दुनिया के लाखों घरों में एकसाथ पड़ी डकैती, बेहिसाब उगाही

मेरा कोना

: न जाने कितने कम्‍प्‍यूटर-मालिकों ने भारी-भरकम फिरौती देकर अपनी जान बचायी : जुड़ी हुई दुनिया के हवाई खम्‍भों की असलियत बखान करती लाजवाब कहानी : पूरी दुनिया पर शायद सबसे बड़ा खतरा मंडरा रहा है साइबर-अपराधियों के हमले का :

हरजिन्‍दर

नई दिल्‍ली : आपके घर के एकमात्र कंप्यूटर को अचानक किसी हैकर की कुटिल चाल डस ले, तो आप क्या करेंगे? यह वही कंप्यूटर है, जिसे आपने इसलिए खरीदा था कि इससे आपके बच्चों को पढ़ाई में कुछ मदद मिलेगी। भले ही वे इस पर दिन भर गेम खेलते रहे, लेकिन इससे आपको यह संतोष तो मिलता ही है कि बच्चे अब कंप्यूटर निरक्षर नहीं हैं। इसी कंप्यूटर पर आप फेसबुक खोलते हैं और अपनी चार धाम यात्र की तस्वीरें शेयर करके 142 लाइक बटोर लेते हैं। और हां, इसी कंप्यूटर पर आपने अपनी यात्र के टिकट भी बुक किए थे। इसी पर आप लंदन में बैठे अपने भतीजे से बात करते हैं, तो इंटरनेशनल कॉलिंग का भारी खर्च बच जाता है। पूरे परिवार की ई-मेल तो खैर इसी के जरिये आती ही हैं।

लेकिन सोचिए, अगर आपके कंप्यूटर में दबे पांव आया एक वायरस कब्जा करके बैठ गया, तो आपके पास क्या विकल्प हैं? हैकर कह रहा है कि आपका कंप्यूटर अब मेरे कब्जे में है, 20 हजार रुपये की रकम खर्च कीजिए, तो मैं इसे मुक्त कर दूंगा। और आपको लगता है कि इतने में तो एक अच्छा-खासा नया कंप्यूटर आ जाएगा।सच तो यह है कि आप कुछ नहीं कर सकते। आप चाहें, तो थाने में जाकर रपट लिखा दें, लेकिन तय है कि इससे कुछ नहीं होने वाला। आपको कहीं से राहत नहीं मिलने वाली, बस नसीहतें मिलेंगी। कहा जाएगा कि आपको अपना कंप्यूटर अपडेट रखना चाहिए था, आप पुराना वजर्न भला क्यों इस्तेमाल कर रहे थे, आपका एंटी-वायरस बहुत अच्छा नहीं था, वगैरह। यह सब कुछ ऐसा ही है, जैसे आपके घर में चोरी हो और पुलिस आकर कहे कि आपने घर में तीन लीवर वाला ताला क्यों लगाया था? उसे तो चोर आसानी से तोड़ लेते हैं। आपको चार लीवर वाला ताला लगाना चाहिए था। अब आपके पास इसका कोई विकल्प नहीं बचेगा कि आप इस चोरी को अपनी किस्मत मान लें और चार लीवर वाला ताला खरीदने के लिए निकल पड़ें। यह जानते हुए कि चार लीवर वाला ताला भी चोरी से सुरक्षा की पक्की गारंटी नहीं है।

कंप्यूटर के मामले में आपके पास एक विकल्प यह है कि आप इसे फॉर्मेट करवा लें। इसकी हार्ड डिस्क सफाचट करवा कर इसमें सारे सॉफ्टवेयर नए सिरे से डलवा लें। लेकिन इस चक्कर में इसमें रखी आपकी बहुत सारी मेहनत, बहुत सारी प्रिय चीजें चली जाएंगी। बेटी का होमवर्क, बंटी की शादी के फोटोग्राफ, लता मंगेशकर के मेहनत से संजोए गए पुरानी एमपी-3, जिन्हें आप फुरसत के समय सुना करते थे। इन सबको खोने का आपको दुख तो होगा, लेकिन इन्हें बचाए रखने के लिए 20 हजार रुपये की कीमत बहुत ज्यादा है।लेकिन यह तब तक ही हो सकता है, जब कंप्यूटर किसी का निजी हो। समस्या अगर किसी बड़ी कंपनी या संगठन के कंप्यूटरों और नेटवर्क में आ रही हो, तो यह इतना आसान नहीं होगा। उनके कंप्यूटरों में रखा डाटा अक्सर बेशकीमती होता है।

