: निशीथ राय पर जो जांच रिपोर्ट आई है उस पर सिर्फ ठहाके लगाए जा सकते हैं : मेस से लेकर स्वास्थ्य व्यवस्था तक के लिए जिम्मेदार माने गये निशीथ राय : राजनीतिक आग्रहों की बात तो समझ में आती है, लेकिन दुराग्रहों से केवल सर्वनाशी-प्रवृत्ति पनपती है :
कुमार सौवीर
लखनऊ : शकुंतला विकलांग पुनर्वास विश्वविद्यालय में करीब सवा सौ भर्तियों पर मनमानी पर रोड़ा बने कुलपति प्रो निशीथ राय को उल्टा टांगने की तैयारी में जुटी है योगी-सरकार। इस की दिशा में चल रहीं पेशबंदियां और सरकारी कोशिशें बताती हैं कि निशीथ राय की चटनी बना कर विभागीय मंत्रालय में पेश किया जाना है। राजनीति, सत्ता और मंत्रालय से लेकर अफसरशाही इस मामले में तेज घोड़ा दौरा रही है।
यूपी में सत्ता-पलट के बाद बदले परिदृश्य के चलते इस विश्वविद्यालय में माहौल गरम होता जा रहा है। साजिशें हैं कि कैसे भी हो, इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो निशीथ राय को बांध लिया जाए। हालांकि ऐसी कोशिशों को लेकर मामला जब अदालत तक पहुंचा, तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रोफेसर निशीथ राय की याचिका पर फैसला कर दिया कि उनको हटाने की कार्यवाही दुर्भावना से प्रेरित थी। लेकिन सरकार को चूंकि निशीथ राय से कुछ ज्यादा ही रंजिशनुमा दिक्कत थी, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले के बावजूद सरकार ने निशीथ राय को शिकंजे में जकड़ने की एक नयी साजिश बुन डाली। इसके पहले की सारी जांच-पड़ताल वाले मोहरों को दरकिनार कर सरकार ने अब नया पैंतरा चलाया और निशीथ राय के खिलाफ चलायी गयीं जांचों को जांचने के लिए भी एक नयी जांच-कमेटी बना डाली। इस सर्वोच्च कमेटी के जांचाधिकारी बनाये गये शिक्षा चिकित्सा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ रजनीश दुबे।
तो पहले यह समझ लीजिए कि रजनीश दुबे की अध्यक्षता वाली इस कमेटी जांच ने निशीथ राय के खिलाफ जो आरोप खोद-खोद कर निकाल बाहर किया है, वह असल में है क्या। अब रजनीश दुबे की जांच रिपोर्ट के अनुसार निशीथ राय ने यूनिवर्सिटी में बाकायदा लूट का धंधा बना डाला था, और इसके लिए उन्होंने मनमाने तरीके से 33 नियुक्तियां की हैं, विज्ञापन में आरक्षण की स्थिति स्पष्ट नहीं है, दो शिक्षक भर्ती में अनियमितता है, सहायक कुलपति के भर्ती के विज्ञापन में अनियमितता है, वगैरह वगैरह
किसी लाजवाब और शातिर हास्य व्यंग्य लेखक की किसी कालजई रचना की तरह रजनीश दुबे की जांच रिपोर्ट है जिसमें लिखा है कुलपति दिव्यांग जनों के प्रति संवेदनहीनता दिखाते हैं परिसर में स्वास्थ्य सेवा का अभाव है, मेस का खाना घटिया है, परिसर में शीतल बस सेवा का अभाव है, शिक्षकों की वरिष्ठता सूचना न बनाई गई है, परिसर में भय का माहौल है, वगैरह-वगैरह।
तो किस्सा-कोताह यह कि योगी सरकार में ओमप्रकाश राजभर की इच्छा के अनुसार यह सारे दायित्व प्रोफेसर निशीथ राय को ही करनी चाहिए थी मगर दिक्कत यह है कि यह पूरी रिपोर्ट ही अधूरी साबित हो गई।
यूपी में चल रहे राजनीतिक षडयंत्रों चलते उच्च शिक्षा जगत में अब वे सारे अनिवार्य और सर्वोच्च प्रश्न हमेशा-हमेशा के लिए रहस्य बनने जा रहे हैं। मसलन, डॉ शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय के कुलपति दिन में कितनी बार सूसू करते हैं, कितनी बार पॉटी करते हैं। नियम से न तो सूसू करते हैं, ना ही पॉटी-शॉटी। इतना ही नहीं, मामला अपने स्टाफ का हो अथवा किसी भी छात्र का। नो सूसू, नो पॉटी। कितनी बार हवा खोलते हैं या नहीं, जुराबों को पहनना उनकी आदत में है या नहीं। कुलपति विश्वविद्यालय में बने सारे शौचालयों का झाड़ू लेकर सफाई नहीं करते हैं, सारे सीढ़ियों को चमाचम करने की अपनी जिम्मेदारी अपने रूमालों से पूरी नहीं करते है। गौरतलब बात यह है कि यह सब भी विशेष जांच का विषय होना ही चाहिए, लेकिन सरकार के इशारे पर जांच अधिकारी ने उस बारे में कोई भी कार्रवाई नहीं की। जो भी मन में आया कर दिया गया, मगर यह सारे सवाल अनुत्तरित छोड़ दिए गए। (क्रमश:)
यूपी में उच्च शिक्षा की हालत अब लगातार न्यूनतम पायदानों तक सरकती जा रही है। डॉ शकुंतला मिश्रा विकलांग पुनर्वास विश्वविद्यालय में आजकल चल रही घटिया उठापटक इसका सटीक प्रमाण है। इससे जुड़ी खबरों को बांचने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-