:अस्पताल में पड़ी घायल बच्ची, पुलिस ने झाँका तक नहीं: शर्मनाक हालत, कोई नहीं आया तो रिपोर्ट दर्ज न होगी:
कुमार सौवीर
लखनऊ : उप्र सरकार में मुख्य सचिव से लेकर दारोगा-तहसीलदार तक के किसी भी अफसर या कर्मचारी के सरकारी फोन पर आप जब भो काल करेंगे तो सिर्फ यही हल्ला-शोर मचना शुरू हो जायेगा :- चुआ चोप, चुआ चोप।
कुछ देर तक आप इस भाषा को सुनकर स्तब्ध ही रह जायेंगे। लेकिन अगली लाइन से ही स्पष्ट हो पायेगा कि या सरकारी उपलब्धियों पर बनी रिंग टोन है जिसमें महिलाओं की सुरक्षा-संरक्षण और सम्मान के लिए प्रयास और दावों का संकल्प दर्ज है।
लेकिन प्रदेश की महिलाओं को लेकर यह संकल्प नहीं दिखता है। आप जौनपुर के जिला अस्पताल के पास सड़क पर 17 फरवरी की रात मिली बेहोश बच्ची का मामला देख लीजिये, तो आपको इस सरकारी नारे की हकीकत खुद दिख जायेगी। इस हादसे पर मैंने अपनी पिछली पोस्ट पर लिखा है। आप देख लीजिये उस खबर को।
इस बच्ची के गुप्तांग पर चोट थी, लेकिन पुलिस ने उस बच्ची के पास जाने तक की जहमत नहीं उठायी। सहारा के पत्रकार हसन कमर दीपू का कहना है कि 4 दिन पहले उन्होंने पुलिस कप्तान राजू बाबू से बात की तो उनका जवाब था कि:- “हादसे की रिपोर्ट लिखने के लिए कोई आया ही नहीं।” पत्रकार राजेश श्रीवास्तव इसकी तस्दीक करते हैं।
मेरे हिसाब से पुलिस कप्तान का यह जवाब निहायत शर्मनाक और अमानवीय है। अगर कोई इसकी रिपोर्ट करने नहीं आया तो पुलिस ने खुद उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं करायी? तब जबकि वह लावारिस बच्ची है। सवाल यह भी है कि क्या अगर कोई किसी हादसे में मर जाये तो उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाएगी? सही है कि अगर ऐसे बेशर्म पुलिस अफसर को कप्तानी मिल जाती है तो सरकार का बंटाधार तय मानिए।
आज मैंने आईजी बनारस से फोन पर बात की। वे बोले:- “आप डिटेल्स दीजिये। रिपोर्ट जरूर दर्ज होगी”
एसपी शिवशंकर यादव ने फोन पर मुझे बताया कि उन्हें “इस बच्ची के अस्पताल में होने की खबर मिली थी, लेकिन उसके सर पर चोट की खबर थी।”
मैंने इस पर पूछा” अगर कोई लावारिस बच्ची को घायल अवस्था में मिलेगी तो उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाएगी?” यादव जी बोले:- नहीं नहीं। जरूर दर्ज होगी। मैं अभी इस बारे में कार्रवाई करता हूँ।
लेकिन असल सवाल तो पुलिस की संवेदनहीन कार्यशैली पर है, जिसने युवा जोश युवा जोश का नारा चुआ चोप, चुआ चोप में तब्दील कर दिया।