पवित्रता का राजपथ: पश्‍चाताप नहीं, प्रायश्चित कीजिए

दोलत्ती

: पश्‍चाताप तो अकर्मण्‍य-उदासीन स्थिति है, जबकि प्रायश्चित एक आदर्श सार्थक क्रिया : अपने अनुभव हमें भेजिए, स्‍वयं को पवित्र व निर्मल कीजिए : जीभ-लिंग 2 :
कुमार सौवीर
लखनऊ : (गतांक से आगे) दुर्वासा ऋषि को सबक सिखाने के लिए शिव-शम्‍भू ने जो लीला रची, उसके बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता था। शिव ने क्रोधित दुर्वासा को समझा दिया कि अनियंत्रित यौन-व्‍यवहार और अपनी जिह्वा तथा वाणी यानी क्रोध में निकले शब्‍द कभी भी आपको संकट में डाल सकते हैं। संकट भी ऐसा, कि भले ही वह आपका कोई बिगड़ न पाये, लेकिन आप खुद ही एक बड़े आत्‍म-संकट यानी ग्‍लानि, क्षोभ और गहरे अवसाद में घिर सकते हैं। व्‍यक्ति अपनी ही नजर में गिर सकता है। और समय रहते आपने उस घटना को लेकर उपजी ग्‍लानि, क्षोभ और गहरे अवसाद को झटकने और उबरने की कोशिश नहीं की, तो फिर केवल एक ही रास्‍ता बचेगा। वह है पश्‍चाताप। और कहने की जरूरत नहीं कि पश्‍चाताप अकर्मण्‍यता की वह जमीन है, जहां केवल विषैली नागफनी ही उगती हैं। वह केवल आपका, आपके विचार, संचय, बोधि, नैतिकता और पूरे व्‍यक्तित्‍व का भी संहार करती हैं।

एक हाथ से जीभ, दूसरे से लिंग। और नाचने लगे शिव-शम्‍भू

फिर क्‍या किया जाए ? किसी भी व्‍यक्ति के दिल-दिमाग में ऐसे सवाल उठने का मतलब यही है कि आप में अपने भीतर घुसे विष को जबरन निकालना ही चाहते हैं। हर कीमत पर, और हर कोशिश पर। यानी आप समझ चुके हैं कि पश्‍चाताप से आपका दोष कम नहीं, बल्कि लगातार घना होता ही रहेगा। निदान है प्रायश्चित। तरीका यही कि तब या तो हम उस व्‍यक्ति के सामने क्षमा-याचना कर लें, या फिर अपने दिल-दिमाग में जमती ऐसी गंदी काई को घिस कर धो डालें। संकल्‍प लिया जाए कि हम अपनी ऐसी घटनाओं को अब अपने दिल तक ही सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि उसे अपने मित्रों, परिचितों के साथ सार्वजनिक रूप से प्रस्‍तुत कर देंगे। यह भी संकल्‍प लिया जाए, कि आइंदा किसी भी परिस्थिति में हम अपने ऐसे किसी भी अपराध की पुनरावृत्ति नहीं करेंगे।
इसी को प्रायश्चित करना कहा जाता है मेरे दोस्‍त। जिसको अंगीकार करते ही आप अचानक ही पवित्र हो जाते हैं, पुनीत हो जाते हैं। भार-शून्‍यता अख्तियार कर लेते हैं। यकीन मानिये कि आध्‍यात्‍म की यह परम अवस्‍था होगी। कम से कम मैंने तो इसे अपनाया है और पाया है कि मैं कई दोषों-अपराधों और अनावश्‍यक मानसिक तनावों से दूर कर बेदाग होता जा रहा हूं।
जी नहीं। यह मेरा पश्‍चाताप नहीं है। बल्कि प्रायश्चित भाव है। मुझे उस या ऐसी किसी भी घटना को लेकर खुद में कोई भी पश्‍चाताप भाव कत्‍तई महसूस नहीं करता हूं। बल्कि चाहता हूं कि अपनी करतूतों का प्रायश्चित करता रहूं। इससे मैं खुद में मनोबल हासिल करता हूं। और यही मनोबल मुझे ताकत देता है कि मैं आइंदा ऐसी कोई भी अभद्र, बेहूदा और अराजक हरकत से बाज आता रहूं। स्‍वयं को निर्मल, शांत और पवित्र बनने की कोशिश करता रहूं।
दो-टूक बात तो यह है कि पश्‍चाताप एक अकर्मण्‍य और उदासीन हालत होती है, जबकि प्रायश्चित एक आदर्श सकारात्‍मक क्रिया। पश्‍चाता आपको अवसाद की गहराइयों तक गिराती है, जबकि प्रायश्चित करके आप सफलताओं की नित नयी मंजिलों तक पहुंचते हैं।
आप भी प्रयोग कीजिए न प्रायश्चित। अपनी गलतियों को दूर करने की कोशिशें कीजिए। विश्‍वास मानिये कि तब आप पायेंगे कि उसके बाद से ही आपके शरीर में स्‍थूल भाव लगातार कम होने लगेगा। माथे की लकीरें खत्‍म होने लगेंगी। मानसिक तनाव दूर हो जाएगा। आप की भूख सुधरने लगेगी। ललाट चमकने लगेगा। चेहरा दैदीप्‍यमान होने लगेगा। व्‍यक्तित्‍व में आकर्षण बढ़ने लगेगा। (क्रमश:)

(आपके लिए हम एक नया प्रस्‍ताव लाये हैं। आप के जीवन में जो भी कोई खट्टी-कड़वी स्‍मृतियां आपको लगातार कचोटती जा रही हों, आप तत्‍काल उससे निजात हासिल कीजिए। खुद को कुरेदिये, उन घटनाओं को याद कीजिए और उनको सविस्‍तार लिख डालिये। उन घटनाओं को सीधे ईमेल पर भेज दीजिए या फिर वाट्सएप पर भेज दीजिए। आप अगर अपना नाम छपवाना नहीं चाहते हों, तो हमें बता दीजिए। हम आपकी हर याद को आपका जिक्र किये बिना ही प्रकाशित कर देंगे। और उसके साथ ही आपके दिल में छिपा गहरा अंधेरा अचानक समाप्‍त हो जाएगा, और पूरा दिल-दिमाग चमक पड़ेगा। यह लेख-श्रंखला अब रोजाना प्रकाशित होगी। कोशिश कीजिए कि आप भी इस श्रंखला का हिस्‍सा बन जाएं।
हमारा ईमेल है kumarsauvir@gmail.com. आप हमें 9453029126 पर वाट्सएप कर सकते हैं।

संपादक: कुमार सौवीर)

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