रोड़ा बने शख्‍स का विषदंत तोड़ डालते थे पारसनाथ

दोलत्ती

: ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको पारसनाथ ने ठगा नहीं : कभी मुख्‍तार अंसारी तो कभी अभय सिंह को थामा, मगर जोड़ा नहीं : जगदीश सोनकर को बबुआ ही बनाये रखा और बेटे लकी को मवाली :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पारसनाथ के पहले तक यहां की राजनीति लोक-कल्‍याण की होती थी। पारदर्शिता, सद्चरित्रता और ईमानदारी का बोलबाला हुआ करता था। दीनदयाल उपाध्‍याय ने तो एक चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी का अपने समर्थकों के साथ व्‍यवहार देख कर चुनाव प्रचार ही रोक दिया था। कहा था कि जिस व्‍यक्ति के साथ आम आदमी का यह रिश्‍ता है, उससे जीत पाना मुमकिन नहीं होगा। हालांकि ऐसा भी नहीं था कि तब राजनीति में उठापटक का खेल नहीं होता था। राजा जौनपुर जनसंघ से विधायक थे, और राजा सिंगरामऊ कांग्रेस से एमएलए थे। यह दोनों ही लोग अपने अपने दलों में राजनीति करते थे, लेकिन उन द्वारा कभी भी किसी के अहित की बात कभी भी नहीं सुनी गयी।
लेकिन तीस साल पहले राजनीति में पारसनाथ यादव के पदार्पण के बाद से ही यह राजनीतिक खेल अलग ही रंग बदलने लगा। कहीं राजनीतिक-हत्‍या, कहीं छीछालेदर और कहीं माफियावाद जैसे घिनौने पायदान तक पहुंचने लगी राजनीति। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों जूतों से रौंद डाला गया। कद्दावर बाहुबलियों को या तो खेमे में शामिल कर लिया गया, या फिर राजनीतिक आग्रहों के चलते उनको जिबह कर दिया गया।
और यह सब किया समाजवादी पार्टी के उस नेता पारसनाथ यादव ने जो खुद को मिनी मुलायम और मिनी चीफ मिनिस्‍टर कहलाता था। इतना ही नहीं, हैरत की बात है कि खुद यादव होने के बावजूद पारसनाथ यादव ने जितने भी बड़े शिकार मार कर उनके अपने जूतों केनीचे रौंद डालने की कोशिश की, वे अधिकांशत: यादव ही थे। लेकिन यादवों का ट्रेड-मार्क अपने माथे पर छापे हुए समाजवादी पार्टी के किसी भी केंद्रीय नेतृत्‍व ने उस पर कोई भी ऐतराज नहीं किया। सिवाय एक बार शिवपाल सिंह यादव के, जिन्‍होंने एक बार मडि़याहूं से पारसनाथ यादव के बेटे की जगह एक स्‍थानीय ब्‍लाक प्रमुख श्रद्धा यादव को एमएलए का टिकट देकर विधानसभा पहुंचाया। वैसे श्रद्धा यादव भी बड़ी खिलाडी निकली थीं। सन-04 के दौरान जब वे पारसनाथ यादव की कृपा-पात्र होने के चलते मडि़याहूं ब्‍लॉक प्रमुख बनी थीं, तब उन्‍होंने खूब लम्‍बे-लम्‍बे खेल किये। बताते हैं कि इस मामले में काफी विलम्‍ब से ही सही, लेकिन सरकार ने कड़ी कार्रवाई की, और श्रद्धा यादव तथा करीब एक दर्जनअफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ धोखाधडी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
खैर, किस्‍सा तो पारसनाथ के अमीर बनने की है ? इस मामले में भी पारसनाथ वाकई पारस पत्‍थर ही साबित हुए, लेकिन अपने ही लिए। सत्‍ता का जो भी भोग हो सकता था, पारस ने किया, और हर सीमाओं को पार करके किया। हालत यह थी कि पारस के मंत्री बनने होने के दौरान पूरा प्रशासन उनके सामने एक टांग पर ही खड़ा रहता था।

दरअसल, पारसनाथ यादव साम, दाम, दण्‍ड, भेद की राजनीति की घुट्टी पिया करते थे। तब पूर्वांचल में एक यादव-बंधुओं का आतंक था। नाम था उमाकांत यादव और रमाकांत यादव। इन दोनों ही हिस्‍ट्रीशीटर अपराधी थे। शगल था बाज की तरह जमीन पर नजर गड़ाना। खासकर विवादित जमीन, या फिर जो भी जमीन पसंद आ जाए। जौनपुर और आजमगढ़ में लोग इन बाहुबली-बंधुओं का नाम सुनते ही थरथर कांपने लगते थे। ढेरों किस्‍से, कहानियां और किस्‍सेगोई होती थी उमाकांत और रमाकांत को लेकर। कभी रेलवे स्‍टेशन पर किसी सिपाही को दिनदहाड़े गोलियों से भून डालना, तो कभी चार भाइयों को जिन्‍दा दफ्न कर डालने की चर्चाएं खूब चलती थीं।
पारसनाथ को साफ लगा कि इन दोनों के रहते वे कभी भी पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी के भीतर एकछत्र विजेता नहीं बन पायेंगे। इसलिए उन्‍होंने इन यदु-बंधुओं की जड़ काटना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि यह दोनों ही लोग सपा-बदर कर दिये गये। पारसनाथ ने इसका तोड़ निकाला मुख्‍तार अंसारी और अभय सिंह को अपने साथ जोड़ कर। सन-04 के चुनाव में पारसनाथ ने मुख्‍तार अंसारी और अभय सिंह के साथ बाकायदा कई दिनों तक रोड-शो तक आयोजित किया था।
तो साहब, इसी के साथ ही पारसनाथ यादव का ये दोनों ही कांटे निकल गये। इसी बीच एक ग्राम प्रधान कल्‍पू यादव की हत्‍या में भी उमाकांत का नाम आया। बस, पारसनाथ इसी फिराक में थे। उमाकांत की अंतहीन जेल-यात्रा यहीं से शुरू हो गयी। साथ ही राजनीतिक हत्‍या भी। यह दोनों ही भाई इधर-उधर भागते रहे। कभी कांग्रेस, कभी बसपा, कभी राष्‍ट्रीय लोकदल, तो कभी भाजपा। उमाकांत की यह दौड़ तो अभी चल ही रही है, जबकि रमाकांत की हाल ही सपा में वापसी हो गयी। वह भी तब, जब पारसनाथ यादव अपनी जानलेवा बीमारी कैंसर के चलते राजनीति से लगभग दूर ही हो चुके। (क्रमश:)

(पारसनाथ यादव, यानी पूर्वांचल का एक दिग्‍गज समाजवादी पार्टी का पहरूआ। छह बार विधायक, तीन बारमंत्री, और दो बार सांसद। आज खबर मिली है कि पारसनाथ यादव की मृत्‍यु हो गयी है। वे कैंसर से पीडि़त थे। लेकिन उनका जीवन पूर्वांचल में एक निहायत शांत-भाव में स्‍वार्थी राजनीति में कुटुम्‍ब की समृद्धि और उसके लिए जघन्‍य अपराधियों और शातिर बदमाशों को प्रश्रयदाता से ज्‍यादा नहीं रहा। राजनीति में अपनी दूकान चमकाने के लिए पारसनाथ ने एक दांव चलाया, जिससे सपा में बड़े नेता भी उनके दांव में चारोंखाने चित्‍त हो गये। एक नारा लगवा दिया कि पारसनाथ यादव यूपी के मिनी मुख्‍यमंत्री हैं।)

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