पत्रकारिता में लकड़बग्‍घा बलम, लकड़बग्‍घा बलम

बिटिया खबर

: जरूरतमंद लड़की इंटरव्‍यू में बोल गयी कि वह कुछ भी कर लेगी तो लकड़बग्घा मंद-मुंद मुस्काया : 15 अगस्त, झंडारोहण, सभी का मुंह मीठा, लोग विदा, कार्यालय में लकड़बग्घा और महोदया, कार्यालय का शटर गिरा, बाहर गार्ड। काम तमाम : लकड़बग्घा हरम कथा-तीन :

दोलत्‍ती संवाददाता

लखनऊ : लकड़बग्घे की हरम कथा सुनाने से पहले हम तो आपको पहले ही बता चुके हैं कि लड़कबग्घा जानवरों में सबसे गंदा और घिनौना जानवर होता है। वह न सिर्फ अपने रंग-रूप से बल्कि अपनी बू-बास से भी गंदा होता है। इसीलिए ऐसे कुकर्मी संपादकों के लिए सबसे सही शब्द लकड़बग्घा ही हो सकता है। जिन लोगों का संबंध गांवों से रहा है, वह खूब जानते हैं कि लकड़बग्घा किस तरह से मासूम और निरीह बच्चे-बच्चियों को उठा ले जाता था। अखबार के लकड़बग्घों का भी ऐसा ही हाल है। वह भी अपना शिकार उन मासूम बच्चियों को बनाते हैं, जो करियर बनाने के लिए घर से निकलती हैं। यह लकड़बग्घे उनकी ऐसी ही मजबूरियों का फायदा उठाते हैं।
बरेली के लकड़बग्घे की हरम कथा की तीसरी कड़ी में सुनिए एक नया किस्सा।
एक दिन सुबह के वक्त एक लड़की लकड़बग्घा से नौकरी मांगने के लिए आई। लकड़बग्घे ने उससे पूछा कि वह क्या कर सकती है। नौकरी की आस में लड़की के मुंह से निकल गया कि वह कुछ भी कर लेगी। इस बात को सुनकर लकड़बग्घा अपनी घिनौनी मूंछों के पीछे मंद-मुंद मुस्कुराया। अपना चश्मा ठीक करते हुए एक बार भरपूर नजरों से लड़की को देखा। जांच परखने के बाद उसने उस लड़की को तुरंत नौकरी पर रख लिया। न कोई एचआर, न कोई मैनेजमेंट, सीधे सैलरी तय कर दी बारह हजार रुपये। लड़की को अखबार का न तो कोई अनुभव था और न उसे कुछ आता था। कुछ दिन रिपोर्टिंग में लगाई गई। काम नहीं चला। फिर डेस्क पर विज्ञप्तियां बनवाने में लगाया गया। फेल रही। उसे टाइपिंग भी नहीं आती थी।
लकड़बग्घे ने उसे सरकारी विज्ञापन में लगा दिया। डीएवीपी होने की वजह से सरकारी विज्ञापन मिल ही जाता था। तीन महीने बाद ही वह विज्ञापन विभाग में उप प्रबंधक हो गई। चूंकि अखबार के मालिकान ‘भोले-नादान’ थे। उन्होंने आवारा लकड़बग्घे पर कभी नकेल कसने की भी कोशिश नहीं की, इसलिए कुछ ऐसे काम होते रहे जो सुन कर आश्चर्य से भर देंगे। तो उस लड़की को उप प्रबंधक बना दिया गया और सैलरी कई गुना बढ़ा दी गई। विज्ञापन के हर पेज पर ऊपर की तरफ लड़की का नाम और फोन नंबर छापा जाने लगा। किसी इंप्लाई की ऐसी ब्रांडिंग तो अमर उजाला और दैनिक जागरण ने भी नहीं की होगी।
इस बीच आया 15 अगस्त। उस दिन अखबार बंद था, लेकिन सभी को झंडारोहण के लिए ऑफिस बुलाया गया। सभी सुबह-सुबह पहुंचे भी। झंडारोहण के बाद सभी का मुंह मीठा कराया गया और फिर लकड़बग्घे ने सभी को डांट-डपट कर ऑफिस से बाहर कर दिया। बड़े से कार्यालय में लकड़बग्घा और उप प्रबंध महोदया बचीं। लकड़बग्घे ने कार्यालय का शटर डाउन कराया और बाहर गार्ड बैठा दिया। उसे सख्त आदेश दिए गए जब तक वह न कहें अंदर कोई नहीं आएगा।
लकड़बग्घे का दुर्भाग्य या संयोग कि एक पत्रकार अपनी डायरी भूल गया। कुछ देर बाद वह डायरी लेने आया तो गार्ड ने उसे रोक दिया। डायरी जरूरी थी, इसलिए वह भी बाहर खड़े हो कर इंतजार करने लगा। तकरीबन आधे घंटे बाद अंदर से शटर खोलने के लिए आवाज आई। शटर खुलने के बाद जब रिपोर्टर अंदर गया तो उसे हाजरा का माजरा समझ में आ गया। रिपोर्टर को देखते ही संपादक भड़क गया। उसे बुरी तरह से डांटना शुरू किया। वह हक्का बक्का खड़ा सुनता रहा और फिर सर पर पैर रख कर ऐसा भागा कि पीछे पलट कर भी नहीं देखा, लेकिन उसने इस बात की चर्चा अपने कुछ मित्रों से कर ही दी। एक से कहा तो सबसे कहा वाली कहावत चरितार्थ हो गई और यह बात पूरे कार्यालय तक पहुंच गई। फिर तो यह चर्चा दूर तलक गई। दूसरे अखबारों के रिपोर्टरों और संपादकों तक पहुंची और किसी ने थूका तो किसी ने मजे लिए। लकड़बग्घे ने घिनौनी हरकत के लिए 15 अगस्त का दिन चुना इस पर भी कइयों को एतराज था। इस घटना के बाद एक बड़ा बदलाव हुआ। विज्ञापन प्रबंधक को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और उस लड़की को ज्वाइनिंग के महज आठ महीने के भीतर ही मैनेजर बना दिया गया।
लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी।
एक दिन दोपहर को जब रिपोर्टर, सर्कुलेशन और विज्ञापन का पूरा स्टाफ कार्यालय से बाहर था। महज दो-तीन लोग ही दफ्तर में बचे थे। विज्ञापन मैनेजर लेडीज वाशरूम गई। कुछ देर बाद ही पीछे से लकड़बग्घा भी लेडीज वाशरूम में जा घुसा। विज्ञापन का एक खोजी बंदा सब कुछ देख रहा था। वह भी चुपके से पहुंचा और वाशरूम के मोखे से चुपके से वीडियो बना लिया। उसने यह वीडियो लकड़बग्घे के बेटे, जो कि उसका दोस्त भी था, उसे दे दिया। बेटे ने मां को पूरी कहानी बता दी। बताने वाले बताते हैं कि इस के बाद लकड़बग्घे को उसकी पत्नी ने जमकर लतियाया और कहा कि उस लड़की को नौकरी से निकाल बाहर करो वरना तुम्हारी खैर नहीं।
लकड़बग्घा भी बड़ा शातिर था। उसने उस लड़की को कुछ दिन के लिए छुट्टी पर भेज दिया और भेदिये का ट्रांसफर लखनऊ करने के बाद लड़की को छुट्टी से वापस बुला लिया। पूरे दफ्तर को एक संदेश भी पहुंच गया कि अगर किसी ने रोड़ा बनने की कोशिश की तो ट्रांसफर तय है। अब सब तरफ खामोशी है और खेल जारी है।
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