पोर्न साइटों पर रोक के लिए चार हफ्ते में बनाएं तंत्र

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सर्वोच्च न्यायाधीश ने ली सरकार की खिंचाई

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को अश्लील साइटों पर रोक के लिए एक तंत्र बनाने को लेकर चार हफ्ते का समय दिया। खासकर उन साइटों पर जिन पर बाल अश्लीलता दिखाई जाती है।

हालांकि ऐसे सवालों पर सरकार ने कोर्ट से कहा कि देश में अंतरराष्ट्रीय पोर्न (अश्लील) साइटों पर रोक लगाना मुश्किल है। इस समस्या का हल निकालने के लिए और समय की जरूरत है ताकि विभिन्न मंत्रालयों से मंत्रणा हो सके।

प्रधान न्यायाधीश अल्तसम कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने जब ऐसे गंभीर मुद्दे पर इतना समय लगाने को लेकर सरकार की खिंचाई की तो सरकार की ओर से इस मुद्दे पर व्यापक सलाह- मशविरा की जरूरत की दलील दी गई।

अपर सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने इस मामले में जवाब दायर करने के लिए और समय की मांग की। पीठ इंदौर निवासी वकील कमलेश वासवानी की याचिका की सुनवाई कर रही थी। वासवानी की दलील थी कि अश्लील वीडियो देखना कोई अपराध नहीं है लेकिन पोर्नोग्राफिक साइटें प्रतिबंधित कीं जानी चाहिए। ऐसा इस वजह से कि यह महिलाओं के खिलाफ अपराध के प्रमुख कारणों में एक है।

अधिवक्ता विजय पंजवानी के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है कि इंटरनेट कानून नहीं रहने की वजह से लोगों को अश्लील वीडियो देखने का प्रोत्साहन मिलता है क्योंकि यह अपराध नहीं है। बाजार में 20 करोड़ से अधिक अश्लील वीडियो या क्लिपिंग्स खुलेआम उपलब्ध हैं। उन्हें इंटरनेट के जरिये सीधे डाउनलोड कर लिया जाता है या दूसरी वीडियो सीडी बना ली जाती है।

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