जाफरी-बेटियों को निर्वस्त्र कर फूंका गया, झूठ लिखा था अरूंधति ने

मेरा कोना

: ‘हम सब सन्न और स्तब्ध हैं। हम सभी भाई-बहनों में सिर्फ मैं भारत में रह रहा हूं.. मेरे भाई व बहन अमेरिका में रहते हैं.’ : अहमदाबाद दंगे पर साफ झूठ लिखा अरूंधति राय ने : कोई आपकी गलती बताए, तो अच्छा यही है कि उसे सुधारें और माफी मांग लें :

रामचंद्र गुहा

नई दिल्‍ली : ( क्षमा-याचना से चित्‍त निर्मल करने वाले इस आलेख का पहला हिस्‍सा आप गतांक में पहले ही पढ़ चुके हैं। अब इस आलेख का दूसरा और अंतिम हिस्‍सा पढि़ये)

वीरेंदर सहवाग के प्रसंग ने मुझे एक पुरानी घटना याद दिला दी। उसमें एक सेलिब्रिटी ने अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए आधा-अधूरा सच नहीं, बल्कि सरासर झूठ बोला था। वह वाकया साल 2002 में गुजरात में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद हुआ था। उस हिंसा में हजारों मुस्लिमों के साथ पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी मारे गए थे। जब अहमदाबाद में उनके घर को हिंसक भीड़ ने घेर लिया था, तब उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं को मदद के लिए फोन किया। मगर उन्हें सहायता नहीं मिली और सोसायटी में रहने वाले अन्य तमाम लोगों के साथ वह भी भीड़ की भेंट चढ़ गए।

दंगा थमने के बाद उपन्यासकार अरुंधति राय ने उन पर एक लेख लिखा। उन्होंने लिखा था कि भीड़ ने सांसद को मारने से पहले ‘उनकी बेटियों को निर्वस्त्र किया और जिंदा जला दिया’।

ये तथ्य बिना पुष्ट किए लिखे गए थे, जिस पर सर्वप्रथम ऐतराज जाफरी के बेटे ने जताया। उन्होंने लिखा, राय के लेख को पढ़ने के बाद । ऐसा इसलिए, क्योंकि ‘हम सभी भाई-बहनों में सिर्फ मैं भारत में रह रहा हूं.. मेरे भाई व बहन अमेरिका में रहते हैं..’।

साल 2002 के फरवरी व मार्च में गुजरात में हुए दंगे वाकई बहुत भयानक थे। अंग्रेजी मीडिया ने उसकी खूब (और संवेदनशीलता से) रिपोर्टिग की थी। तब राज्य और केंद्र, दोनों जगह भाजपा की सरकारें थीं और वह रक्षात्मक मुद्रा में आ गई थी। मगर राय की अपुष्ट लेखनी ने उसे जवाबी हमला करने का मौका दे दिया। पार्टी के नेता कहने लगे कि मीडिया नए तथ्यों को ‘गढ़कर’ सिर्फ हिंदुओं को बदनाम करने में दिलचस्पी ले रहा है। एक बड़े नेता ने तो यह भी कहा कि राष्ट्रवादी तत्वों को गलत रूप में चित्रित करने के लिए लेखक कल्पनाशीलता का सहारा ले रहे हैं।

बहरहाल, लेख छपने के तीन हफ्ते के बाद अरुंधति राय ने माफी मांग ली।

सहवाग सौभाग्यशाली थे कि जब उन्होंने यह गंभीर गलती की, तो ट्विटर जैसा मंच अस्तित्व पा चुका था, इसीलिए वह संभल सके। मुङो उम्मीद है कि सहवाग प्रकरण पर वे तमाम अन्य सेलिब्रिटी भी ध्यान देंगे, जिन्होंने अपने क्षेत्र में मुकाम हासिल कर लिया है और इतर विषयों पर टिप्पणी करने की इच्छा रखते हैं। यदि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं या नजरअंदाज करते हैं, फिर चाहे वह जान-बूझकर किया गया हो या अज्ञानता में, तो वे न सिर्फ अपनी छवि खराब करते हैं, बल्कि देश के नाजुक सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

यह तो सहवाग प्रकरण का पहला सबक है। दूसरा सबक यह कि अगर कोई आपकी गलती बताए, तो अच्छा यही है कि उसे सुधारें और माफी मांग लें। मुझे कुछ संतोष हुआ, जब सहवाग ने आंशिक माफी मांगी, पर खुशी तब मिली, जब दूसरे के दबाव में ही सही, उन्होंने उस ट्वीट को हटा लिया।

गलती करना इंसानी फितरत है, पर हमारे कुछ फिल्मी सितारों, क्रिकेटरों, वैज्ञानिकों, उद्यमियों और सबसे ऊपर राजनेताओं को यह लगता ही नहीं कि वे कभी गलती भी करते हैं। गलती बताने के बाद सहवाग ने जो किया, वह उन्हें याद रखना चाहिए। ऐसा करना उन्हें और मानवीय ही नहीं, अधिक से अधिक पसंदीदा भी बनाएगा। ( समाप्‍त )

बहु-आयामी प्रतिभा के स्‍वामी रामचंद्र गुहा का नाम देश में चोटी के इतिहास-लेखकों में गिना जाता है।

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