धान को ज्यादा पानी नहीं, नमी चाहिए, मिथेन की बात सफेद झूठ
: हरित क्रांति का आंदोलन फैलाने में अहम भूमिका निभायी : हमारी प्रगति के खिलाफ बाकायदा षडयंत्र रचते हैं बडे देश : शेखचिल्ली के सपने नहीं, हकीकत साबित करना है ख्वाहिश :
कुमार सौवीर
वाराणसी : अफवाह : धान के खेत में पानी की बहुत जरूरत होती है। बिना अत्यधिक पानी के धान की उपज की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है। इसी लिए धान के खेतों में तो खड़ा पानी रखना चाहिए।
वास्तविकता : धान के खेत को खड़ा पानी नहीं, बल्कि नमी चाहिए होती है। यह सही है कि धान को ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। गेहूं के खेत से ज्यादा पानी की जरूरत होती है, लेकिन पानी-पानी की नहीं।
अफवाह : धान के खेतों से एक खतरनाक गैस निकलती है जिसका नाम है मिथेन। यह गैस पृथ्वी के वायुमंडल की सुरक्षा के लिए आवश्यक ओजोन परत को बुरी तरह हानि पहुंचाती है।
वास्तविकता : यह एक झूठी और मनगढंत अफवाह है। इस अफवाह का स्रोत अमेरिका से शुरू होता है जिसका मकसद बेहतर धान उत्पादक देशों के खिलाफ षडयंत्रों को किसी भी तरह जारी रखना है।
ऐसे एक नहीं, सैकड़ों-हजारों झूठों की बखिया यह कृषि वैज्ञानिक सिरे से ही उधेड़ सकता है, क्योंकि पूरा जीवन शोधों व अनुसंधानों में गुजार देने के चलते उसे बखूबी पता है कि दरअसल कोई भी ताकतवर देश किन-किन अफवाहों से फैला कर विकासशील देशों की प्रगति को अवरूद्घ कर सकता है। इस शख्स को खूब पता है कि कैसे बंजर इलाके में सोना बोया जा सकता है और कैसे आसमान पर सब्जवबाग रोपा जा सकता है। उन्हें खूब पता है कि रेगिस्तान में चावल और बांस वाले इलाकों में अंगूर का प्रचुर उत्पादन मुमकिन है।
आप इस शख्स की बात सुनेंगे तो लगेगा मानो कोई घाघनुमा शेखचिल्ली अपनी चिलबिल्ली वाली मूर्खतापूर्ण कारस्तांनियों को बिखेर-कूट रहा है। उनका दावा है कि रेगिस्तान तक में इतना बेहिसाब चारा उगाया व संरक्षित किया जा सकता है कि अकेला राजस्थान ही पूरे देश को वहीं से दूध व पशु उत्पादों की आपूर्ति हो सकती है।
आइये, इस व्यक्तित्व से आपका भी परिचय करा दिया जाए। चार दशक पहले भूख से बिलबिलाते भारत की क्षुधा शांत करने के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने के अभियान में जिन लोगों ने अपनी प्रभावकारी भूमिका अदा की है, निःसंदेह पंजाब उनमें सर्वोच्च है। और काफी हद तक पंजाब सिंह भी।
अपने नाम के ही अनुरूप उन्होंने हरित क्रांति में अपनी भूमिका खुद तय की थी और उसी हरित राजपथ पर चलते हुए आज वे पूरे देश में कृषि सुधार के प्रमुख नेताओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने इस दौरान हरित क्रांति का गढ रहे पूसा इंस्टीच्यूट के निदेशक के साथ ही वहां के कुलपति का भी काम सम्भाला और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक पद पर भी काम किया।
हाल ही वे काशी विश्वविद्यालय में कुलपति हुआ करते थे। पंजाब सिंह। उनका यह नाम कब और क्यों पड़ा, पंजाब सिंह को नहीं पता। उन्हें इस नाम की उत्पेत्ति जानने की कोई ख्वाहिश भी नहीं है। उन्हें तो यह भी पता नहीं है कि पीठ-पीछे लोग एग्रीकल्चर वाले पंजाब सिंह कहते हैं, और उनके हिसाब पंजाब सिंह के बारे में नि:संदेह यही कहा जा सकता है कि एग्रीकल्चर वाला शख्स हर कल्चर में एग्री होता है।
प्रोफेसर पंजाब सिंह पर प्रकाशित रिपोर्ट के अगले अंक को देखने के लिए कृपया क्लिक करें:- एग्रीकल्चर का मतलब जो हर कल्चर से एग्री हो
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