सर्वश्रेष्‍ठ वक्‍ता हैं राजनाथ सिंह, हृदयनारायण दीक्षित और अखिलेश यादव

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: जयललिता तो बेमिसाल थीं, नरेंद्र मोदी, हृदयनारायण दीक्षित और अखिलेश यादव बेधड़क : राजनाथ सिंह किसी सिंह-स्‍वर में दहाड़ते रहे हैं, बेहद तार्किक और तारतम्‍यता के साथ : इंदिरा गांधी प्रेस से बचती थीं, जबकि राजीव गांधी हकलाते थे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बातचीत में चिल्‍ल-पों करना, अनर्गल बयानबाजी का सहारा लेना, बहस के दौरान सच बात कहने के बजाय उसे बेहूदे तिकड़मी मोड़ तक खींच कर अर्थ का अनर्थ कर देना आजकल के नेताओं की पहचान होती जा रही है। लेकिन यह सस्‍ता नेता-गुण केवल ओछे या निचले-छिछले नेताओं तक ही सीमित हैं। सच बात तो यह है कि बहुत कम नेता ही ऐसे हैं, जिनमें अध्‍ययन है, विश्‍लेषण का माद्दा है, संवेदना का आधार है, मानवीय गुण हैं और जो तार्किक बात करते हैं। चाहे वह मंच हो या फिर साक्षात्‍कारों के दौरान, उनका प्रवाह बेमिसाल होता है। जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्‍त्री, लोहिया जैसे चंद ऐसे शामिल हैं जिन्‍होंने अपनी वक्तृता का डंका बजवा दिया।

खासकर प्रेस-मीडिया के साथ साक्षात्‍कार के दौरान जिन नेताओं की बातचीत सर्वाधिक पसंद की जाती थी, वे केवल नेता ही नहीं थे, बल्कि उनका दर्जा राजनेता का माना-पहचाना जाता है। यानी स्‍टेट्समैन। ऐसे राजनेताओं में सबसे पहला नाम रहा है अटल बिहारी बाजपेयी का। हालांकि उनसे भी ज्‍यादा अच्‍छा और सारगर्भित और प्रखर वक्‍ता हुआ करते थे नेहरू जी, शास्‍त्री जी, लोहिया जी, लेकिन उन सब से भाषण तो खूब दिये, मगर इंटरव्‍यू बहुत कम। शायद यह भी हो सकता है कि तब टीवी का दौर नहीं था, जहां रिपोर्टर के सवालों के केंद्र में बैठे शख्‍स की हर-एक भंगिमा पर दर्शक बारीकी से निगहबानी कर सकते।

इंदिरा गांधी जी और राहुल गांधी जी का मामला जरा अलहदा था। इंदिरा जी तो इंटरव्‍यू देती ही नहीं थीं। खासकर भारतीय मीडिया से उन्‍होंने खासी दूरी बना रखी थी। उनके जो भी इंटरव्‍यू हुए हैं, वे सब के सब विदेशी मीडिया ने ही लिये हैं। जबकि राजीव गांधी तो इंटरव्‍यू के नाम पर बुरी तरह घबरा जाते थे। उनकी घिग्‍घी बंध जाती थी। हकलाने लगते थे राजीव गांधी। नरसिंहा राव और देवगौड़ा ने भी या तो बहुत कम इंटरव्‍यू दिये, और या फिर उनके ऐसे साक्षात्‍कार बहुत चर्चित और प्रभावशाली नहीं बन पाये।

इस मामले में जयललिता ने डंका बजवा दिया। वे न केवल इंटरव्‍यू का स्‍वागत किया करती थीं, बल्कि ऐसे मौकों पर बेखौफ होकर जवाब दिया करती थीं। उनकी सोच, शैली, सोच, लहजा और सवालों को अपने पक्ष में मोड़ देने की भी खासी महारत हासिल थी जयललिता में। अगर यह कहा जाए कि पूरे दक्षिण भारत ही नहीं, बल्कि राजस्‍थान से लेकर मध्‍यप्रदेश, उड़ीसा और बंगाल तथा पूरे पूर्वोत्‍तर भारत में अगर कोई शख्‍स इंटरव्‍यू के मामले में बेताज बादशाह था, तो वह थी जयललिता। उसके बाद नम्‍बर आता था एनटीआर का। फिल्‍म से नेता तक। जैसे जयललिता। बिहार के लालू यादव ने हमेशा जोकर की तरह हंसोड़-पना का ही प्रदर्शन किया, उनकी एक भी बात गम्‍भीरता के कसौटी पर नहीं कसी जा सकती है।

जो बोल भी नहीं सकता, वह करेगा क्‍या। खास तौर पर नेताओं और राजनेताओं में यह गुण अनिवार्य माना जाता है। जहां नेता केवल बकलोली करते घूमते रहते हैं, वहीं  राजनीति में चिंतन और देश-समाज के प्रति ईमानदार दायित्‍वों-संकल्‍पों की खुशबू आती है। प्रमुख न्‍यूज पोर्टल www.meribitiya.com देश के प्रमुख राजनेताओं पर एक विस्‍तृत अध्‍ययन करने जा रहा है, जिसमें केवल नेता और राजनेता ही नहीं, बल्कि देश के चोटी के रिपोर्टर-साक्षातकर्ताओं पर भी विश्‍लेषण किया जाएगा। यह श्रंखलाबद्ध रिपोर्ट है, जो रोजाना प्रकाशित की जाएगी। इसकी बाकी कडि़यों को पढ़ने के लिए रोजाना निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

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