जैसे, शुक्रवार को जब रेनसमवेयर का पहला हमला हुआ, तो उसका सबसे बड़ा शिकार ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना बनी। उसके कंप्यूटरों में संगठन का हिसाब-किताब ही नहीं, बल्कि मरीजों का विस्तृत ब्योरा और उनका पूरा मेडिकल हिसाब-किताब तक है। हालत यहां तक पहुंच गई कि गंभीर हालत वाले मरीजों का इलाज भी इस साइबर हमले की वजह से रुक गया। यही हाल उन तमाम कंपनियों का भी हुआ, जिनके कंप्यूटरों में मौजूद उनका महत्वपूर्ण डाटा फिरौती वसूलने वालों के रहमोकरम पर पहुंच गया। कुछ रिपोर्टो में बताया गया है कि कई कंपनियों ने तो फिरौती देकर जान छुड़ा ली। बाकी कंपनियां हो सकता है कि इसके आकलन में जुटी हों कि फिरौती देना सस्ता पड़ेगा या डाटा से हाथ धोना।

आपकी तरह ही इन कंपनियों और संगठनों को भी कोई मदद नहीं मिल रही। उन्हें भी कुछ मिल रही है, तो बस नसीहतें। ब्रिटेन की स्वास्थ्य योजना के लिए हर जगह बस यही पूछा जा रहा है कि उसने अपनी विंडोज को अपडेट क्यों नहीं किया? वह भी तब, जब खुद माइक्रोसॉफ्ट सुरक्षा की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ चुका है। उसकी एंटी-वायरस व्यवस्थाओं पर भी सवाल पूछे जा रहे हैं। कुछ लोगों की आपत्ति यह है कि ये सारी नसीहतें बस कुछ कंपनियों का व्यापार बढ़ाने वाली हैं, खासकर उन कंपनियों का, जो साइबर सुरक्षा के काम में लगी हैं। साइबर बीमा जैसी चीजों की भी बात होने लगी है। हालांकि इसमें आपत्तिजनक कुछ भी नहीं है। अपराध हमेशा से सुरक्षा के कारोबार को पनपने का अवसर देता रहा है। दरवाजे, कुंडी और ताले- सबका कारोबार इसी वजह से पनपा और बढ़ा है। यह तो सदियों से होता रहा है।

आपत्तिजनक तो दरअसल यह है कि इतना बड़ा साइबर हमला हो गया, 150 से ज्यादा देशों के लाखों कंप्यूटर इसके शिकार बन गए, लेकिन विश्व के किसी भी बड़े नेता ने इस पर अपना मुंह नहीं खोला। उत्तर कोरिया से लेकर सीरिया और अफगानिस्तान तक सबको सुधारने का जिम्मा लेने वाले नेता भी इस मसले पर कुछ नहीं बोल रहे। कोई नहीं कह रहा कि अपराधी जहां भी हो, उसे पकड़ लिया जाएगा। वैसे कहने को हमारे पास संयुक्त राष्ट्र है, इंटरपोल है, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय है और ऐसी ही न जाने कितनी संस्थाएं हैं, लेकिन किसी में भी साइबर अपराधियों को पकड़ने का आश्वासन नहीं है। यह मान लिया गया है कि लोग अपने डाटा की सुरक्षा के लिए खुद जिम्मेदार हैं।

सच यही है कि हमने कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफोन वगैरह के जरिये पूरी दुनिया को तो जोड़ दिया है, लेकिन दुनिया की व्यवस्थाएं आपस में नहीं जुड़ीं। हमारे कंप्यूटरों ने जितना विकास किया है, दुनिया के सामाजिक नेटवर्क ने उतना विकास नहीं किया। दुनिया के किसी भी कोने में बैठा साइबर अपराधी पूरी दुनिया में कहीं भी कहर ढा सकता है। उसे सजा देना तो दूर, उसे पकड़ने की भी कोई पक्की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। हम कंप्यूटर को अपग्रेड करने की बात तो करते हैं, लेकिन असल जरूरत विश्व समाज को अपग्रेड करने की है। जब तक यह नहीं होता, आपके लिए बेहतर यही है कि आप बाजार जाएं और नए किस्म के दरवाजे, खिड़कियां और ताले खरीद लाएं।

हरजिंदर दैनिक हिन्‍दुस्‍तान के हेड-थॉट हैं। यह आलेख हिन्दुस्तान के सम्‍पादकीय से हमने साभार लिया है।

हम क्षमा चाहते हैं कि हमारे संस्‍थान के कतिपय तकनीकी कारणों से हम

16 मई-17 को छपा यह लेख तत्‍काल नहीं प्रकाशित कर पाये।

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