एक स्त्री के लिए तो यह कैपिटल पनिश्मेंट ही हुआ ना

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

पहले अपने पति-पत्नी के रिश्ते को निर्वस्त्र करके देखिये ना

: अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष मेरा उपन्यारस खण्ड-परशु : आइये, एक अनोखे नजरिये के साथ देखिये महिला की हालत (4) :

कुमार सौवीर

रेणुका का वध नहीं, वह हत्याकाण्ड ही था। रेणुका-हत्याकाण्ड प्रकरण-प्रहसन के पात्र भी यदि आज साक्षात उपस्थित होते तो वे भी इस पर अलग-अलग मत ही प्रकट करते। उनमें से कोई एक बार भी आज तक अपनी गलती स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। लेकिन हम हमेशा से ही निर्बलों की सुरक्षा-संरक्षा के हामी रहे हैं। हालांकि अतीत में इन दावों को प्रत्यक्ष रख कर उसकी आड़ में ठीक उसका उल्टा ही हुआ है। परन्तु अब आज और अभी से ही न्याय की शुरुआत कर लेने में आखिर क्या हर्ज है। देर आयद, दुरूस्त आयद।

तो आइये। एक महान न्याय करने के लिए एक तुच्छ पाप कर लिया जाए। मान लीजिए कि रेणुका के स्थान पर आपकी पत्नी है और यमदग्नि आप स्वयं। अब चलिये उस प्रवाह में जहां से झगड़े की शुरुआत हुई। अपने पति-पत्नी के आदिम सम्बन्धों को उसी एकान्त में निर्वस्त्र करके पूरी ईमानदारी से देखिए। यह ईमानदारी इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि प्रख्यात मनोविज्ञानी सुधीर कक्कड़ के शब्दों में:- एक-दूसरे के अनुभवों को समझने के लिए स़्त्री-पुरुष एक-दूसरे के समीप आते हैं, लेकिन अपने ही अनुभवों से सन्तुष्ट होकर वापस अलग हट जाते हैं। ’

तो कम से कम इतना तय है कि एक-दूसरे की भावनाओं को पूरी गम्भीरता के साथ समझे बिना न्याय तो नहीं ही किया जा सकेगा। केवल अपने अनुभवों से सन्तुष्ट होकर मैदान छोड़ देने वालों से यह महान कार्य कैसे हो पाएगा। खासकर समाज की उस आधी आबादी के प्रति तो हर्गिज नहीं, जो हर महान व्यक्ति की उंचाइयों का आधार होती है।

लेकिन अफ़सोस कि वही महान व्यक्ति अपने उसी मूल आधार पर ही चोट करता चला जाता है। शायद इस तर्क के साथ कि किसी भी ऊंचाई तक पहुंचने के लिए वर्तमान पर पैर रख कर ही भविष्य तक पहुंचा जा सकता है और यह भी कि अतीत को हमेशा अपनी पीठ पर ढोते रहना केवल बेवकूफों का ही काम होता है। ..उफ् ! शब्दों की बाजीगरी दूसरों पर कितनी भारी पड़ सकती है ! काश इसे हर व्यक्ति समझ पाता !

यह उपन्यास नहीं, दलील है। मैं एक ऐसे अभियुक्त के पक्ष में दलीलें बुनने की कोशिश कर रहा हूं जिसे अनावश्यक तूल देकर सार्वजनिक रूप से हमेशा-हमेशा के लिए बीच चैराहे पर नंगा खडा़ कर दिया गया। एक स्त्री के लिए तो यह कैपिटल पनिश्मेंट ही हुआ। और इतना ही नहीं, इस कैपिटल पनिश्मेंट के बाद फिर एक जघन्य दण्ड रेणुका को भुगतना पडृा, और वह यह कि अपने पति के आदेश पर अपने ही छोटे बेटे द्वारा रेणुका का फरसा मार कर कत्ल कर देना।

इस उपन्यास की भूमिका की अगली कडि़यां पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- खण्ड-परशु

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