बलात्कार में यही घृणा तो काम नहीं कर रही ?

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

उफ़ ये जाति! एक नाराज औरत की डायरी

रंजना जायसवाल

जाति का दंश बचपन में मैंने भी झेला है|वैसे मैं जन्म से वर्णिक[बनिया]हूँ ,जो दलित जाति नहीं |पहले यह पिछड़ी जाति में भी शामिल नहीं थी,पर ब्राह्मणों के मुहल्ले में पीठ पीछे हमें ‘छोट जतिया’ जैसा संबोधन जरूर सुनने को मिल जाता था |विशेषकर ब्राह्मणियों द्वारा ,जो जन्मजात श्रेष्ठता की भावना से भरी रहती थीं |उनके जैसे कपड़े हम नहीं पहन सकते थे|पहन लिया,तो उनकी नकल मानी जाती थी |उनके घर जाते समय हमें सावधान रहना पड़ता था कि उनकी पवित्र वस्तुएँ छू न जाएँ |मुझे बहुत बुरा लगता था और मैं उनके घर कभी नहीं जाती थी |हाँ,एक बार एक घर में जरूर गयी थी ,जब उनके यहाँ पहली बार टीवी आया था |मेरे लिए वह अजूबा था ,पर उनकी झिड़की से आहत होकर मैंने अपने घर टीवी लाने के लिए माँ पर जोर डाला था |

वे एक जूनियर इंजीनियर साहब थे ,पंडित थे, इसलिए उनकी पत्नी पंडिता थीं |किसी को अपने में नहीं लगाती थीं |उनकी बेटी राजकुमारी की तरह पल रही थी |उसकी हर बात निराली थी ,हम लोगों से हट कर थी |साधारण परिवार से होने के कारण न तो उसके जैसे कपड़े हमारे पास थे ,ना वैसा घर |थी भी वह बेहद गोरी और सुंदर |माँ उसकी खूब सराहना करती ,हर बात में उससे तुलना करती |माँ खुद जाति को मानती थी ,इसलिए पंडिताईन उनके लिए ‘बड़े आदमी’थीं और हरिजन दाई माँ ‘छोट आदमी’|पंडिताइन जैसा व्यवहार वे दाई माँ से करती थीं और वे भी इसे स्वाभाविक मानती थीं |पर मेरा बाल-मन इस भेद-भाव से सहमत नहीं होता था |वह राजकुमारी मेरे साथ पढ़ती थी और पढ़ाई में मुझसे तेज नहीं थी ,फिर कहाँ की राजकुमारी ?

पुरानी बात याद आने का का एक कारण है |एक दुकान पर एक ब्राह्मणी नौमी के दिन कन्या पूजन का सामान खरीद रही थीं |बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि -‘ब्राह्मण कन्या के पूजन से ही पुन्य लाभ मिलता है ,चाहे एक ही कन्या हो |’मैंने कहा -कन्या में भी भेद ! दुर्गा क्या इस भेद-भाव से प्रसन्न होंगी ?तो वे पूरे आत्मविश्वास से बोलीं -देवी हमेशा ब्राह्मणों की पूजा से ही प्रसन्न होती हैं |कभी किसी दूसरी जाति को देखा है कथा बांचते या पूजा कराते |जो ऐसा करते हैं ,वे पाप के भागी होते हैं |मैं तो हमेशा ब्राह्मण कन्या को ही जिमाती हूँ ,और यही परम्परा हमारे खानदान में चलती है|’

मैं हतप्रभ हो उठी |’क्या तीस सालों में ये स्त्रियाँ जरा भी नहीं बदली हैं ?क्या इनके घरों के पुरूष भी नहीं बदले हैं ?क्या आज भी छोटी जाति के प्रति इनके मनों में वही पहले जैसी अकूत घृणा है ?कहीं दलित बच्चियों के साथ बलात्कार में यही घृणा तो काम नहीं कर रही ?पर कुछ तो जरूर बदला है ,जो आश्वस्त करता है |पिछले वर्ष विश्व हिन्दू महासंघ महानगर [गोरखपुर]इकाई के तत्वाधान में दलित कुंवारी कन्याओं का नवदुर्गा रूप में पूजन शीतला माता के मंदिर पर हुआ |पर कहीं न कहीं मन डरता भी है कि यह सिर्फ सियासी दिखावा ना हो ,क्योंकि अब तक जाति -पाति से लोगों की मानसिकता उबरी नहीं है |

एक नाराज औरत की डायरी

SShivdas Gupta : Bahut khub..

