पहले छापो, फिर उगाही। रकम वसूलो, जागरण गया भाड़ में

दोलत्ती

: दैनिक जागरण दफ्तर में, जागरण के नाम पर, जागरण के लोगों ने शातिर गिरोह ने खोली ब्‍लैकमेलिंग की नयी परम्‍परा : लकड़बग्‍घों की तरह सरेआम शिकार, दलालों की पौ-बारह :
दोलत्‍ती संवाददाता
जौनपुर : यह तो बिलकुल अनोखा धंधा शुरू कर दिया है दैनिक जागरण के लोगों ने। सबसे पहले तो एक कहानी बनाओ, फिर उसमें एक शिकार चुन लो, फिर अपने शिकार पर निशाना तय करो, फिर पीएचसी से लेकर सीएमओ तक बैठे अफसरों को यह कहानी सुनाओ। फिर उस लक्ष्‍य पर सरकारी अफसरों को निशाना साध कर फायर करने पर मजबूर करो। जब शिकार तड़पड़ाने लगे तो उसकी प्राण-रक्षा के नाम पर मोटी रकम उगाह लो। अफसर का भी पिण्‍ड छूट जाए, और दैनिक जागरण वालों के घर मालामाल हो जाए। किसी को भनक तक न लगे। बात खत्‍म।
यह अनोखा धंधा शुरू किया है दैनिक जागरण जैसे प्रतिष्ठित अखबार के नाम पर लूटपाट करने पर आमादा जागरण-कर्मियों ने। मामला है वाराणसी से सटे केराकत तहसील का, जो जौनपुर के तहत आता है। हालांकि न तो केवल दैनिक जागरण के लोग ही इस धंधे में शामिल नहीं हैं, बल्कि सभी अखबारों के ज्‍यादातर पत्रकारों का असली धंधा यही है। अखबारों के नाम पर ऐसी लूट-पाट का धंधा सिर्फ केराकत में ही चलता हो, ऐसा नहीं है। वाराणसी, जौनपुर या यूपी समेत हिन्‍दी भाषा-भाषी क्षेत्र में चारोंओर यही धंधा फलफूल रहा है। न भाषा का शऊर है, और न ही लिखने की तमीज है, लेकिन अखबारों ने अपनी तिजोरी भरने के लिए हर गांव-मोहल्‍ले, नुक्‍कड़, कस्‍बे और जिलों में लुटेरों को खुली छूट दे रखी है। और ऐसी छूट मिलते ही इन लुटेरों ने जागरण के नाम पर ब्‍लैकमेलिंग का धंधा शुरू कर दिया है। जागरण और इन लुटेरों में यह मूल सहमति बन चुकी है कि वे जागरण के लिए विज्ञापन जुटाते रहेंगे, उसकी एवज में उनके लुटेरों की टीम जब, जहां, तहां चाहे, आम आदमी के साथ धमकी, ब्‍लैकमेलिंग करती रहेगी।
ताजा घटना है जौनपुर की केराकत तहसील बाजार की। पिछले तीन दिनों से जौनपुर और असपास के जिलों में दो ऑडियो वायरल हो रहे हैं। इनमें एक बंगाली डॉक्‍टर से मोटी उगाही की बातें हो रही हैं। रकम न मिलने पर पत्रकार खबर को प्रकाशित कर उस डॉक्‍टर का जीवन तबाह कर देने की धमकी दे रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि इस ऑडियो क्लिप के वायरल होने के बाद से चारों ओर दैनिक जागरण की थू-थू हो रही है।
आपको बता दें कि 11 जुलाई को यहां से करीब आठ किलोमीटर दूर मुर्की बाजार में एक बंगाली डॉक्‍टर के यहां सीएमओ की टीम ने छापा मार कर उसका क्‍लीनिक बंद करा दिया था। बंगाली डॉक्‍टर को धमकी दी कि अवैध प्रैक्टिस की धाराओं में आम आदमी को मौत के घाट उतारने के अपराध में उसे जेल भेज देंगे। छापा मारने के बाद यह खबर पत्रकारों के एक गिरोह को लीक कर दी गयी। पत्रकारों के इस गिरोह के मुखिया ने तत्‍काल उस बंगाली डॉक्‍टर से सम्‍पर्क किया। उसे बताया कि वह उस के क्‍लीनिक पर चल रही अवैधानिक मेडिकल प्रैक्टिस को लेकर अब ऐसा मोटी हेडिंग में बड़ी-बडी हर्फों में खबर छाप देगा। फिर पुलिस थाना कचेहरी वगैरह-वगैरह। जीना हराम कर दिया जाएगा। या फिर जेब से मोटी रकम निकालो।
इन ऑडियो में जिस व्‍यक्ति से उगाही हो रही है वह बंगाली डॉक्‍टर का कंपाउंडर है, जबकि खुद को पत्रकार कहलाने वाले का नाम केतन विश्‍वकर्मा बताया जाता है। आपको बता दें कि केतन विश्‍वकर्मा को यहां के लोग दैनिक जागरण के नगर संवाददाता के तौर पर पहचानते हैं। केराकत तहसील ही नहीं, जिला मुख्‍यालय और आसपास के इलाकों के पत्रकारों से भी दोलत्‍ती संवाददाता ने उस ऑडियो में पत्रकार की आवाज को केतन विश्‍वकर्मा के तौर पर ही पहचाना है, जबकि केतन विश्‍वकर्मा और दैनिक जागरण के लिए केराकत में धंधा कर रहे दिलीप विश्‍वकर्मा का कहना है कि यह आवाज केतन विश्‍वकर्मा की नहीं है और इस मामले में केतन को एक साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। जबकि स्‍थानीय पत्रकारों और भुक्‍तभोगियों की खुली राय है कि दिलीप विश्‍वकर्मा और केतन विश्‍वकर्मा की छवि इस पूरे इलाके में एक जबर्दस्‍त लूट-दस्‍ता के तौर पर कुख्‍यात है।

