतर होती जा रही है। मरीजों का आलम यह है कि इन किसी भी अस्‍पतालों में स्‍थान ही नहीं बचा है, जहां उन्‍हें बिस्‍तर मुहैया हो सके।
नाना पाटकर ने एक फिल्‍म में एक ऐसा डॉयलॉग दिया था कि एक मच्‍छर भी इंसान को हिजड़ा बना सकता है। फिल्‍म में नाना पाटकर का यह वक्‍तव्‍य लखनऊ ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की हालत पर बिलकुल सटीक फिट हो रहा है। लगातार मंदिर, माफिया और डबल-इंजन जैसे जुमलों के बल पर अपनी तस्‍वीर को चमकाने में ही अपने दायित्‍वों पर इतिश्री समझने वाले योगी-सरकार के मंत्रियों ने मौसम को महसूस करने की जहमत उठायी और न ही आम आदमी की पीड़ा को समझने की कोशिश। और जब सड़क बर्बाद होती दिखी, एक्‍सप्रेस-वे धंसने लगी, अराजकता की हालत आसमान तक धुंध में तब्‍दील होने लगी, तो कई मंत्रियों और विधायकों तक ने अपनी सरकार पर ही आक्षेप लगाते हुए सरकार से इस्‍तीफा देने की पेशकश शुरू कर दी।

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हालत बिगड़ता देख कर योगी और उनके मंत्रियों ने आंतरित कलह को शांत करने की कोशिश तो की, लेकिन मच्‍छरों पर रोकथाम लगाने की कत्‍तई कोई कोशिश नहीं की। इतना ही नहीं, इस हालत के बारे में तो उन्‍हें कोई भनक तक नहीं मिल सकी, ऐसी हालत में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया ने पूरी राजधानी समेत पूरे प्रदेश पर अपना आतंक मचा दिया। इनमें में लगातार बढ़त ही होती गयी, लेकिन सरकार के जिम्‍मेदार न तो इस बारे में कुछ जान पाये और ऐसी हालत में अफसरों ने भी इस बारे में केवल कागजी कार्रवाई की, नतीजा यह है कि यूपी में आज मच्‍छर-राज ही सबसे बड़ा है। हालांकि कुछ विधायकों ने इस बारे में बात उठायी, लेकिन मंत्रीगण खामोश ही रहे। यह दीगर बात है कि लखनऊ समेत प्रदेश के सभी शहरों के वार्डों के सभासदों-पार्षदों ने इस बारे में अपने-अपने स्‍तर पर खूब चिल्‍ल-पों किया था कि मच्‍छर अब महामारी की हालत तक पहुंच चुका है और उस से निपटने की युद्धस्‍तर तक कार्रवाई सख्‍त जरूरी होगी, लेकिन अधिकांश मामलों में ऐसा हुआ ही नहीं।
आपको बता दें कि करीब डेढ़ महीना पहले ही प्रदेश के स्‍वास्‍थ्‍य और चिकित्‍सा राज्‍यमंत्री पर मच्‍छरों के आतंक का शिकार बनने की खबर आयी थी, लेकिन यह खबर केवल अस्‍पताल प्रशासन और अस्‍पताल कर्मचारियों तक ही सीमित हो गयी। बताते हैं कि यह घटना राजधानी के बलरामपुर अस्‍पताल में हुई थी, जहां यह राज्‍यमंत्री गम्‍भीर हालत में भर्ती किये गये। राज्‍यमंत्री को मलेरिया हुआ बताया गया था।

बलरामपुर अस्‍पताल के एक विश्‍वस्त सूत्र ने बताया कि राज्‍यमंत्री के अस्‍पताल में पहुंचने की खबर अस्‍पताल निदेशक और दीगर डॉक्‍टरों-अफसरों को पहले ही दे गयी थी, लेकिन यहां राज्‍यमंत्री की आवभगत और उनका इलाज, टेस्‍ट वगैरह जैसे सारे कामधाम तो आनन-फानन कर दिये गये, लेकिन इस घटना को चिकित्‍सा और स्‍वास्‍थ्‍य विभाग की नाक का सवाल मान कर उसे गुपचुप ही रख दिया गया। हालांकि यह घटना ही इस तथ्‍य को प्रमाणित करती थी कि राजधानी ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में मच्‍छरों की हालत अब मंत्री आवास तक पहुंच चुकी है।
हालांकि इन रोगों को थामने की सबसे बड़ी जिम्‍मेदारी तो स्‍वास्‍थ्‍य और चिकित्‍सा मंत्री ब्रजेश पाठक थी लेकिन ब्रजेश पाठक तब सक्रिय हुए, जब नगर विकास मंत्री एके शर्मा ने इस मामले को उठाया और अपने नगर निकायों को निर्देशित किया। यह सुन कर मेयर संयुक्‍ता भाटिया भी इधर-उधर बोलनी लगीं कि हां-हां मच्‍छरों को मारना जरूरी है, लेकिन यह मच्‍छर कैसे मारा जाए, इस बारे में उनके पास कोई सटीक और प्रभावी रणनीति ही नहीं थी। हां, इतना जरूर हुआ कि मंत्री एके शर्मा की इस कवायद की भनक सुनते ही ब्रजेश पाठक अपनी नींद तोड़ कर चेत पाये कि उनकी बाजी अब एके शर्मा लेकर आगे बढ़ सकते हैं। इस पर ब्रजेश पाठक ने भी अपने अफसरों को कार्रवाई करने की कवायद की। लेकिन सच बात तो यही रही कि ब्रजेश पाठक के ऐसे निर्देश केवल नौटंकी भर ही रह गये।

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कुछ भी हो, मच्‍छरों को बढ़ाने से रोकने के लिए मंत्री जितने बेमन से बोलते रहे, उनके अफसर भी उनसे भी ज्‍यादा बेमन से मच्‍छर अभियान में काम करने का दावा कर रहे थे। इससे मच्‍छरों की बल्‍ले-बल्‍ले हो गयी, और हालत आज यहां तक पहुंच गयी कि पॉश कालोनी समझे जाने वाले गोमती नगर में लखनऊ हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट आईबी सिंह भी बिस्‍तर पर लम्‍बलेट होने पर मजबूर हो गये।
तब तक मंत्री और अफसरों के निर्देशों की नौटंकी के चलते मच्‍छरों ने अपना आतंक और राज पूरी तरह फैला रखा है। लेकिन जानकार बताते हैं कि अगले दो दिनों में मच्‍छरों का आंतक अब बहुत तेजी के साथ खात्‍मे की ओर बढ़ जाएगा। उसके बाद से ही आम आदमी को राहत मिल सकेगी। लेकिन इसका श्रेय सरकार, मंत्री या विधायक अथवा विधायकों व सभासदों की कोशिशें नहीं, बल्कि असल कारण तो मौसम का बदलाव हो। सच बात तो यह है कि अगले दो दिनों में ही यूपी में पछुआ बयार चलनी शुरू हो जाएगी और उसके बाद से ही मच्‍छरों का प्राकृतिक विनाश की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। लेकिन तब तक आम आदमी को भगवान के भरोसे और मच्‍छरों के आतंक के साये के बीच ही जीवन की डोर देखते रहनी होगी।

 

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