मोदी को बकचोद कहना अश्‍लील और दुखद है

बिटिया खबर

: संजय निरूपम ने जान-बूझकर प्रधानमंत्री को ‘तुच्छ’ कहा : अय्यर ने फ़र्राटे से प्रधानमंत्री को ‘नीच’कह दिया : एक दिन तो एक कन्नड़ बाला ने हेडिंग में माँ दी और भेण दी लिख डाली :

शम्‍भूनाथ शुक्‍ला
गाजियाबाद : आईएएनएस नाम की न्यूज़ एजेंसी द्वारा प्रधानमंत्री का नाम ‘नरेंद्र बक…. मोदी’ लिखना अश्लील और दु:खद है। और इस शब्द को लिख जाने के कारण संबंधित संवाददाता, सबिंग करने वाले सब एडिटर और न्यूज़ एडिटर की नौकरी आईएएनएस ने ले ली। पर हो सकता है कि उस संवाददाता को इस दिल्ली वाली देशज भाषा के शब्द का अर्थ ही न पता हो। संभव है कि सबिंग करने वाले की उस रिपोर्टर से खुन्नस हो या वह भी अनजान हो। अब न्यूज़ एडिटर के पास इतना वक्त कहाँ होता है कि वह हर कॉपी के हर हर्फ़ को पढ़े। अगर सज़ा ही देनी थी तो आईएएनएस का लाइसेंस छीन लिया जाता। क्योंकि ग़लती तो मालिक की है जिसने बहुत कम स्टाफ़ से काम चलाना चाहा। संपादक को बाहर करते।
अब देखिए, कांग्रेस के संजय निरूपम को आप क्या कहेंगे, जिन्होंने जान-बूझकर प्रधानमंत्री को ‘तुच्छ’ कहा। अब बिहार में ही जन्मे और वहीं पढ़े-लिखे संजय को तो अच्छी तरह इस शब्द का अर्थ पता होगा, जो पहले कट्टर हिंदूवादी पार्टी शिवसेना से राज्यसभा में थे और फिर कांग्रेस की चाटुकारिता कर सांसद बने थे। अब कहीं नहीं हैं लेकिन कांग्रेस के नेता तो हैं। उन मणिशंकर अय्यर को क्या कहेंगे, जिन्होंने फ़र्राटे से हिंदी बोलते हुए प्रधानमंत्री को ‘नीच’ कहा था। फेसबुक पर विरोधी दल के आईटी सेल वाले तो प्रधानमंत्री को और भी पता नहीं क्या-क्या लिखा करते हैं। आज भी ये लोग यही सब कुछ लिख रहे हैं कि प्रधानमंत्री इसी लायक हैं। ये कांग्रेसी प्रवक्ता चाय बेचने वाले गरीब परिवार से आए श्री नरेंद्र मोदी के पिता के लिए इतना गंदा शब्द उच्चारें, यह निश्चय ही डूब मरने की बात है। मालूम हो कि गुजरात में पहला नाम व्यक्ति का और मिडिल नेम पिता का होता है। मगर मारा बेचारा गरीब पत्रकार गया।इसीलिए नरेंद्र मोदी के प्रति जनता की सहानुभूति को कोई रोक नहीं सकता।

सुनील शेट्टी की एक फिल्म आई थी गोपी-किशन। उसका डायलॉग बड़ा फेमस हुआ था “मेरे दो-दो बाप”। आज मेरा ये वीडियो देखकर मेरी बेटी भी यही बोली, कि :- “मेरे दो-दो बाप।” मेरे कई चेहरे आप सब ने देखे होंगे, आज मेरे अभिनय का लुत्फ उठाइए, और ज़रा वाह-वाह भी फरमाइए मुद्दा वही, “बलिया का नेशनल गेम” 
बलिया के “नेशनल-गेम” की प्रेत-छाया से आतंकित है पुलिस

जब मैं जनसत्ता में था तब हमारे फ़्लैगशिप पेपर इंडियन एक्सप्रेस में साउथ की लड़कियाँ ही रिपोर्टिंग व डेस्क में थीं, क्योंकि इंडियन एक्सप्रेस का साउथ इंडिया में दबदबा अधिक था, इसलिए वहाँ से स्थानांतरित होकर वे दिल्ली आ जातीं। यहाँ तरक़्क़ी के चांसेज ज़्यादा थे और उनके पति भी यहीं जॉब करते। वे जब दिल्ली में रिपोर्टिंग करतीं तो उस समय दिल्ली में बिहार का नहीं पाकिस्तान से आए पंजाबी शरणार्थियों और उनकी पंजाबी बोली का ही असर था। पाकिस्तान के पंजाब वाली पंजाबी में सामान्य बातचीत में अश्लील शब्द ख़ूब उच्चारे जाते हैं। मसलन “भेण दी …….., माँ दी …….!” जैसे शब्द कॉमन थे। साउथ की पत्रकार लड़कियाँ हमारे पास आतीं और पूछतीं- What is the meaning of this sentence? तब का ज़माना दूसरा था, ये सुनकर हम शरमा जाते। एक दिन तो एक कन्नड़ बाला ने हेडिंग में माँ दी और भेण दी लिख दिया। अखबार छपा तो हंगामा मचा। बाद में संपादक ने अनजाने में हुई भूल लिखकर खेद प्रकट कर दिया और सब को माफ़ कर दिया गया।

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