जिन्‍दगी में अमरबेल क्‍या चढ़ी, मैं सूखने की कगार तक आ पहुंचा

: मानो बेर पर बेतरह चढ़ी अमर-बेल को किसी ने पशमीना शॉल पहनाया, मेरी जिन्‍दगी बेर से कम नहीं : तमाम झंझावातों, गालियां के साथ झूठे आश्‍वासन, दिलासा, वादों और कसमों के बावजूद कुमार सौवीर का वजूद बरकरार : बस, पीठ तेजी से मुड़ती जा रही है, कमर का दर्द असह्य होने लगा है, ब्‍लड-प्रेशर […]

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अपने बच्‍चों के लिए खुद कसाई हैं, शिक्षक को भी हलाल करेंगे

: अपने बच्‍चों को कसाई की तरह पीटते हैं, लेकिन शिक्षक की चूं पर भी आसमान बिखेरने पर आमादा होते हैं अभिभावक : सब कुछ शिक्षक से ही अपेक्षा मत कीजिए, बच्‍चे की प्राथमिक पाठशाला तो आप खुद हैं : अपनी बेटी को जो पत्र नेहरू ने लिखे, वे किसी अमूल्‍य दस्‍तावेजों से कम नहीं […]

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