Vijay Pushpam Pathak : सही लिखा है आपने शब्दशः

सचिन श्रीवास्तव कहीं कुछ नही बदला , सब आँखों का धोखा है…

SRanjana Jaiswal : शुक्रिया मित्रों

Sunil Bhalse : एक हकीकत जो आज भी कायम है हमारे आसपास ।

Nitish Ojha जो लोग जाती पति का विरोध करते हैं उन्हें सबसे पहले अपने नाम से जाति सूचक उपनाम या किसी भी प्रकार का संबोधन हटा लेना चाहिए …. नहीं तो बस ये बात भी बस एक डायरी की बात रह जाएगी …

SRanjana Jaiswal : नीतिश जी मैने तो कब का यह पुछिल्ला हटा दिया होता ,पर मेरे नाम की कई रचनाकार हैं,सब घालमेल होने लगेगा |कई बार हुआ भी है |

Rishabh Pandey : बिल्कुल सत्य लिखा आपनेँ।। मेरे ख्याल से ब्राहम्ण का मतलब केवल शुद्ध एवं साफ रहना नही बल्कि अपनी ब्राहम्णत्व को कायम रखना है अथार्त विध्या (ज्ञान) होना अतिआवश्यक हैँ।

Ranjana Jaiswal : जी सच है |

Nitish Ojha : तब ठीक है …. एक बात और .. विचार करेंगी तो दलित कन्या पूजन भी एक उसी परम्परा का पोषण है जिसके विरोध से वह स्वयं निकली है … उस से कोई बदलाव नहीं होने वाला …डीमार्केशन का आंतरिक रूप है वह … ….

Ranjana Jaiswal : जी जानती हूँ पर सब कुछ कहा ही नहीं जाता नितीश जी |

Ranjana Jaiswal : मेरी एक कविता का अंश है -मैं देवी नहीं हूँ मुझे पसंद नहीं अपने नाम के पीछे कोई शब्द ..आगे की तरह| मैं चाहती हूँ अपना एक स्वतंत्र नाम |

Raghvendra Singh : ji sachchaai batane ke liye shukiriya sochiye daliton ka kiyaa haal hota hogaa

Pokhar Mal Fogawat : Bilkul satya baat hai ji. Brahman jaati me janam lene se koe gyani nahi

ban jata. Jati ke naam par kewal thag vidya chalti hai. Surname lagana jati nahi hai balki

pehchan hai.

DrNand Lal Bharati : सच तो ये है की जातिवाद का कोई विरोधी नहीं है यदि होता तो स्व-धर्मी नातेदारी की बाध्यता होती न की वर्ण और गोत्र की स्व धर्मी सामाजिक समानता का समराज्य होता पर अफ़सोस जातिवाद का नर पिशाच आज भी वैसे ही सता रहे है जैसे सदियों पहले ……

Ajay Tiwari : हकीकत +

Jugal Kishor Joshi : आप चर्चा में रहना चाहती हैं.

Rohini Aggarwal : jati pratha ke sath sath kya kanya pujan bhi vyarth nahin? chhoti jation aur

stiyon ko hashiye per rakhne ki sazish!

Sabal Singh Yadav : bahut hi sundar lika ji

Raja Awasthi : इससे पार पाना मुश्किल है रंजना जी.यह विविधवर्णी है.हर पल हर व्यक्ति किसी न किसी पक्ष में रहता ही है.

Ramesh Kumar : padh likh kar bhi vahi chal raha hai, sunate aaye hain, badlega. par kab? bahut achha likha hai.

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