: पुण्यप्रसून ने पत्रकारिता की सीमाएं तोड़ीं, पर हमारा निशाना तो निरंकुश सत्ता पर है : : हिन्दी पत्रकारिता के शिखर-पुरूष कमर वहीद नकवी से पत्रकारिता के ताजा विवादों पर बातचीत : दूध के धुले नहीं रहे हैं पुण्यप्रसून :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक पत्रकार कभी भी किसी भी मामले में पक्षकार नहीं बन सकता। उसका काम निगरानी करना होता है, इसी दायित्व के तहत ही कोई भी पत्रकार आम आदमी तक सटीक सूचनाएं पहुंचा सकता है। उसकी निरपेक्षता ही उसका जीवन है। इसमें तनिक भी ढोल-पोल हुआ नहीं, कि पत्रकारिता की असल इमारत पर चोट पहुंच सकती है। इसीलिए सबसे बड़ी जरूरत इस बात की होती है कि ऐसे धर्म-च्युत पत्रकार की निंदा की जाए। लेकिन एबीपी न्यूज को लेकर भड़के ताजा विवाद के मामले में हमें पुण्यप्रसून बाजपेई को छोड़ कर उस बड़े खतरे के खिलाफ मुखालिफत का मोर्चा खोलना पड़ेगा, जो एक निरंकुश सत्ता का है।
मैंने निजी तौर पर भी यही मानता हूं। मेरा मानना है कि यह एक ऐसा प्रकरण सामने आ गया है, जहां हमें बहुत सतर्कता के साथ कदम उठाना पड़ेगा। देश के वरिष्ठ पत्रकार कमर वहीद नकवी भी इसी बात की हिमायत कर रहे हैं। उनका कहना है कि पुण्य प्रसून ने अपने पिछले कामधाम में काफी गलतियां की हैं। मसलन, मुजफ्फर नगर के दंगों की रिपोर्टिंग, आप पार्टी के चाकरी नुमा हैसियत रखना, एक कुख्यात सुधीर चौधरी के तलवे चाट कर उसे पत्रकारिता में तनखइया करार देने से बचाने की कोशिशें करना। वगैरह-वगैरह।
हिन्दी पत्रकारिता में बड़ा नाम हैं कमर वहीद नकवी। पुण्यप्रसून बाजपेई को एबीपी न्यूज से निकाल बाहर किये जाने के मामले में वे पुण्य प्रसून का मामला नहीं देख रहे, बल्कि वे इस पूरे माहौल में सत्ता की ओर से गहराते राजनीतिक षडयंत्रों के कोहरे को महसूस कर रहे हैं। सवाल मेरा नहीं है, निजी तौर पर भी मैं पुण्यप्रसून जैसे पत्रकारों को एक शातिर, बेहद चालाक और कुल-कलंक मानता हूं, जो उंगली पर खून लगा कर खुद को शहीद साबित करने के लिए शोर-गुल का माहौल भड़काते घूमा करते हैं।
लेकिन इन सब के बावजूद मैं नकवी जी के साथ हूं। कारण दो हैं। पहला तो सत्ता के षडयंत्रों को नाकाम करना किसी भी जन पक्षधर पत्रकार का पहला कदम होना चाहिए। और दूसरा यह कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं है।
खैर, एबीपी न्यूज से भड़के विवाद को लेकर मैंने कमर वहीद नकवी जी से बातचीत की। पेश है यह पूरी बातचीत:-
पत्रकारिता, पुण्यप्रसून और निरंकुश सत्ता