तुम पांच करोड़ पेड़ लगाने का रिकार्ड बनाते रहो, पुरखे के प्राण-पखेरू उड़ गये

सैड सांग

: जो पूरी दुनिया को जीवन देता था, उसी का दम घोंट दिया हमने, आजादी मुबारक हो : चलो बच्‍चा लोग। चलो अब राष्‍ट्रगान गाओ। मिल कर एकसाथ गाओ : आजादी का दिन है, जन गण मन अधिनायक जय हो : दो सौ साल से भी ज्‍यादा की उम्र होती है पाकड़ की :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आजादी के दिन आज हमारे घर में एक पुरखा और सर्वाधिक शक्तिशाली साबित हो सकने वाले एक अभिभावक का प्राणान्‍त हो गया। सड़क के किनारे आज शाम वह  अचानक भरभरा कर ढह गया। हालांकि उसके बगल में ही पुलिस कोतवाली थी। लेकिन कई महीनों से उसका गला दबोचा जा रहा था। ऐसा भी नहीं कि उसे पैसे की कोई दिक्‍कत थी। उसके पास ही पंजाब नेशनल बैंक और केनरा बैंक का एटीएम भी था। लेकिन दूसरों का मोहताज बना वह कुछ भी नहीं कर पाया। हालांकि जहां उसके प्राण-पखेरू अनन्‍त की ओर उड़े, पास ही एक बड़ा अस्‍पताल भी था। लेकिन कोई भी शख्‍स उसे बचाने के लिए सामने नहीं आया।

निरीह और अशक्‍त ने आज आख्रिरकार अपनी आखिरी सांस ली।

जी हां, मैं इसी पेड़ के बारे में बात कर रहा हूं। यह पाकड़ का पेड़ था। कानपुर रोड पर कृष्‍णानगर कोतवाली से चंद कदम दूर, मेन रोड के किनारे। जिसे कोई पकडि़या पुकारते थे, तो पाकर। महिलाएं उसके आसपास अपने समाज ओर परिवार वालों की सुरक्षा-संरक्षा और मंगलकामनाओं के गीत गाती थीं। उसकी परिक्रमा करती थी। हर मांगलिक-शुभ कार्यक्रम में उसके चारों ओर रक्षा-सूत्र बांधा जाता था। शुभ-नवजीवन का संकल्‍प लिया जाता था। उसकी जड़  को दीर्घायु बनाने के लिए महिलाएं उस पर जल चढ़ाया करती थीं।

इस पाकड़ की उम्र करीब दो साल साल तक हो सकती थी। हजारों-लाखों लोगों को वह जीवन-दायी आक्‍सीजन देता था। हजारों को बारिश और धूप में छांव देता था। न जाने कितने लोग अपनी बाइक उसकी छांव में खड़ी कर देते थे। न जाने कितने रिक्‍शे-ठेले वाले उसकी छांह में विश्राम करते थे। न जाने कितने पक्षियों ने उसमें अपना बसेरा बना लिया था। इनके आशियानों में हमेशा कलरव मचा रहता था।

लेकिन विकास के अंधे-ठेकेदारों वाली सरकार ने इस फुटपाथ को पक्‍का करने के लिए उस पाकड़ की जड़ ही खोद दी। उसके बाद उसके गले को सीमेंट-कांक्रीट से कस दिया। यह तब हुआ जब अखिलेश सरकार यूपी में पांच करोड़ पौधे रोपने का विश्‍व-रिकार्ड बनाने की रणनीति बना रहे थे।

जितनी भी छीछालेदर हो सकती थी, उसकी कर दी गयी थी। दोनों एटीएम मशीनें लोगों को साफ दिखायी पड़ें, इसके लिए उसकी डालें भी काटी-तराशी गयी थीं। तुर्रा यह कि उसके आसपास कांक्रीट का फुटपाथ बना दिया गया। अब वह न सांस ले सकता था, और न ही पानी पी सकता था। लेकिन इसके बावजूद जब तक वह जिन्‍दा रहा, आसपास की पूरी आबादी को खुशियों से लबरेज करता रहा। लेकिन आखिर यह सब कब तक चल पाता।

नतीजा, आज उसने अपनी इहलीला खत्‍म कर दी।

बताते हैं कि इसकी उम्र केवल 25 साल तक ही थी।

खैर, उससे क्‍या। क्‍या विकास के लिए क्‍या हम कुछ पेड़ों की बलि नहीं दे सकते हैं। विकास करना है, खुद को सभ्‍य साबित करना  है तो यह सब तो करना ही पड़ेगा।

चलो, इसे भूल जाओ। आज हमारी आजादी का दिन है। देश के स्‍वतंत्रता का दिन है। प्‍लास्टिक के छोटे-छोटे झंडे लेकर नाचो, कार पर सजाओ, शाम को उसे सड़क पर लोगों के रोंदने के लिए फेंक दो। अपने गाल पर तिरंगा बनाओ, आजादी के गीत गाओ। चलो बच्‍चा लोग। चलो, अब राष्‍ट्रगान गाओ। मिल कर एकसाथ गाओ:-

जन गण मन अधिनायक जय हो

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