रवीश कुमार भी यात्री हैं दलाल-पथ के

बिटिया खबर
: कस्बाई पत्रकारों की तरह ऐसी छुछुआती सेल्फी लेने की सनक और पापुलर होने की जिद आप को कहां से कहां लेती गई : अखिलेश ने तो पिता और चाचा की पीठ में छुरा घोंप कर अपनी सपाई नाव डुबोई :

दयानंद पांडेय
लखनऊ : कुछ समय पहले मैं ने एक लेख लिखा था , सच यह है कि रवीश कुमार भी दलाल पथ के यात्री हैं । बहुत से मित्रों ने उस पर मुंह फुला लिया था । आज अचानक गदगद भाव में डूबी रवीश कुमार की यह सेल्फी वाली फ़ोटो दिख गई तो उस लेख की याद आ गई । गनीमत बस इतनी भर है कि रवीश कुमार के सिर पर सपा वाली टोपी नहीं है ।
कहना चाहिए मुझे कि एजेंडा पत्रकारिता की चपेट में आ कर अब रवीश को सत्ता और राजनीति की समझ भी नहीं रह गई है । अखिलेश यादव अब सत्ता से बाहर तो हैं ही , ज़मीनी सचाई यह है कि अगले चुनाव बाद यह अखिलेश यादव चुनावी राजनीति के लायक भी नहीं बचने वाले हैं । पिता और चाचा की पीठ में छुरा घोंप कर पहले राहुल गांधी से दोस्ती कर नाव डुबोई । और अब मायावती से हाथ मिला कर वह यह नाव भी जला बैठे हैं । अलग बात है इस उपचुनाव की जीत पर मायावती समझौते में सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में सीधे लोकसभा की 50 सीट पर लड़ने का दावा ठोंक चुकी हैं । बाकी में सपा और कांग्रेस आदि निपटें ।
अखिलेश को यह न निगलते बन रहा है , न उगलते । ख़बर है कि रामगोपाल यादव की पीठ में भी छुरा घोंपा जा चुका है । उपचुनाव की जीत की बड़ी कीमत चुकाने जा रहे हैं अखिलेश । सो चुनावी ज़मीन अखिलेश यादव के पांव के नीचे से खिसक चुकी है सेल्फी बहादुर रवीश कुमार । कैसी राजनीतिक रिपोर्टिंग करते हैं आप । यह भी नहीं जानते । कस्बाई पत्रकारों की तरह ऐसी छुछुआती सेल्फी लेने की सनक और पापुलर होने की जिद आप को कहां से कहां लेती गई है , आप क्या समझेंगे अब । कैसे तो शानदार रिपोर्टर थे आप लेकिन एजेंडा पत्रकारिता ने आप को इस पतन पर उतार दिया । यह गुड बात नहीं है । शमशेर का एक शेर याद आता है :
कैसे-कैसे लोग ऐसे-वैसे हो गए
ऐसे-वैसे लोग कैसे-कैसे हो गए ।
( दयानंद पांडेय की एफबी वाल से )

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