सदियों पहले से ही अपनी रोजी-रोटी के लिए बंगाल से निकल कर देश भर में बिखर गये थे देसी डॉक्‍टर। कोई डॉक्‍टरी की डिग्री नहीं, लेकिन आम ग्रामीण के पास चौबीसों घंटों तक मौजूद बने रहते हैं यह बंगाली डॉक्‍टर। सच बात तो यही है कि अपने परम्‍परागत ज्ञान वाले यह बंगाली डॉक्‍टरों को तो यूं तो झोलाछाप माना जाता है, लेकिन इसके बावजूद अपनी न्‍यूनतम फीस और मरीज की तत्‍काल तथा अधिकतम सेवा ही इनके धंधे का मूलमंत्र होता है। अपना देस-मुलुक छोड़ कर हजारों मील दूर जाकर ग्रामीणों के बीच रचबस चुके हैं ऐसे बंगाली डॉक्‍टर। लेकिन अब अफसरों, पुलिस और पत्रकारों की लूट ने इन बंगाली डॉक्‍टरों का जीना हराम कर दिया है।
कुछ भी हो, सच बात तो यही है कि पहले विज्ञापन के लिए लोगों को परेशान करने वाले पत्रकारों की छवि अब सरेआम लुटेरों की तरह होती जा रही है। वे लकड़बग्‍घों के किसी खूंखार गिरोह की तरह अपने शिकार का इतनी बेरहमी के साथ शिकार करते हैं कि लोगों की रूह कांपने लगे। इनमें भी दैनिक जागरण के पत्रकारों के बारे में तो लोगों का मानना है कि वे पत्रकार तो कत्‍तई नहीं हैं, लेकिन पत्रकारिता के नाम पर कलंक जरूर बन चुके हैं। (क्रमश:)

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