सच बात तो यह है “बाबू जी” कि, तुम झूठे हो

मेरा कोना

: मुजफ्फरनगर दंगे में जो बयान दिया आला अफसर ने, वह है शर्मनाक झूठ : गृह प्रमुख सचिव सरासर झूठ बोल गये, वह भी जांच आयोग के सामने : सरासर झूठे हलफनामे दायर करते रहे आरएम श्रीवास्तमव : ऐसे ही बाबुओं ने कलंकित किया है यूपी की नौकरशाही को : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- बारह :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हकीकत तो यह है कि यूपी के आईएएस अफसरों पर जो कालिख पुती हुई है, उसका कारण कतिपय बेईमान अफसर ही हैं। लेकिन हैरत की बात है कि ऐसे चंद अफसरों की करतूतों की ओर से कोई भी आईएएस अफसर न आंख देता है और न ही कान। आगे से पीछे तक हर अफसर केवल अपनी धुन में मस्त है। जब सम्मान की बात होती है तो इन्हीं  अफसरों के नेता आर्तनाद कर बैठते हैं कि:- “बाबू पुकार कर मुझे मत अपमानित करो, बाबू शब्द हमारे लिए किसी गाली से कम नहीं है।”

आइये हम दिखाते हैं कि आईएएस में ऐसे-कैसे आईएएस अफसर मौजूद हैं, उनकी करतूतें और उनकी करनी कितनी घिनौनी है। यह झूठ बोलते हैं, खुलेआम। वे बेईमानी करते और कराते हैं। वे अदालतों में झूठे शपथपत्र दाखिल करते हैं। अपने अधीनस्थों को मोहरा समझते हैं। उन्हें प्रताडि़त करते हैं। और यह सब कुछ केवल इसलिए करते रहते हैं ताकि वे अपनी बेईमानियों पर पर्दा डाल सकें। और इसके लिए वे अपने आकाओं के सामने रीढ़विहीन लुंज-पुंज लोथड़े की तरह पेश करते रहते हैं।

आइये आरएम श्रीवास्तव का मामला ही देख लीजिए। यह गृह विभाग के प्रमुख सचिव रह चुके हैं और उनकी बेहूदगी से आजिज होकर इसी सरकार ने उन्हें एक झटके से उस पद से निकाल बाहर कर दिया था। मुजफ्फरनगर दंगे में आप इनकी हरकतों को देखेंगे तो दांतों तले उंगलियां चबा डालेंगे। फिलहाल केवल इसी एक प्रकरण को देख लीजिए, जो उन्होंने उस दंगे पर गठित जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग के सामने हलफिया बयान दिया था। इस आयोग की रिपोर्ट इंटरनेट पर आ चुकी है, इससे साबित हो चुका है कि आरएम श्रीवास्तव का बयान बेहूदा और सिर्फ झूठ का पुलिंदा ही था।

आयोग में श्रीवास्तव ने बयान दिया कि दंगे में तब के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दुबे की उनकी लापरवाही के चलते मुजफ्फरनगर की नियुक्ति के सात दिन में ही दुबे को वहां के एसएसपी पद से निलम्बित कर दिया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि दुबे का तबादला 12 वें दिन लखनऊ में डीजीपी आफिस में हुआ और उसके 18 वें दिन उन्हें निलम्बित किया।

यह है यूपी के बाबूगिरी की असलियत। आयोग की रिपोर्ट में दर्ज है कि श्रीवास्तव के बयान में शासन ने दुबे को 4 सितम्बंर को सस्पेंड कर दिया, लेकिन हकीकत यह है कि यह निलम्बन 15 सितम्बर को ही हो पाया था। वह भी मुजफ्फरनगर की तैनाती से नहीं, बल्कि डीजीपी आफिस की तैनाती के दौरान।

अब जरा सुन लीजिए कि आरएम श्रीवास्तनव ने यह झूठ क्यों बोला। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेश संजय मोहन को कुख्यात शिक्षक पात्रता घोटाला में सुभाष चंद्र दुबे ने सात फरवरी-12 को दबोचा था और उनके साथियों के साथ 85 लाख रूपयों की नकदी बरामद की थी। उस वक्त दुबे कानपुर देहात के कप्तान थे। सूत्र बताते हैं कि इतने बड़े घोटाले पर दुबे की प्रशंसा करने के बजाय श्रीवास्तव ने संजय को बचाने के लिए सिफारिशें कीं, लेकिन जब ऐसा नहीं हो सका तो उन्होंने दुबे को कई बार लांछित-बेइज्जत भी किया।

इसी भड़ास को निकालने के लिए श्रीवास्तव ने कूट-रचना की और मुजफ्फरनगर में कवाल दंगा होते ही उसका सारी ठीकरा दुबे पर फोड़ दिया। आयोग के सामने झूठ बोल कर उन्होंने यह पुख्ता कर दिया कि इस मामले में दुबे की छीछालेदर कर दी जा सके।

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