अफसरों ने बहुत चतुराई से बनाया विज्ञापन। कुलपति तो वे ही होंगी

बिटिया खबर

: भातखंडे विश्‍वविद्यालय है विशाल संगीत-ज्‍वाला, बन जाएगा बुती हुई ढिबरी : सइयां हैं कोतवाल, तो डर काहे का : नाट्यशास्त्र विधा नदारत, चर्चा का विषय बना विज्ञापन, सर्वोच्‍च कुर्सी हड़पने की साजिश : बधाइयों के लिए मक्‍खन-मालिश वाले तेली-तमोली सक्रिय :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक कुर्सी की डिजाइन कागजों पर ही है। लकड़ी का टेंडर हो गया है। बढ़ई लोग रन्‍दा मारने में जुट गये हैं। लेकिन इस कुर्सी पर बैठाने वाले के लिए ब्‍यूरोक्रेसी के आला अफसरों ने अपनी जुगाड़-टेक्‍नॉलॉजी पर हाथ साफ करना शुरू कर दिया है। मामला एक बड़के अफसर का है। इसलिए ऑलमोस्‍ट तय हो गया है कि इस कुर्सी पर आखिरकार बैठेगा कौन। मगर कभी महान सांस्‍कृतिक धरातल रहे माहौल में बेलगाम अफसरों की मनमर्जी के पांवों तले रौंदे जा रहे लोग भीगे और अशक्‍त बिलार-कूकुर की तरह दबेछिपे कानाफूंसी कर रहे हैं। उनकी चिंता है कि अगर अफसरों की मनमर्जी चलती ही रही तो जल्‍द ही सांस्‍कृतिक माहौल बर्बाद हो जाएगा। यानी बहुत शातिर हैं अफसर। विज्ञापन निकला, कुलपति तो वे ही होंगी। मतलब यह कि जीत हो जाएगी संस्‍कृति जगत में बेलगाम अफसरशाही।
मामला है भातखंडे संगीत यूनिवर्सिटी का। पण्डित विष्णु नारायण भातखंडे। यह नाम लखनऊ ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय संगीत जगत में खासा विख्‍यात है। पिछली सदी की शुरुआत में हिन्‍दुस्‍तानी संगीत की दुनिया में किसी चमत्‍कार के तौर पर चमका था यह नाम। हालांकि शुरुआत में इसके उद्घाटनकर्ता के नाम पर इस स्‍कूल का नाम अवध प्रान्त के तत्कालीन गर्वनर सर विलियम मौरीस के नाम पर हुआ था। लेकिन आजादी के दो दशक यानी सन-66 को इसे भातखण्डे हिन्दुस्तानी संगीत विद्यालय नाम प्रदान किया।
अभी कोई दो बरस पहले ही इसको विश्‍वविद्यालय का नाम दे दिया गया। लेकिन इसके बाद से ही यह विश्‍वविद्यालय एक विशाल संगीत-ज्‍वाला के बजाय उस ढिबरी की तरह होने लगा है, जिसमें लगातार तेल की कमी होती जा रही है, जबकि बाती खात्‍मे तक पहुंचने लगी है। मामला है इस यूनिवर्सिटी के कुलपति को लेकर चल रही अफसरों की रणनीतिक चालें। मकसद यह है कि कैसे भी हो कि इस कुर्सी पर एक मनचाहे व्‍यक्ति को बिठा लिया जाए। फिलहाल तो यह तय हो गया है कि यह आलीशान कुर्सी पर यूपी में एक बड़े ताकतवर आईएएस अफसर की पत्‍नी ही बैठेंगी। नौकरी के लिए संस्‍कृति विभाग ने बाकायदा एक बड़ा टेंडर भी अखबारों में छपवा लिया गया है, लेकिन विश्‍वस्‍त सूत्र बताते हैं कि यह टेंडर एक खास महिला के पक्ष में पूल हो चुका है। बात खत्‍तम।
जानकार बताते हैं कि यह विज्ञापन एक ताकतवर आईएएस अधिकारी की गायिका पत्नी को उपकृत करने के लिए निकाला गया है। पूरे कल्चरल जगत में यह विज्ञापन इसीलिए चर्चा का विषय बन चुका है। जाहिर भी है। वजह यह कि एक चर्चित आईएएस अधिकारी की पत्नी का नाम कुलपति के तौर पर उभर कर सामने आ रहा है। बधाइयां और शुभकामनाएं देने के लिए मक्‍खन-मालिश करने वाले तेली-तमोली लोगों ने अपना धंधा तेजी से चमकाना शुरू कर दिया है। उन्‍हें फायदा यह दिख रहा है कि अगर फलानी हो गयीं कुलपति, तो फिर बाद में उनका मामला कहीं पिछड़ न जाए। इसीलिए हरचंद कोशिशें हैं कि चाहे कुछ भी हो, लेकिन उनकी पांचों उंगलियां घी में डूबी हुई हों, और सिर कड़ाही में एडजेस्‍ट हो जाए।
संस्कृतिकर्मियों में चर्चा का विषय बना हुआ है एक विज्ञापन जो भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के लिए निकाला गया है। पूरा विज्ञापन प्रथम दृष्ट्या देखने मात्र से लगता है कि यह किसी को उपकृत करने के लिए ही निकाला गया है। संस्कृतिकर्मी कह रहे हैं कि सबको पता है कौन होंगी कुलपति? सूत्रों का कहना है कि बड़ी होशियारी से नाट्यशास्त्र विधा को अलग कर दिया गया है, वरना कुलपति होने वाली महिला के सामने होते राज बिसारिया, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ सहित दर्जनों उम्मीदवार और ऐसे में जबरदस्त कंप्टीशन हो जाता। पूर्व निर्धारित कुलपति के मार्ग में कोई कांटा न हो इसके लिए सारे रोंडे, पत्थर, गिट्टी वगैरह-वगैरह सब साफ़ कर दिए गये हैं।
दोलत्‍ती संवाददाता ने इस मामले पर प्रदेश के संस्‍कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम को इस विज्ञापन को लेकर चल रहे संशयों को लेकर वाट्सऐप पर अपने सवाल भेजे। लेकिन मुकेश मेश्राम ने इस बारे में अब तक कोई भी जवाब नहीं दिया है।

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