: महा-बाभन बनने की ट्रेनिंग ले रहे हैं डीएम साहब, रिटायरमेंट के बाद काम आएगा : फैजाबाद के डीएम ने तोड़ दी भाजपा को तेल लगाने की सारी सीमाएं : किसी वृद्धा को मुखाग्नि देना तो समझ में आता है लेकिन धार्मिक संस्कार में भागीदारी ? : कितने नीचे सरक चुके हैं आईएएस अफसर :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बहुत महान है यह डीएम। चर्चाओं में है उनका बड़प्पन। चर्चाएं तो यहां तक हैं कि डीएम साहब बहुत बिजी हैं। खोजी कुत्ते छोड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ी। जल्दी ही पता चल गया कि श्मशान घाट पर वे आजकल हाजिरी लगा रहे हैं। हर लाश को टटोलते हैं, सूंघते हैं साहब। मृत्यु उपरांत कर्मकांड को निपटा रहे हैं साहब। सीख और अभ्यास भी कर रहे हैं कि कैसे श्राद्ध वगैरह किया जाता है। मृतात्माओं की शांति को सीखने सिखाने की कोचिंग ले रहे हैं। लेकिन यह सब कुछ केवल धर्मार्थ के लिए ही नहीं कर रहे हैं। चर्चा तो यहां तक चल पड़ी है कि अपना रिटायरमेंट के बाद अपना रि-एंप्लॉयमेंट यानी पुनर्समायोजन के लिए बकायदा धंधा पानी तय कर चुके हैं। माना यह जा रहा है कि अपने होने वाली पेंशन से संतुष्ट नहीं है। बल्कि भविष्य में अतिरिक्त आय बढ़ाने कर अपना बुढ़ापा संभालने के लिए इस धंधे में उतर रहे हैं, जिसे महापात्र, महाबाभन या कर्मकांडी पंडाकर्म माना जाता है।
जी हां, यह डीएमसाहब है अनिल कुमार पाठक। पीसीएस से आईएएस बने हैं और फिलहाल फैज़ाबाद के जिला अधिकारी का पद सुशोभित कर रहे हैं। हाल ही वह अपने एक नए अनोखे काम से बहुचर्चित हो रहे हैं। हुआ यह कि अचानक डीएम साहब ने वहां के सभी छोटे-बड़े पत्रकारों को श्मशानघाट पर बुलाया और उन्हें खबर दी कि वह एक किसी लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करेंगे। आनन-फानन ऐसी एक लाश खोजी गयी, उस लाश को डीएम अनिल पाठक ने मुखाग्नि दी कपाल क्रिया की। इसके पहले अपनी पैंट का पायंचा मोड़ कर घुटने तक समेटा, घड़ा पानी भर कर लाश के सात चक्कर लगाये, आग लगायी, खोपड़ी में जलता बांघ घुसेड़ कर उसकी कपाल-क्रिया की, और बाकी सारे कर्म-धर्म निपटा दिया।
पत्रकारों ने अनिल पाठक के खूब वाहवाही कर दी। ढोल बाजे के साथ, कि जिलाधिकारी अफसर नहीं फरिश्ता है। जो काम योगी नहीं कर सकते हैं, वह इस आईएएस ने कर डाला। दे त्ताली। गड़गड़ ताली। फड़फड़ ताली। खबरचियों ने प्रमाणपत्र जारी कर दिया कि पाठक ने उस लाश को फूंक-ताप कर मानवता का एक नया आयाम पेश कर दिया है अपने अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों के सामने, जो मरघट से शुरू होता है। लेकिन सच बात यही है कि यह डीएम अनिल पाठक इसके पहले ऐसे कोई भी ऐसा काम नहीं कर पाए हैं जो आम आदमी को सरकारी मशीनरी के नित्य पाठ से मुक्त कर उन्हें मरघट जाने की मजबूरी से मुक्त कर सके।
