अपने बच्‍चों के लिए खुद कसाई हैं, शिक्षक को भी हलाल करेंगे

बिटिया खबर

: अपने बच्‍चों को कसाई की तरह पीटते हैं, लेकिन शिक्षक की चूं पर भी आसमान बिखेरने पर आमादा होते हैं अभिभावक : सब कुछ शिक्षक से ही अपेक्षा मत कीजिए, बच्‍चे की प्राथमिक पाठशाला तो आप खुद हैं : अपनी बेटी को जो पत्र नेहरू ने लिखे, वे किसी अमूल्‍य दस्‍तावेजों से कम नहीं :

इंद्रमणि उपाध्‍याय

गुवाहाटी : एक छात्र के अभिभावक विद्यालय में हमसे मिलने आए। उन्होने बताया कि उनका बच्चा कुछ पढ़ता-लिखता नहीं, उनकी बातें भी नहीं मानता। कृपया आप कुछ कीजिए, उसे चाहे जितना ‘मारिए-पीटिए’, लेकिन उसे सुधार दीजिए।

मैं सोच रहा था ‘काश यह अभिभावक नार्वे, इंग्‍लैंड, आस्ट्रेलिया या रूस में होते तो क्या अध्यापक से ऐसी बातें कह पाते, हमें जल्लाद बनने के लिए कहते/प्रोत्साहित करते।

(ध्यान रहे ये वही अभिभावक हैं जो जरा सा छू देने भर पर हमारी शिकायतें लेकर प्राचार्य के पास चले आते हैं, और हम पर केस करने की धमकियाँ देते हैं।)

बहुधा मेरे छात्रों के अभिभावक कहते हैं कि उन्हें नौकरी, बिजनेस, ड्यूटी… आदि के कारण इतनी व्यस्तता रहती है कि वे अपने बच्चे को समय नहीं दे पाते, उनका बच्चा/बच्ची ठीक पढ़ नहीं रहा है…. आदि आदि और ढेरों बातें अनचाहे सुनाते रहते हैं।

ऐसे में पता नहीं क्यों मुझे ‘जवाहर लाल नेहरू’ बारंबार याद आते हैं। वे मुझे एक आदर्श अभिभावक के रूप में नजर आते हैं। अपने राजनैतिक जीवन की उठापटक के चलते नेहरू जी या तो जेल में रहते या भारत-भ्रमण पर। उनकी बेटी इन्दिरा भी उनके साथ नहीं रहती थी। जब नेहरू जी इलाहाबाद में होते तो इन्दिरा मसूरी में अपने स्कूल में रहती थी। (प्रिय अभिभावकों नेहरू जी आपसे ज्यादा अमीर थे, तथा अपनी बच्ची को कहीं बेहतर स्कूल में दाखिला दिलवाया था।) आज की तरह न तो उस समय मोबाइल था न इंटरनेट। फिर पिता पुत्री में संवाद कैसे हो??? नेहरू जी ने इसका तरीका निकाला था कि वे सदैव इन्दिरा को पत्र लिखा करते थे और उस पत्र के माध्यम से ही इन्दिरा को देश दुनिया की तमाम जानकारियाँ देने की कोशिश करते थे। वे पत्र भी ऐसे रहे कि आज एक मिसाल बने हुए हैं और पुस्तकाकार समाज को नई दिशा देने में लगे हैं।

प्रिय अभिभावकों न तो आप नेहरू जी से ज्यादा व्यस्त रहने वाले हैं, न ही उस समय की तरह संचार संसाधनों की कमी है। शाम 7-8 बजे जब आप चाय का कप लिए ‘TV के रिमोट या इन्टरनेट के सहारे’ विश्वविजय में लगे हों तो थोड़ा समय अपने उस बच्चे की ओर भी दें, जो आपके आने की बाट जोहता है। आपको उसे पढ़ाना नहीं है (क्योंकि यह तो उसका शिक्षक कर ही रहा है) बल्कि उससे थोड़ा बात करना है, दिनभर की खोजख़बर लेनी है, थोड़ा सा ध्यान देना है…. और…. हो सके तो कोई किताब उठाकर खुद पढ़िये। (विश्वास मानिए बड़ों को पढ़ता देख न पढ़ने वाला बच्चा भी किताब लेकर बैठ जाता है। जबकि वह शायद आपके कहने पर बहाने बनाता है।)

ध्यान रहे यदि आप अपने बेटे/बेटी को ‘इन्दिरा’ बनाने का सपना रखते हों तो सबसे पहले आपको ‘नेहरू’ बनना पड़ेगा। अन्यथा आपके सपने को किस्मत का ही सहारा रहेगा।

”सुधरने की जरूरत बच्चों से पहले आपको है बड़े लोगों….

