: पूर्वोत्तर को सौंदर्य के खजाने के रूप में देखिए ‘खुब्लई शिबुन चीड़वन’ : सड़ी एवं मरी संस्कृति को ही मुकम्मल मान लेने या इतराने से ‘मेरा भारत महान’ नहीं हो सकता : केवल टी. वी. देखकर या बुरी खबरें सुन, पढ़ कर पूर्वोत्तर के बारे में निर्णय मत लीजिए :
प्रोफेसर माधवेंद्र पाण्डेय
शिलांग : ‘खुब्लई शिबुन चीड़वन’ खासी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बहुत बहुत धन्यवाद …अर्थात्…. मेघालय के चीड़वन के प्रति धन्यवाद …..सही अर्थों में कविताएँ नहीं है…केवल एक विराट, अनंत सौंदर्य-राशि के प्रति आपाद नमन।
कुछ विश्रृंखलित विस्फारित भाव जो इनसे गुजरते हुए….महसूस करते हुए प्रकट हुए।
कुछ मित्रों का आग्रह था कि ये पुस्तक के रूप में आयें …… शायद खुद की भी कुछ लालसा ……. कि लोगों के मन में शिलांग के प्रति, पूर्वोत्तर के प्रति कुछ सकारात्मक भाव उत्पन्न हो। कितना सुन्दर है सब कुछ… प्रकृत…..गढ़न से मुक्त……जिन्हें महसूस नहीं किया जा रहा है। शिलांग….यहाँ के वन, लोगों का मन……व्यवहार और भरपूर एवं पूरे मनुष्य के रूप में इनकी सुन्दरता देश के अन्य हिस्सों में भी जाय। लोगों को पता चले कि सड़ी एवं मरी संस्कृति को ही मुकम्मल मान लेने या इतराने से ‘मेरा भारत महान’ नहीं हो सकता.. उसकी महानता में ये सब शामिल हैं। पूर्वोत्तर का पोर-पोर सुन्दरता का पर्याय है….आँखें होनी चाहिए ….। मन हो तो यहाँ के पर्वतों, झरनों, नदियों, झीलों और संस्कृति को महसूस कीजिए। ईमानदारी, सच्चाई, कोमलता, मिठास अगर मानव-मूल्य हैं तो वे केवल इसी क्षेत्र में देखे जा सकते हैं….ठीक से।
केवल टी. वी. देखकर या बुरी खबरें सुन, पढ़ कर पूर्वोत्तर के बारे में निर्णय मत लीजिए। बहुत सौतेला, बुरा, निहायत अपमानजनक व्यवहार किया गया है पूर्वोत्तर के साथ। अब तो अपनी दृष्टि बदलिए। पूर्वोत्तर को सौंदर्य के खजाने के रूप में देखिए…….।
‘खुब्लई शिबुन चीड़वन’ शायद आपकी थोड़ी सहायता कर सके।
कुछ हो न हो, बेईमान मन की बनावट नहीं है, इनमें। कविता के नाम पर झूठ और फरेब नहीं हैं और न हीं छपास का रोग। केवल प्रकृति के प्रति चिन्ता, प्रेम और आकुलता की सहज अभिव्यक्ति।
( प्रोफेसर माधवेंद्र पांडेय मूलत: बनारसी हैं, और पिछले लम्बे समय से मेघालय के शिलांग के उपनगर नेहू स्थित पूर्वोतर पर्वतीय विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में शिक्षक के तौर पर कार्यरत हैं )