जानकार बताते हैं कि फैजाबाद में अपने कार्यकाल के दौरान केवल इस मरघट क्षेपक को छोड़कर अनिल पाठक का काम-धाम केवल वाटर कूलर और ऐसे ही काम-धाम तक सिमटा रहा है। इसीलिए वह अपनी कोई खास नहीं पहचान बना पाये। उनके कई कनफुंसिया मित्रों ने इस बात पर उन्हें टहोका और कहा कि कुछ ऐसा करते जरूर रहना, जिससे अखबार में चर्चा बने रहो, वरना पत्रकार तुम्हें ललुहाय लेंगे एक दिन। फिर भागते वक्त लकुटिया-लंगोट सम्भालने तक का मौका मिल नहीं पायेगा।
अचानक उनके दिमाग में गोल्डन आइडिया आया जिसे उन्होंने झट से लपक लिया। लाश पर कीर्तन स्टार्ट हो गया, जयजयकारा लगवा लिया। इतना ही नहीं, इस वाहवाही से गदगद अनिल पाठक ने एक नया शिगूफा छोड़ दिया उन्होंने कहा कि जिस लाश को लावारिस समझकर उन्हें मुखाग्नि दी थी वह उसे अब अपने पुरखे के तौर पर नाम दे चुके हैं और उसका बाकायदा राजगद्दी करेंगे। डीएम साहब ने ऐलान किया, तो अधीनस्थ अफसर दौड़ पड़े। सारे सरअंजाम सामान का जुगाड़ हो गया। जब पूरी तैयारी पूरी हो चुकी तो डीएम साहब ने भरपूर अंगड़ाई ली, और कुर्सी छोड़ कार पर जा बैठे। मौके पर पहुंचे और श्राद्ध का शुभआरंभ कर दिया।
सवाल यह उठता है कि इस जिलाधिकारी ने यह हरकत आखिरकार क्यों की। किसी लावारिस लाश को अंतिम संस्कार तक पहुंचाने का दायित्व डीएम का नहीं होता है। बल्कि वह अपने अधीनस्थ जिम्मेदार विभागीय अधिकारियों को इसके लिए प्रेरित करता है कि वह ऐसा करें। एक वरिष्ठ अधिकारी ने अनिल पाठक की इस हरकत पर बेहद आपत्तिजनक बताया है। इस अफसर का कहना है कि इस तरह की हरकतें तो और भी अराजकता हो जाएगी जब जिलाधिकारी अपने अधीनस्थ अफसरों के सारे दायित्व खुद अपने ऊपर ओढ़ लेगा।
लेकिन इसके बावजूद अनिल पाठक ने जो भी किया, वह उनकी निजी भावुकता मानी जा सकती है। लेकिन उससे बड़ा दुर्भाग्य तब हुआ जब अनिल पाठक ने उस लाश को बकायदा नाम दिया और उसका श्राद्ध पूरे समारोह के साथ आयोजित किया। सूत्र बताते हैं कि इस तरीके के आयोजन धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं जिनका प्रशासनिक अधिकारी को नहीं करना चाहिए खासतौर से तब जब फैजाबाद अपने आप में ही बहुत संवेदनशील जिला है और प्रशासन की किसी भी चूक से प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लग सकता है। लेकिन जानते-बूझते हुए भी अनिल पाठक ने या कठपुतली वाली करतूत कर ही डाली।
आपको बता दें कि यह वही अनिल पाठक है जो लखनऊ में अपनी एडीएम की पोस्टिंग के दौरान खासे विवादित और चर्चित हो गए थे। हुआ यह था कि प्रदेश के शिक्षकों ने विधानसभा के सामने प्रदर्शन का कार्यक्रम घोषित किया था। इस प्रदर्शन को नेस्तनाबूत करने के लिए अनिल पाठक ने प्रदर्शनकारी एक शिक्षक को जूतों से पीट दिया था।
कुछ भी हो, अनिल पाठक जिंदाबाद के नारे तो लग ही रहे हैं। इस जिलाधिकारी से जुड़ी खबरों पर हम लगातार आप तक पहुंचाते रहेंगे। (क्रमश:)
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