आज से ठीक दो साल पहले आज मैं लेह में था

मेरा कोना

: दगाबाज कश्‍मीरियों से दूर जाइये, खुद को खोजिये, शांति पाइये : लदाख दुनिया का वाकई सर्वश्रेष्‍ठ भू-क्षेत्र हैं : अगर आप लेह-लदाख नहीं आये, तो यकीन मानिये कि आपने कुछ भी नहीं किया। असल स्‍वर्ग तो लदाख है, श्रीनगर में केवल कत्‍ल-ओ-गारत मिल सकता है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आज से ठीक दो साल पहले आज मैं लेह में था। यह मेरे लिए गर्व का विषय है। मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक।

गजब क्षेत्र है लदाख। जम्‍मू-कश्‍मीर का एक विशाल भू-खण्‍ड, लेकिन भारतीय भू-क्षेत्र के राजनीतिक नाम में उसका उल्‍लेख कहीं भी नहीं। यहीं पर है कारगिल जहां पाकिस्‍तान ने डेढ़ दशक पहले भारत पर हमला किया, लेकिन भारतीय सेना ने वहां के लोगों को लेकर इस इलाके को आजाद करा दिया। हां, इसमें उन बोफोर्स तोपों का उल्‍लेख न करना शायद एक भयंकर भूल होगी। आज अरबों-खरबों रूपयों के घोटालों में जेल में बंद हैं, सरकारें गिर और उठ रही हैं, लेकिन कोई तीन दशक पहले ने घटिया राजनीति ने बोफोर्स तोपों को गालियां तो खूब दीं, लेकिन इन तोपों ने कारगिल घुसपैठ में अपनाा जो योगदान किया, वह बेमिसाल है। अगर बोफोर्स तोपें न होतीं, तो कारगिल में हजारों नहीं, लाखों सैनिक शहीद होते। शायद परमाणु बमों की शुरूआत इसी क्षेत्र में होता।

खैर, लदाख में बारिश नहीं, मगर बर्फ खूब गिरती है। चलते-चलते आप अचानक स्‍वर्ग पर पहुंच जाते हैं, तो अचानक बिलकुल पाकिस्‍तान की छाती पर खड़े दिखते हैं। कहीं आपको चीन की पैंगोंग झील का नजारा मिल जाताा है तो कहीं बेमिसाल संस्‍कृतियों का आश्‍चर्यजनक संगम। आप कहीं सहज सड़क पर होते हैं तो कहीं आप खरदुंग-ला जैसे महान दर्रा पर खड़े होते हैं, जो भारत का सबसे ऊंचा मोटरेबुुल पास है।

अरे भाड़ में जाए कश्‍मीर और वहां के कश्‍मीरी। उन लोगों ने धरती के इस स्‍वर्ग को तबाह कर दिया। उन्‍हें खुद ही खुद को लूटा और लुटाया, लेकिन इल्‍जाम दूसरों पर लगाया। गले पर तबाही के तमगे टांगे और सेना पर हमला किया। उस सेना पर पत्‍थर और गोलियां बरसायीं, जिन्‍होंने जिन्‍दगी बचायी। उनको आगे बढ़ाया। बदजात कहीं के।बहरहाल, उनकी औकात तो हमारी सेना और सुरक्षा बल के जवान दिखा ही रहे हैं और देते ही रहेंगे देंगे, जब तक उन मूर्खों को समझ में नहीं आता।

लेकिन तब तक आप जरा उस स्‍वर्ग पर पधारिये, जो वाकई स्‍वर्ग है। श्रीनगर या कश्‍मीर के किसी भी अन्‍य सुन्‍दर क्षेत्र से हजारों-लाखों गुना आकर्षक, सुन्‍दर और शांत है। जी हां, यह लदाख है। जहां भी कारगिल भी है, लेह भी है, और और और और न जाने क्‍या-क्‍या नहीं है। चीन से सटी सैकड़ों मील लम्‍बी झीलों के पानी में झांकिये, जिसे थ्री-इडियट्स के अंतिम दृश्‍य में दिखाया गया। इतना प्रशांत जल तो आपको दुनिया के किसी भी भू-क्षेत्र में नहीं मिल पायेगा। करीब एक लाख पहले पृथ्‍वी का एक टुकड़ा किसी अफ्रीकी रेगिस्‍तान इलाके की प्‍लूट्यू से टूट कर अलग हुआ और उसके बाद हमेशा-हमेशा के लिए लदाख के उस इलाके में जुड़ गया, जिसे डिस्किट कहा जाता है। छोटा ही सही, लेकिन सघन रेगिस्‍तान आपको यहीं दिखेगा, जहां दो कूबड़ वाले ऊंटों की यहां बसावट है। आइये परतापुर जो मिलिट्री का स्‍थानीय बेस है। उससे सीधे आपको तुर्तुक की सघन आबादी मिलेगी। लेह में आपको मुल्‍तानी मिट्टी का पहाड़ मिलेगा।

यानी एक शानदार भारत का मुकुट।

इसीलिए तो मैं लेह को सिरमौर मानता और पूजता हूं।

तो आइये, एक नयी परिभाषाओं, नये सौंदर्य, एक नये विष्‍लेषण के साथ।

पधारिये लदाख। कश्‍मीरियों की निहायत घटिया प्रवृत्ति के विपरीत एक नये शांति के लिए। खुद को झांकने के लिए। खुद को खोजने के लिए, खुद को समझने के लिए।

जी हां, विपश्‍यना के लिए।

अपने भारत के लिए।

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