: प्रिंस लेनिन के मामले में वकील खामोश बैठे हैं, जैसे जागेंद्र सिंह हत्याकांड में पत्रकारों ने कान में तेल डाल रखा था : बात-बात पर हंगामा करने वाला अधिवक्ता समुदाय पिछले एक महीने से खामोश है : लेनिन ने जागेंद्र का मामला सम्भाला था, मैं भी लेनिन के मामले में जुटा हूं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बधाई दोस्तों। अब आप चाहे वह वकील हों या फिर पत्रकार, आपकी कार्यशैली और आपका कार्य-चरित्र चूंकि एक-समान है, इसीलिए ही मैं आप सभी को आपकी इस समानता के लिए बधाई देना चाहता हूं। लेकिन हैरत की बात है कि आप दोनों ही समुदाय-प्रवर दुनिया की बात भले ही भारी-मोटी लन्तरानियां फेंका-छौंका करें, लेकिन अपने खुद की जात-बिरादरी का मामला देखते ही अपना मुंह बिचका देते हैं। एक अजब सा हिकारत भाव अपने चेहरे और कामकाज की शैली पर छा जाता है। कम से कम दो घटनाएं तो हमारे सामने हैं ही, जिस के आधार पर मैं आपकी पीड़ा आप सब के सामने व्यक्त कर सकता हूं।
जागेंद्र सिंह को जिन्दा फूंके जाने के हादसे पर मेरी अन्य स्टोरीज को पढ़ने के लिए अगर इच्छुक हों, तो कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा
पहली घटना : यहां मैं ठीक तीन साल पहले जांबाज पत्रकार जागेंद्र सिंह के संदर्भ में कह रहा हूं, जिसे शाहजहांपुर में अखिलेश यादव सरकार के दबंग मंत्री राममूर्ति वर्मा की साजिश के चलते वहां की कोतवाली शहर के कोतवाल श्रीप्रकाश राय और उसके साथी पुलिसवालों ने मार डाला था। जागेंद्र की लेखनी ही उसकी मौत बन गयी थी। जागेंद्र की लेखनी से राममूर्ति वर्मा बेहद खफा था। एक दिन कोतवाल व अन्य पुलिसदल ने उसके घर घेराबंदी की और वहां मौजूद जागेंद्र सिंह को दबोच कर उस पर पेट्रोल डाल कर जिन्दा फूंक डाला। इसका खुलासा जागेंद्र ने अपने मृत्यु-पूर्व बयान पर किया था। लेकिन पत्रकारों ने जागेंद्र का साथ नहीं दिया। बल्कि वे उसे ब्लैकमेलर और माफिया ही साबित करने लगे। इतना ही नहीं, शाहजहांपुर के पत्रकारों ने राममूर्ति वर्मा को पत्रकारिता दिवस, श्रमिक दिवस आदि अपने हर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित कर उसे सम्मानित किया।
पुलिस से जुड़ी खबरों को देखने के लिए क्लिक कीजिए:- बड़ा दारोगा
लेकिन मैंने शाहजहांपुर कर पहुंच कर इस मामले की गहरी छानबीन शुरू कर दी। हालांकि उस वक्त मैं बेहद बीमार था, ब्रेन-स्ट्रोक का एक जबर्दस्त आघात का गहरा असर मुझ पर काफी था। मैंने छानबीन में पाया कि जागेंद्र के ईमानदार और जुझारू तथा अपने कामकाज में बेहद निष्ठावान पत्रकार है। अपनी इसी फाइंडिंग के आधार पर मैंने ताबड़तोड़ स्टोरीज छापनी शुरू कर दी। यह क्रम महीनों चला, और हंगामा खड़ा हो गया। लखनऊ में बैठे पत्रकार नेता इस मामले में अपनी पूंछ अपने पेट में घुसेड़े बैठे थे, लेकिन मेरे प्रयासों के चलते वे अपने-अपने बिल से बाहर निकलने पर मजबूर हो गये और फिर जागेंद्र सिंह को न्याय दिलाने का अभियान शुरू हो गया। हालांकि पूरी सरकार मंत्री को बचाने में जुटी थी, इसके बावजूद सरकार ने मामला दबाने के लिए जागेंद्र के आश्रितों को बीस लाख रूपयों की मदद की। उधर मामले के अपराधियों ने भी अपनी खाल बचाने के लिए उस परिवार को तीस लाख रूपयों का भुगतान किया।
और तो और, मेरी स्टोरीज से उभड़े माहौल से बौखला कर सरकार यह तक ऐलान कर दिया था कि वह सीबीआई जांच के लिए तैयार है। हालांकि बाद में भारी मुआवजा अदा कर मामला रफादफा कर दिया गया था।
अधिवक्ता-जगत से जुड़ी खबरों को देखने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
दूसरी घटना : पिछली सात मई, और 30 मई को ख्यातिनाम अधिवक्ता प्रिंस लेनिन और उनके वयोवृद्ध वकील माता-पिता के साथ पुलिसवालों ने तोड़फोड़ की, मारा-पीटा भद्दी गालियां भी दीं। मौके पर मैजूद उनकी अविवाहित बहन को भी पुलिसवालों ने घसीटा, पीटा, गालियां दीं, और उसके बाल घसीटते हुए हुसैनगंज थाना-कोतवाली तक ले गये। इस दौरान बहन के कपड़े फट गये, और सड़क पर घसीटने से उसके पैरों में भारी घाव हो गया। इतना ही नहीं, इन पुलिसवालों ने प्रिंस की बहन को पुरूष हवालाता में ठूंस डाला। बाद में जब मामले की दरख्वास्त दी गयी, तो पुलिस ने उसे दर्ज ही नहीं, किया। बाद में घटना के आठ दिन बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया, लेकिन उसे हल्का करने के लिए दो अन्य मुकदमे भी प्रिंस की बहन और उनके माता-पिता पर भी ठोंक दिया गया।
जागेंद्र सिंह के मामले में किसी भी पत्रकार या उसके किसी भी संगठन ने पहल नहीं की थी। लेकिन प्रिंस लेनिन ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज किया था। याचिका में मांग की गयी थी कि इस मामले में सीबीआई की जांच की जानी चाहिए। इसके लिए तथ्य भी लेनिन ने जुटाये थे, और याचिका पर आने वाला पूरा खर्चा भी लेनिन ने ही वहन किया था।
न्यायपालिका की खबरों को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
कहने की जरूरत नहीं कि प्रिंस लेनिन की यह पहलकदमी उस शख्स की गहरी संवेदनशीलता का प्रतीक और प्रमाण था।
लेकिन हैरत की बात है कि प्रिंस लेनिन के घर हुए इस हादसों पर अधिवक्ता ने अपना-अपना कान बंद किये बैठा है। ठीक उसी तरह, जैसे जागेंद्र सिंह हत्याकांड में अधिकांश बिरादरी को सांप सूंघ गया था। इसीलिए मैं प्रिंस लेनिन के इस मामले में लगातार हस्तक्षेप कर रहा हूं। और कम से कम तक अपना यह दखल बनाये रखूंगा, जब तक अधिवक्ता समुदाय खुद इस मामले को अपने हाथ में नहीं लेता।
पत्रकारिता से जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-