आत्महत्या से पहले सैकड़ों बार मरता है शख्‍स

दोलत्ती

: इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सअप कभी भी आपके नहीं हो सकते, पहचानिए अपने आसपास के सुशान्त को : कड़वा सच कि जब हम सुशान्त को खो देने के बाद ही हमारी संवेदनाएं जाग्रत होती हैं :
नवजोत सक्सेना
पीलीभीत : तमाम प्रतिस्पर्धाओं एवं चुनौतियों से भरे जीवन में हम इतना मशगूल हो चुके हैं कि वास्तव में हमने अपने आस-पास के सुशान्त को देखने ,समझने, परखने की क्षमता को क्षीण कर दिया है। दरअसल हमारी जीवनशैली में वर्चुअल रिएलिटी इस कदर हावी हो चुकी है कि हम भौतिक रूप से विचारों का आदान प्रदान करने में विफल हो रहे हैं। आपसी संवाद का जरिया इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सअप को बना चुके हैं। जबकि इन प्लेटफॉर्म्स से आप भावनाओं रहित संवाद ही प्रेषित कर सकते हैं, ऐसी स्थिति में जब किसी सुशान्त को वास्तव में आपकी ज़रूरत होती है तो आप उसके साथ नहीं होते।
आत्महत्या करने से पहले सैंकड़ों बार मर चुका होता है व्यक्ति
किसी अवसाद से ग्रसित हो या ख़ुद से जंग लड़ने की स्थिति में जब भी कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का फैसला करता है तो असलियत में वह स्वयं ही कई बार मर चुका होता है व उसे अपने जीवन से कोई मोह या उम्मीद नहीं रह जाती है। सही मायने में कहे तो नश्वर शरीर को ख़त्म करने से पहले ही वह स्वयं को खत्म कर चुका होता है, जिसे उसके अपने तक पहचान नहीं पाते हैं। अगर समय रहते पहचान ही जाएं तो शायद कामयाब हो जाए अपने आस पास के सुशांत को बचाने में। लेकिन वर्तमान में हम दिखावे से परिपूर्ण जीवन में इस कदर जीने लगे हैं कि अपने करीबी लोगों के मन का हाल तक जानने में विफल हैं। हम लाख अपने दोस्तों एवं करीबियों के साथ सेल्फ़ी साझा करें व समय समय पर अपने अपनत्व को सोशल मीडिया पर पोस्ट के माध्यम से साझा कर अपनी करीबियां क्यों न ज़ाहिर कर ले लेकिन सच में किसी दोस्त के दिल का हाल जान ने में हम कितना समर्थ हैं ये सवाल खुद से करने योग्य है। ऐसा कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करने का मन बना चुका हो वास्तव में उसे ज़रूरत होती है किसी ऐसे दोस्त की जो उसके मन में उठ रहे ज्वालामुखी को समझ पाये या व उस ज्वालामुखी को शांत करने का हल भी जान पाए।
अकेलापन व सामाजिक दूरी झंकझोर देती है
हकीकत तो ये है की ये लोग वास्तव में अकेले ही रहना पसन्द करते हैं और सामाजिक दूरी बनाना ही इन्हें अच्छा लगता है क्योंकि असलियत में इनकी खुद से जंग चल रही होती है लेकिन यही अकेलापन और सामाजिक दूरी इन्हें पूरी तरह से झंकझोर देता है और मजबूरन इन्हें ऐसा कदम उठाना पड़ जाता है। आजके दौर में अगर कोई आपसे एक कदम की दूरी बना लेता है तो आप उस से 100 कदम दूर हो जाते हैं बजाय इसके की आप उन वजाहों को खोज पाएं की अमुख व्यक्ति के मन में ऐसा क्या चल रहा है जो उसने खुद को हम से दूर कर दिया है।
दरकार रहती है एक ऐसे साथ की जो मनोस्थिति को समझ सके
ऐसे व्यक्ति को हमेशा दरकार रहती है किसी अपने की जिससे वो अपने मन की सारी दुविधा साझा कर सकें व उन्हें अपने दिल का हाल बयान कर सकें ऐसा करने से उनका मन तो हल्का होता ही है साथ ही उसकी खुद से चल रही जंग से जीतने में भी कामयाब होता है लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसे लोग जो खुद से जंग लड़ रहे होते हैं व अवसाद से ग्रसित होते हैं, से हर कोई दूरी बनाने में ही अपनी भलाई समझता है इसलिए ऐसे लोग हमेशा खुद को अकेला ही पाते हैं। तो क्या वाकई हमें जरूरत है खुद के करीब किसी सुशान्त को पहचान पाने की क्योंकि अगर वाकई में सुशान्त को उसके किसी अपने ने पहचान लिया होता तो आज हम सब उसके जाने का मातम नहीं बना रहे होते, ये भी एक कड़वा सच है की जब हम ऐसे किसी सुशान्त को खो देते हैं तभी हमारी सारी संवेदनाये जाग्रत होती हैं उसके पहले हम ये समझने तक की जहमत तक नहीं उठाते की क्या वाकई हमारे आस -पास कोई सुशान्त है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *