: आर्थिक चकाचौंध की रौशनी में राम नाम को हम बेच देते हैं, जबकि रामत्व को अंधेरों में खोजते हैं : हमारे आग्रह-दुराग्रह, जो हमें रामत्व से दूर कर देते हैं : रामनवमी के दिन कन्याओं का चरण पखारो, लेकिन किसी को मां-बहन की गालियां देने से परहेज भी करो :
कुमार सौवीर
लखनऊ : रामनवमी के दिन राम को शायद ठीक उसी तरह पवित्र परम्परा के तहत तन्मयता के साथ खोजना चाहिए, जैसे दीपावली में राम का स्वागत का मर्म होता है। लेकिन दिक्कत यह है कि रामनवमी का क्रिया-कर्म भोजन करने-कराने तक समेट चुके हैं, ठीक उसी तरह जैसे दीवापली में राम के बजाय लक्ष्मी और गणेश की आराधना प्रचलित है।
यानी हमारी संस्कृति में राम अब लुप्त-प्राय हो चुके हैं। केवल नाम ही बचा है, धर्म का गला तो अधर्म ने घोंट ही रखा है। राम के खिलाफ इतनी चमत्कारिक और कभी घृणित कथा-गाथाएं हमारे आसपास झाड़-झंखाड़ की तरह बिखरी पड़ी हैं, कि सच और झूठ का फर्क खोज पाना तक मुमकिन नहीं। आम श्रद्धालुओं की और भी बुरी गति बनी जा रही है।
उस पर भले ही कींचड़ फेंका जा सके, उस में विष व्यापा जा सके। उसे विद्रूप भले ही बनाया जा सके। लेकिन सच बात तो यह है कि राम की हत्या कर पाना मुमकिन है। कारण यह कि राम में रामत्व है। शुद्ध-चित्त वाला रामत्व। निर्मल और भाव-प्रवण भी। बस दिक्कत यह है कि रामत्व को खोजने के चक्कर में हम में दिशा-भ्रम हो जाता है। हम कहां जाना चाहते हैं, और कहां पहुंच जाते हैं, कुछ पता ही नहीं चलता। कारण है, हमारे आग्रह-दुराग्रह, जो हमें रामत्व से दूर कर देते हैं।
इसीलिए जरूरत सिर्फ इस बात की है कि बस प्रयास लगातार होते ही रहें। शुद्ध चित्त से, भागीरथी संकल्प से और पवित्र प्रयास से।
तो मित्रों। रामनवमी का दिन कन्याओं का पांव पखारने के साथ ही उन्हें भोजन कराना तो आपकी निजी निष्ठा-आस्था का विषय है। लेकिन खुद में रामत्व को खोजने के लिए हम और आप इतना तो कर ही सकते हैं, कि कम से कम आज और प्रत्येक पवित्र धार्मिक अवसर पर मां, बहन और बेटी की गालियां न तो दें, और न ही सहन करें।
राम को खोजने के लिए नहीं, बल्कि पवित्र रामत्व को स्वयं में आत्मसात करने के लिए।