: लखनऊ में अवैध फैक्ट्री में मजदूर की मौत का मामला : छोटा दारोगा तो हत्यारों का साथी था, थमा दी लाइन-हाजिरी जैसी चुसनी, पत्रकार एसएसपी की शौर्य-गाथा में जुटे : श्रमिक की मां गिड़गिड़ाती रही गुडम्बा इंस्पेक्टर के पैरों पर : वन, श्रम और पुलिस की मिलीभगत से चल रही थी थी अवैध प्लाईवुड फैक्ट्री :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यूपी के पुलिसवालों का असली चरित्र आज फिर नंगा हो गया, जब एक अवैध फैक्ट्री में हुई श्रमिक की मौत की रिपोर्ट तक दर्ज करने से राजधानी की पुलिस ने आनाकानी शुरू कर दी। मारे गये मजदूर की मां दहाड़े मार कर रोने लगी और मामला का मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाना में बैठे इंस्पेक्टर के पांवों पर गिर कर गिड़गिड़ाने लगी। इसी बीच किसी ने इस हादसे का वीडियो बना कर उसे वायरल कर दिया। शासन तक ने हस्तक्षेप किया, लेकिन जोगी सरकार की संवेदनहीन पुलिस के एसएसपी ने इस मामले में इंस्पेक्टर पर कड़ी कार्रवाई करने के बजाय उसे केवल लाइन हाजिर कर अपने दायित्वों से पल्लू झाड़ लिया। इतना ही नहीं, लखनऊ के सारे अखबारों ने भी इस मामले की खबर तो लिखीं, लेकिन वे सब के सब लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी के भांड़-मिरासी की भूमिका बन कर नैथानी की शौर्य-स्तुति में ही जुटे रहे। किसी भी पत्रकार ने भी यह सवाल नहीं उठाया कि मामले में आनाकानी करने वाले दारोगा पर कड़ी कार्रवाई करने के बजाय लखनऊ के बड़े दारोगा ने उसे केवल सामान्य तबादले से कैसे निपटाया।
आपको याद दिला दें कि बुलंदशहर के इंस्पेक्टर को गुंडों ने मौत के घाट उतार दिया तो यूपी के पुलिसवालों ने उस इंस्पेक्टर के परिवारीजनों की आर्थिक मदद के लिए 72 लाख रूपये जुटाये। पूरे देश की जनता ने इंस्पेक्टर के उन हत्यारों के खिलाफ अपना गुस्सा जताते हुए पुलिस का मनोबल बढ़ाया। लेकिन लखनऊ के गोमतीनगर में एपल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारी की हौलनाक हत्या जिस तरह यूपी पुलिस के अपराधी सिपाही प्रशांत चौधरी ने की, तो पूरा पुलिस और प्रशासन ही प्रशांत चौधरी के पक्ष में आंदोलन करने लगा। लखनऊ के एसएसपी और डीएम तक इस मामले पर मिट्टी डालने में जुट गये। और तो और, शर्मनाक की बात तो तब सामने आयी जब डीजीपी ओपी सिंह ने प्रशांत के पक्ष में काली पट्टी बांधे दारोगा-सिपाहियों की फोटो को झारखंड की घटना बताते हुए यूपी पुलिस में असंतोष की बात सिरे से ही खारिज कर दी। अब राजधानी के गुडम्बा थाना क्षेत्र में बरसों से अवैध रूप से चल रही प्लाईवुड फैक्ट्री में भी पुलिस की क्रूरता का किस्सा सामने आ गया है।
घटना के मुताबिक बीकेटी के बाराखेमपुर निवासी 19 बरस के आकाश उर्फ टिंकू यादव यहां के लालबाबू नामक व्यक्ति की प्लाईवुड फैक्ट्री में काम करता था। यह प्लाईवुड फैक्ट्री पिछले लम्बे समय से वन विभाग, श्रम विभाग और पुलिसवालों की साठगांठ से बिना लाइसेंस के ही फर्जी तरीके से चल रही थी। गुरुवार की रात यहां की एक बड़ी मशीन उसके ऊपर गिर गई थी जिससे उसकी मौत हो गई थी। आरोप है कि फैक्ट्री मालिक ने कुछ पैसा मृतक के परिवारी जनों को देने के के साथ ही पुलिसवालों की भी मुट्ठी गरम कर दी। नतीजा यह निकला कि पुलिस ने इस मामले में कोई भी कार्रवाई नहीं की थी। इससे नाराज लोगों ने कुर्सी रोड जाम करके प्रदर्शन किया था। आकाश की मां लज्जावती रिपोर्ट न लिखने पर गुड़म्बा इंस्पेक्टर के पैर पर गिर गई थी लेकिन वह संवेदनहीन ही बने रहे। लेकिन किसी ने थाने में हुए इस नजारे का वीडियो बना कर उसे वायरल कर दिया। शासन को पता चला तो उसने पुलिस से खबर दी। इसके बाद एसएसपी कलानिधि नैथानी ने इंस्पेक्टर तेज प्रकाश सिंह को लाइन हाजिर कर दिया। जबकि इस मामले में इंस्पेक्टर को अपने कर्तव्य न निभाने और घटना दबाने के अपराध में दंडित किया जाना चाहिए, मगर कलानिधि नैथानी इस शर्मनाक हादसे को केवल लाइन हाजिरी से ही निपटा लिया। गौर उससे भी शर्मनाक करतूत तो पत्रकारों की ओर से हुई, जिन्होंने एसएसपी की मक्खनबाजी के लिए इस लाइनहाजिरी को नैथानी की महानता और शौर्य के तौर पर पेश किया।
बताते है कि जिस प्लाईवुड फैक्ट्री में युवक की मौत हुई, वह लम्बे समय से वन विभाग के कर्मचारियों और पुलिस की साठगांठ से बिना लाइसेंस के ही फर्जी तरीके से चल रही थी। हादसे के बाद वन विभाग नींद से जागा और डीएफओ से जांच करायी गई तो फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। अब वन विभाग के बीट इंचार्ज दिलीप कुमार सिंह को सस्पेंड कर दिया गया। इसमें शामिल अन्य वन कर्मचारियों की भूमिका खंगाली जा रही है। अवध क्षेत्र के वनाधिकारी मनोज सोनकर ने बताया कि जांच में पता चला कि बिना लाइसेंस प्लाईवुड फैक्ट्री में सनमाइका मशीन का इस्तेमाल हो रहा था। गुडंबा बीट इंचार्ज दिलीप कुमार सिंह को सस्पेंड करते हुए जांच रिपोर्ट शनिवार को भेज दी गई। शहर में कई ऐसी फैक्ट्री निशाने पर है जो बिना लाइसेंस चल रही हैं, ऐसे फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ जांच कराकर आगे की कार्रवाई की जाएगी। मगर मनोज सोनकर से पत्रकारों ने यह नहीं पूछा कि पिछले लम्बे से अवैध रूप से चल रही इस फैक्ट्री का संज्ञान वन विभाग ने पहले क्यों नहीं लिया। और इस एवज में उन्होंने कितनी रकम उगाही।