रहने दो, ठुमरी अब कौन सुनता है: शांति हीरानंद

दोलत्ती


: मलिका-ए-गजल बेगम अख्तर की शिष्या पदमविभूषण शांति हीरानंद चावला अब स्मृति शेष : लखनऊ की रहने वाली शांति हीरानंद का गुरूग्राम में निधन :
प्रो मनोज दीक्षित   
लखनऊ : सन 72 में बॉलीवुड में एक महान फिल्म बनी थी। नाम था सिद्धार्थ। सिमी ग्रेवाल और शशि कपूर की यह फिल्म अंग्रेजी में थी। सन 46 में नोबल पुरस्कार प्राप्त
हरमन हेस के लिखे इस उपन्यास का निर्देशन किया था अमेरिकी निर्देशक कॉनरैड रुक्स ने। इस फिल्म में सिद्धार्थ बने थे शशिकपूर की मां की भूमिका निभायी थी शांति हीरानंद चावला ने। लखनऊ की रहने वाली और मूलत: शास्त्रीय गायिका शांति हीरानंद लखनउ अब हमारे बीच नहीं हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा रह चुकीं और अभूतपूर्व गायिका शांति हीरानंद को पदमश्री और पदमविभूषण भी सम्मान मिल चुके थे।
अवध विश्वविदयालय के कुलपति प्रो मनोज दीक्षित को याद है वे 2007 में वे मालवीय हॉल में पूर्व छात्र सम्मेलन में आयी थीं। सम्मान के बाद मैंने और डॉ राकेश चंद्रा ने उनसे कुछ गाने का अनुरोध किया। वे पूरी उदासी के साथ बोलीं “रहने दो, अब कौन ठुमरी सुनता है”। हमने भी अनुरोध किया और कहा “आंटी लखनऊ अभी इतना भी नहीं बिगड़ा है”।
हॉल खचाखच भरा था लेकिन अधिकतर युवा छात्र थे। और शायद यही उनकी चिंता का कारण था। नाम नहीं बताऊँगा लेकिन उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश भी बैठे थे और उन्हें ७ बजे लखनऊ महोत्सव में किसी कार्यक्रम का उद्घाटन करने जाना था। उनका सहायक बार बार उन्हें फ़ोन कर याद दिलाने का प्रयास कर रहा था लेकिन वे फ़ोन नहीं उठा रहे थे। उसने फिर मुझे बुलाकर जज साहब से अनुरोध करने को कहा। मैं उनके पास गया और कहा कि शायद आपको कहीं जाना है। जज साहब ने मुझसे बड़े प्यार से कहा कि मैं जानता हूँ लेकिन आज शांति जी को सुनने का सौभाग्य मिला है मैं किसी भी हालत में ये अवसर नहीं छोड़ सकता। सहायक के बार बार फ़ोन करने के कारण मैंने अपना फ़ोन भी बंद कर दिया। ये लोग क्या जाने कि शांति जी क्या हस्ती हैं।
उधर शांति जी ने गाना शुरू किया। वे नर्वस थीं लेकिन फिर जो हुआ वह यादगार बन गया। पूरे एक घंटे वे गाती रहीं और सारे लोग उस आनंद में डूबे रहे जो अवर्णनीय था। बाद में उन्होंने ढेर सारा आशीर्वाद दिया।
आज आप चिरनिद्रा में लीन हो गईं और आपके साथ एक युग का अवसान हो गया।
विनम्र श्रद्धांजलि!
सनतकदा फेस्टिवल की आयोजिका माधवी कुकरेजा ने कहा कि हीरानंद वर्ष 1940 में लाहौर रहकर वापस लखनऊ आईं। सनतकदा फेस्टिवल 2010 में परफॉर्मेंस दी थी। वर्ष 2012 में उन्हीं की प्रेरणा से बेगम अख्तर की मजार का जीर्णोद्धार हुआ। उनकी ख्याति दुनियाभर में थी।
मशहूर शास्त्रीय संगीत गायिका और पद्मश्री से सम्मानित शांति हीरानंद चावला का निधन हो गया है। वह 87 साल की थीं। शुक्रवार सुबह उन्होंने गुरुग्राम स्थित एक अस्पताल में आखिरी सांस ली।
शांति हीरानंद लंबे समय से गैस्ट्रोएंट्राइटिस की समस्या से पीड़ित थीं। तबीयत बिगड़ने पर उन्हें फोर्टिस अस्पताल में भर्ती करवाया गया। शांति हीरानंद जी के बेटे निश्चिंत चावला ने मीडिया को बताया कि, ‘वह काफी समय से बीमार थीं और रविवार से अस्पताल में भर्ती थीं। लेकिन कल रात उनकी हालत बिगड़ गई और शुक्रवार सुबह उनका निधन हो गया।’
गौरतलब है कि शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में शांति हीरानंद काफी मशहूर थीं। उन्होंने ठुमरी, दादरा और गजल में बेगम अख्तर से संगीत की शिक्षा हासिल की थी। उन्होंने इस्लामाबाद, लाहौर,बोस्टन, न्यूयॉर्क, टोरंटो,और वाशिंगटन सहित दुनियाभर में कई जगह पर अपनी प्रस्तुति से दर्शकों के दिलों को जीता।
शांति हीरानंद ने संगीत के अलावा गजल में भी काफी नाम कमाया था। उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार बेगम अख्तर ने कहा था, ‘मेरी मौत के बाद अगर आप मेरी आवाज सुनना चाहते हैं तो इसे शांति के गायन के माध्यम से सुन सकते हैं।’ आपको बता दें कि गुरुग्राम में आज सुबह उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया है।

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