: अपने नकारात्मक अंदाज के चलते केजरीवाल अच्छे वक्ता का आधार खो चुके : मुलायम की बात समझ से परे और मायावती खुद में मीडिया को झांकने का मौका ही नहीं देतीं : अब तीसरे स्थान पर हैं अखिलेश, दूसरे पर दीक्षित, और पहले पायदान पर राजनाथ सिंह :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड में तो मानो नेताओं का अकाल ही पड़ा है। अकेले दिल्ली ने अब तक नहीं खांसा होगा, इतने मफलर दिल्ली ने नहीं लपेटे होंगे, अकेले अरविंद केजरीवाल ने कर डाला। निर्माण या सकारात्मकता के सवर्था प्रतिकूल धुरी पर खड़े होकर ता-ता-थइया करने वाले केजरीवाल अब राजनीति में केवल झूठ, आरोप-प्रत्यारोप और अविश्वसनीयता का एकलौते प्रतीक बन चुके हैं। मीडिया के साथ जितने भी इंटरव्यू केजरीवाल ने किये, सब के सब रिपोर्टरों ने फौरन कसम खा डाली कि आइंदा इस शख्स के साथ वे कभी भी कैमरे पर नहीं आयेंगे।
गुजरात से नरेंद्र मोदी का भाषण प्रभावोत्पादक बन जाता है। हालांकि सोशल मीडिया ने भाई-बहनों और मितरों जैसे जुमलों को हवा दे दी है, लेकिन इसके बावजूद मोदी को सुनने की हसरत अधिकांश देशवासी के मन में होती हैं। अमित शाह बोलते जरूर हैं, लेकिन सत्ताधारी पार्टी के मुखिया होने के चलते और लाभदायक रसूख रखने का माद्दा रखने वाले अमित शाह रणनीतिक गुण भले ही रखते हों, लेकिन वे मीडिया की नजर में गुणात्मकता के हिसाब से बस चंद काफी नीचे पायदान में हैं।
बचा यूपी।
मुलायम सिंह यादव की बात ही लोगों की समझ में नहीं आती है। मायावती ने खुद ही मीडिया के साथ अपनी दूरी कोसों-मीलों-योजनों तक बना डाली है। अब हालत यह है कि तीन अन्य बड़े नेताओं के अलावा यूपी का एक भी ऐसा अन्य नेता नहीं है जो बेलौस, बेदाग और सारगर्भित ही नहीं, बल्कि प्रभावोत्पादक बातें कर पाना का माद्दा रखता हो।
उनमें से तीसरे पायदान पर हैं समाजवादी पार्टी के सुप्रीम अखिलेश यादव। अखिलेश आज भी मीडिया के चहेते हैं और बेधड़क बातें करते हैं। दूसरे नम्बर पर हैं हृदयनारायण दीक्षित। वेद-वेदांगों के सांगोपांग अध्ययन अगर किसी राजनेता ने किया है, तो उसका नाम है हृदयनारायण दीक्षित। उन्होंने दुनिया भर के धर्मों पर भी बेहिसाब अध्ययन किया। लेकिन दीक्षित के अध्ययन का क्षेत्र केवल धार्मिक क्षेत्र ही नहीं, बल्कि वे साहित्य और कानून के साथ ही साथ वे संसदीय मामलों के भी लाजवाब अधिकार रखते हैं। और यही वजह है कि दीक्षित जी विधानसभा के अध्यक्ष बन गये हैं। जहां अनुशासन और बोलना उनका मूल दायित्वों में शामिल रहेगा।
सबसे पहले नम्बर पर हैं राजनाथ सिंह। देश के गृहमंत्री। मूलत: संघी, और मौलिक शिक्षक। अपनी बात को सहज भाव में लेकिन पूरी पुख्तगी के साथ कहने का जो गुण और भाव राजनाथ में है, वह बेमिसाल है। प्रखर वक्ता और सवालों को पूरी गुणवत्ता और कुशलता के साथ सम्भाल लेने का कौशल है राजनाथ में। राष्ट्र, समाज, समुदाय और यहां तक कि अपने से तनिक भी सम्पर्क में आये किसी भी व्यक्ति तक के बारे में गहरी जानकारी रखते हैं राजनाथ।
लेकिन फिलहाल राजनाथ सिंह खामोश हैं।
अब अगर कोई भी शख्स राजनाथ सिंह की इस चुप्पी का गहन अन्तर्विश्लेषण करना चाहे तो वह करे, खूब करे। लेकिन सच बात तो यही है कि राजनाथ सिंह फिलहाल खामोश ही हैं।
हालात भी तो ऐसे ही हैं।
है कि नहीं ?
जो बोल भी नहीं सकता, वह करेगा क्या। खास तौर पर नेताओं और राजनेताओं में यह गुण अनिवार्य माना जाता है। जहां नेता केवल बकलोली करते घूमते रहते हैं, वहीं राजनीति में चिंतन और देश-समाज के प्रति ईमानदार दायित्वों-संकल्पों की खुशबू आती है। प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम देश के प्रमुख राजनेताओं पर एक विस्तृत अध्ययन करने जा रहा है, जिसमें केवल नेता और राजनेता ही नहीं, बल्कि देश के चोटी के रिपोर्टर-साक्षातकर्ताओं पर भी विश्लेषण किया जाएगा। यह श्रंखलाबद्ध रिपोर्ट है, जो रोजाना प्रकाशित की जाएगी। इसकी बाकी कडि़यों को पढ़ने के लिए रोजाना निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
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