इंद्रमणि उपाध्‍याय गुवाहाटी के केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक हैं, देश के कई विद्यालयों में काम कर चुके हैं। इस आलेख का दूसरा खण्‍ड उन्‍होंने बाल-दिवस के मौके पर लिखा था।  अब जरा उपाध्‍याय पर हुई चर्चा में शामिल कमेंट्स पर भी एक नजर डाल लीजिए:-

Pankhudi Bhartiya kyonki guru ( teacher nahi ) ka sthan koi aur nahi le sakta abhibhavak bhi nahi … aise abhibhavak aap logo ko guru samjah kar apne bachche ko sudharne ke liye kahate hai , aur aaj schools (pathshala nahin ) men guru kam teacher jyada hain ..:(

bachche jante samjhte hain ki ve teacher ke sammukh baithe hain naa ki apne maa-baap ke samaksh ,… isiliye aap 40 -50 ( pahale toh 80- 80 bachche tak hote the ek ek classe men ) bachche samhal lete hain ,..

Neha Syan ये अनुभव हर टीचर के पास होता है ,कोई पूछे ऐसे parents से की जब आपको पता लग गया था कि बच्चा बिगड़ रहा है ,तो दो थप्पड़ मारने के लिए आपके पास भी तो हाथ थे

Harpal Singh Arush समय नहीं था .

Neha Syan आप मजाक कर रहे हो सर

Harpal Singh Arush एकदम सीरियस . आजकल गार्जियंस के पास बच्चों को सुधारने के लिए समय नहीं है

Indra Mani Upadhyay 13/14 nov 2014 की पोस्ट इस टॉपिक पर देखिएगा, यदि हो सके तो

Neha Syan समय पहले भी उतना ही था, अब भी उतना ही है

पर जब सुधरने का वक़्त होता है तब उनकी गलतियों को cute बताकर ignore करते है कुछ अभिभावक बाद में …..

Ritika Saini Kya bat hai sir.. Bahot dino se main bhi yahi soch rahi thi !

Unse ek baccha nahi sambhalta ham itne saare sambhaalte fir bhi ye expectations!

दिनेश त्रिपाठी शम्स bilkul sahi . abhibhavak apni abhibhavkeeye jimmedari se bhag raha hai , jo kuchh ho sab adhyapak kare . hamare navodaya me to sthiti aur nirashajanak hai . abhibhavak navodaya me bhejne ke bad saare daayitva se mukt samajhta hai khud ko .mano apne paalya ko kisi anaathaalay me daal aayaa ho . aapke yaha to abhibhavak dikhte hain , hamare yaha salo sal unke darshan hi nahi hote .

Netra Singh Parent counselling jaisi koi cheez hi nahi ha. School isme vidhwas hi nahi karte !!

Hitesh Gehlot Punishment se baccha nhi sudharta

Sudharta h to achi parvarish se or parents ka frz hota h bacche ko esa environment de jisse vo koi unwanted harkat na kre…See more

Jugal Singh Bilkul sahi sir. Professionalism to yahi kehta he ki ache se padhao aur parent ko kaho agar unhe chinta he to wo jo dekhe. Uski aadato se most affected wo hi honge.

Kanan Patro Sir ye samasya har jagah he.

Rashmi Bansal Parents k paas to yhi rah gya h bus kahne ko…

Yogesh Garg मेरे पास रोज आते है मैं इनकी सोच पर तरस खाकर रह जाता हूँ

Ajatshatru Pandit बातो मे इनकी न आना।

Ashish Mishra सही बात सर जी

Avinash Singh खुद क्यों नही जल्लाद बन जाते

Sapna Verma bilkul sahi

Shailendra Kumar It’s true scenario…..

Sunil Dhillo Ek dum sahi baat h sir, mere sath b hua h aisa.

Shipra Pandey Really….. Hm bhi iske bhuktbhogi hue h

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