: जैसी घटिया छवि, उसी तरह दैनिक जागरण की साख और उस विश्वसनीयता : डेली न्यूज एक्टिविस्ट और तरुणमित्र ने साख बनायी : लाख करोड़ के जुर्माना वाला सहारा हमेशा की तरह बेहूदा : साफ लगा कि कोई भी रिपोर्टर मौके पर पहुंचा ही नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गाजियाबाद वाले एक श्मशान में जो हादसा कल हुआ, वह इंसानियत, सरकारी ठेकेदारी और सामाजिक सरोकारों के चेहरे पर तो निहायत शर्मनाक कालिख पोत गया, लेकिन इस हादसे की रिपोर्टिंग में अखबारों ने अपनी वाह-वाही में हर मोड़ पर अपनी पैंट खोल कर खुद को नंगा कर डाला। बाकायदा बोलियां लगायी गयीं। एक बोली को जीतने के लिए अगली लाश को पेश किया गया। हालत यह हुई कि मारे गये लोगों की तादात 21 से शुरू होकर 25 तक पहुंचा दिया इन नामुराद-पत्रकारों ने।
दो-टूक बात की जाए, तो इस पूरे हादसे की कवरेज के लिए किसी भी अखबार का एक भी रिपोर्टर ने मौके पर मामले की पड़ताल करने की जरूरत ही नहीं समझी। सभी ने केवल सुनी और कही पर ही पूरी कहानी बयान कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर डाली।
इस बोली में शर्मनाक बोलियां लगायी हैं देश के तीन बड़े हिन्दी के चार बड़े अखबारों ने। इनका नाम है दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स यानी एनबीटी। मगर दैनिक जागरण तो सरकार के चरणों में फफक कर रोने लगा। उसे साफ लग रहा था कि किसान आंदोलन को फेल कर मोदी सरकार की टोपी को मजबूत करना ही असली स्वामिभक्ति का प्रदर्शन करना होगा, तो उसके लिए मुंह आसमान की ओर उठा कर भों-भों कर रोना ही असली देशभक्ति का असल प्रमाणपत्र हासिल करना होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि दैनिक जागरण ने इस हादसे पर लाशों की तादात 25 तक उचका दिया।
दैनिक जागरण ने घायलों की तादात 14 बतायी, लेकिन घायलों की तादात 40 घोषित कर डाली। यानी घायल व मृतकों की कुल संख्या 54 बता दी। अपनी बात सच साबित करने के लिए दैनिक जागरण ने यह साबित कर दिया कि इस अंतिम संस्कार में 100 से ज्यादा लोग शामिल थे। जबकि सच यही है कि जिस व्यक्ति को श्रद्धांजलियां अर्पित करने के लिए लोग वहां मौजूद थे, उनकी संख्या ही 50 के आसपास थी, जो बारिश से बचने के लिए इस छत के नीचे आसरा खोजने गये थे, कि अचानक ही वह नयी इमारत भरभरा कर ढह गयी। ठीक उसी तरह जैसे दैनिक जागरण की साख और उस विश्वसनीयता कुचल कर दम तोड़ गयी।
मगर इस अंधी दौड़ में दैनिक डेली न्यूज एक्टिविस्ट यानी डीएनए और दैनिक तरुणमित्र ने अपनी साख बनायी रखी। बताया कि आखिरी समाचार मिलने तक 21 लाशें बरामद हो चुकी हैं और इस श्रद्धांजलियों में 50 के आसपास लोग ही मौजूद थे। मारे गये बाकी लोग घायल हैं और उनकी हालत गम्भीर बतायी जाती है। यही हालत जनसंदेश टाइम्स की भी थी, जिसमें लाशों की तादात 22 बतायी गयी।
नवभारत ने मारे गये लोगों की संख्या 23 बतायी, मगर अमर उजाला के बकलोल पत्रकारों ने यह लाशें टटोल-टटोल कर 24 खोज डालीं। लेकिन दैनिक जागरण तो पुराना खिलाड़ी निकला। उसने सारे अखबारों के बाद ही अपना एडीशन जारी किया और सबसे ज्यादा 25 लाशें चाट-सूंघ कर ऐलानिया बता दिया।
राष्ट्रीय सहारा की नजर में तो यह खबर की औकात खबर के लायक ही नहीं थी। उसे तो इस खबर को ऐसे पेश किया, मानो यह हादसा न होकर एक छोटी घटना ही थी।
अखबारों पर सटीक टिप्पणी।।
खबर क्या, बातों के बतासा बनाए गए।