एक आलोक बोस हैं, और एक थे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: एक ने बीमारी का इलाज करने के लिए इस्‍तीफा दे दिया, दूसरे ने बीमारी के लिए झूठ पर झूठ बोला : 55 साल पहले चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस को इस्‍तीफा देने पर मजबूर करा दिया था पण्डित नेहरू ने : अटार्नी जनरल रहे सीएम सीतलवाड़ की किताब माई लाइफ में दर्ज है यह हादसा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह घटना सन-63 के आसपास की है। तब सर्वोच्‍च न्‍यायालय के एक जस्टिस हुआ करते थे इमाम जाफर। पता नहीं क्‍या था उन्‍हें, लेकिन उनके बारे में यह पता चला कि वे बीमार रहा करते थे। जाहिर है कि कई-कई महीनों तक वे अदालत में ही नहीं पहुंच पाते थे। मामलों पर तारीख पर तारीखें लगती जा रही थीं। लेकिन उनकी नौकरी बनी रहे और उनकी हाजिरी लगती ही रहे, इसके लिए जस्टिस इमाम जाफर ने एक नया तरीका खोज लिया। उन्‍होंने लोगों को बता दिया कि अदालत के मुकदमों को निपटाने के लिए आजकल बहुत बिजी चल रहे हैं।

लेकिन जस्टिस इमाम जाफर का यह बहाना किसी से छिपा नहीं रह पाया। बहुत पहले ही लोगों को पता चल गया कि इमाम जाफर अब बेईमानी पर आमादा हैं। वे अपनी बीमारी और उसके इलाज से चूंकि परेशान हैं, चुनांचे अदालत का काम कर पाना उनके लिए मुमकिन नहीं है। चूंकि यह उनकी बीमारी का मामला होने के चलते जजों और वकीलों में सैम्‍पैथी बढ़ चुकी जा रही थे। लेकिन मुकदमों का क्‍या किया जा सकता था, वह तो सुरसा के मुंह की तरह लगातार बढ़ते ही जा रहे थे। सुनवाई न होने के चलते अदालतों में वकील भी बेहाल थे, और मुअक्किल भी हलकान।

जी हां, यह किस्‍सा बयान किया है इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके पलक बसु ने। अपने एक लेख में जस्टिस पलक बसु ने जस्टिस इमाम जाफर को लेकर बहुत गहन तो नहीं, लेकिन सहज, सुगम्‍य और पठनीय तरीके से पेश कर दिया है। उन्‍होंने बताया है कि उस घटना के वक्‍त अटार्नी जनरल हुआ करते थे एमसी सीतलवाड़, और सॉलिसिटर जनरल हुआ करते थे सीके दफ्तरी। सीएम सीतलवाड़ ने जस्टिस इमाम जाफर की घटना का विस्‍तार से लिखा है। जबकि जस्टिस पलक बसु ने सीतलवाड़ की किताब के संदर्भ में उस घटना का उल्‍लेख कर सच पर से पर्दा उठाया है।

तो किस्‍सा यह आगे बढ़ा कि जब दिक्‍कतों का पहाड़ खड़ा होने लगा तो वकीलों की ओर से देश के सर्वोच्‍च न्‍यायाधिकारी जस्टिस बीपी सिन्‍हा के पास अर्जियां लगनी शुरू हो गयीं। जस्टिस सिन्‍हा ने जस्टिस इमाम जाफर से बातचीत की और एक प्रस्‍ताव रख दिया कि वे अगर अपनी बीमारी के चलते न्‍यायिक कार्यों को निपटाने में असमर्थ हैं तो उन्‍हें अपना इस्‍तीफा दे देना चाहिए। लेकिन जस्टिस जाफर इसके लिए कत्‍तई सहमत नहीं थे। इसके बाद तो तनाव तो चरम पर पहुंच गया।

नतीजा जस्टिस सिन्‍हा ने इस मामले को सीधे प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक पहुंचा दिया। खबर पाते ही तत्‍काल प्रधानमंत्री ने हस्‍तक्षेप कर सीधे जस्टिस इमाम जाफर से बातचीत करना शुरू किया। नतीजा यह निकला कि जस्टिस इमाम जाफर को इस्‍तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा।

अब जरा एक अन्‍य जज की कहानी सुनिये। आलोक कुमार बोस नामक यह शख्‍स करीब पांच साल पहले बाराबंकी में जिला सत्र एवं सेशंस जज के पद से रिटायर हुए। कैरियर बेदाग था। इसलिए सरकार ने सन-13 में उन्‍हें राज्‍य फोरम में सदस्‍य के तौर पर नियुक्‍त कर दिया। तीन साल तक तो वे जमकर काम करते रहे, लेकिन सन-17 की फरवरी को उन्‍हें हृदय रोग हो गया। वे समझ गये कि उनकी इस बीमारी का इलाज काफी चलेगा। ऐसे में उन्‍होंने पूरी ईमानदारी के साथ तय किया कि जब वे सेवा नहीं कर पा रहेंगे, तो उन्‍हें अवकाश लेकर सरकारी खर्च पर अपना इलाज भी नहीं कराना चाहिए। ऐसे में आलोक बोस ने तय किया, और अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। इस वक्‍त वे दिल्‍ली में हैं, और अपना इलाज करा रहे हैं। सरकारी खर्चे पर नहीं, अपनी मेहनत से कमाई रकम से।

आलोक कुमार बोस से जुड़ी खबर देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

ईमानदारी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *