न्‍यायपालिका की नाक बचानी हो, तो दो फैसले पढ़ लें जज

दोलत्ती

: प्रशांत भूषण को आज सजा सुनायेगी सुप्रीम कोर्ट : आग से खेलना ही होगा प्रशांत भूषण को सजा देने की कवायद : कृष्‍ण अय्यर और सव्‍यसाची से बड़े जज नहीं हैं सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आज जब प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच फैसला सुनाने जा रही है, हमें कानून और सुप्रीम कोर्ट के अतीत में हुए कम से कम दो प्रमुख फैसलों को देखना, पढ़ना और समझने की जरूरत है। विधि, अदालत और वकीलों को इन दोनों फैसलों को ताजा घटनाक्रम को देखते तो जरूर ही देखना चाहिए। आम आदमी के लिए भी यह दोनों फैसले इसलिए भी बहुत जरूरी हैं, कि उससे समाज में न्‍यायपालिका जगत से जुड़े लोगों के व्‍यवहार को समझने की समझ विकसित हो सकेगी।

अदालतों की अवमानना को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सबसे बड़ा फैसला तो सुप्रीम कोर्ट के ही चीफ जस्टिस रह चुके वीआर कृष्णा अय्यर को लेकर हुआ था। करीब 45 बरस पहले कृष्‍णा अय्यर देश के प्रधान न्‍यायाधीश रह चुके हैं। यह वह वीआर कृष्‍णा अय्यर हैं, जिन्‍हें सुप्रीम कोर्ट को आम आदमी से जोड़ने का श्रेय दिया जाता है। इतना ही नहीं, देश के प्रख्‍यात विधिवेत्‍ता रहे फली नरिमन जैसे सर्वमान्य जूरिस्ट ने भी वीआर कृष्‍णा अय्यर को ‘सुपर जज’ कह कर याद किया था। छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता तथा राज्‍य के पूर्व महा-अधिवक्‍ता कनक तिवारी जैसे प्रख्‍यात अधिवक्‍तागण तो कृष्‍णा अय्यर को सुप्रीम कोर्ट का भीष्‍म-पितामह मानते हैं।

घटनाक्रम के अनुसार कृष्‍णा अय्यर के खिलाफ अदालत की अवमानना का यह मामला केरल से उठा था। लगातार सात बरस तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर निर्विवाद रहे वीआर कृष्‍णा अय्यर अपने रिटायरमेंट के बाद केरल के बार कौंसिल और बार एसोसियेशन के एक अधिवेशन में मुख्‍य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किये गये थे। इस समारोह में कृष्‍णा अय्यर ने कई चौंकाने वाली बातें कहीं। उनका कहना था कि मैं सुप्रीम कोर्ट की कई बातें जानता हूं जिसे सार्वजनिक रूप से नहीं बोल सकता हूं। लेकिन इतना जरूर है कि सुप्रीम कोर्ट समेत सभी अदालत जैसी संस्‍था अब रह ही नहीं बची हैं, वे अर्थहीन होती जा रही हैं। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का सभ्‍यता से कोई रिश्‍ता ही नहीं बचा है, और आने वाले वक्‍त में लोग पछतायेंगे कि इन इमारतों का कोई प्रयोग नहीं हो रहा है।

इस बयान पर वकीलों के एक समूह ने जस्टिस कृष्‍णा अय्यर के खिलाफ शिकायत की, जिसे महाधिवक्‍ता के पास नोटिस देने से पहले भेजा गया। इस मामले पर जस्टिस सुब्रहमण्‍यम पुट्टी और जस्टिस परिपूर्णानंद ने सुनवाई की। इन जजों ने पूछा कि अगर जस्टिस कृष्‍णा अय्यर ने यह कहा है कि सुप्रीम कोर्ट नामक संस्‍था अगर खत्‍म हो रही है और अर्थहीन होती जा रही है, तो उसमें अवमानना का क्‍या मामला है। जजों ने साफ कहा कि यह तो जस्टिस कृष्‍णाअय्यर की चिंता है और हम उनकी इस चिंता या चिंतन को कन्‍टेम्‍प्‍ट नहीं मानते। नतीजा यह हुआ कि जस्टिस कृष्‍णा अय्यर के खिलाफ कोई भी नोटिस जारी नहीं की गयी।

दूसरी घटना है केंद्रीय मंत्री रहे पी शिवशंकर को लेकर। करीब 45 बरस पहले आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में जज रह चुके थे पुंजला शिवशंकर। उसके बाद कई राज्‍यों में राज्‍यपाल भी रहे। इंदिरा गांधी ने उन्‍हें कानून मंत्री भी बनाया था। उसी दौरान उन्‍होंने एक समारोह में कहा कि समाज में बहू जलाने वाले, जमाखोर, कालाबाजारी और बेईमानी के मुलजिमों ने सुप्रीम कोर्ट को अपना स्‍वर्ग बना लिया है।

जाहिर है कि इस बयान पर हंगामा खड़ा हुआ और उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला दायर हुआ। इस मामले को सुनवाई शुरू की प्रधान न्‍यायाधीश सव्‍यसाची मुखर्जी की अध्‍यक्षता वाली बेंच ने। लेकिन इस न्‍याय-पीठ ने दो-टूक फैसला सुनाया कि पी शिवशंकर के आरोप जो भी लगाये हैं, वे पूरी तरह सही नहीं प्रतीत होते हैं, लेकिन पी शिवशंकर की एप्रोच और उनका एटीट्यूट पूरी तरह एकेडमिक है। वे वकील हैं और हाईकोर्ट के जज भी रह चुके हैं। उन्‍हें अपनी राय रखने का पूरा अधिकार है, इसलिए हमें उन्‍हें कोई भी सजा नहीं देना चाहते।

हमारा तो अनुरोध है कि आज प्रशांत भूषण पर अदालत की अवमानना वाले मामले में सजा सुनाने से पहले अरुण मिश्रा, बी आर गवई और कृष्ण मुरारी की न्‍याय-पीठ के न्‍यायाधीश उन उपरोक्‍त मामलों में हुए फैसलों को ठीक से बांच लें। वरना इससे अदालत और विधि जगत में एक गम्‍भीर हालत फैल जाएगी।

1 thought on “न्‍यायपालिका की नाक बचानी हो, तो दो फैसले पढ़ लें जज

  1. नि:संदेह हमारी नजर में भी कथित नेपाल का नेपाल का में तब्दील हो चुकी है इसमें कोई शक नहीं की आज की नेपाल का नाम मात्र की रह चुकी है मेरे विचार से नेपाल का ही भ्रष्टाचार की जननी बनती नजर आ रही है क्योंकि अधिकांश मामलों में कथित न्यायपालिका ने पीड़ितों के साथ खुलेआम अन्याय किया है जिसमें एक मैं भी शामिल हो और बाकायदा पुख्ता सबूतों के आधार पर कह रहा हूं कि न्यायपालिका पूरी तरह से बिक चुकी है सत्ताधारी ओं की रखैल बन चुकी है और बड़े-बड़े पूंजी पतियों भू माफियाओं को संरक्षण देने का काम खुलेआम कर रही है। इस इस तथ्य को भी मैं साक्ष्यों के आधार पर कह रहा हूं, लिख रहा हूं। यहां तक कि कुछ वकीलान कथित न्यायपालिका के दलाल बन चुके हैं जो कि पीड़ितों के साथ खुला अन्याय करते नजर आ रहे हैं।
    मैं तो यहां तक डंके की चोट पर कह रहा हूं कि जब खुद कथित न्यायपालिका ही विधि विरुद्ध क्रियाकलाप करती चली आ रही है तो ऐसे में वह खुद भी अवमानना की दोषी क्यों नहीं सिद्ध हो सकती। साक्ष्य के रूप में हाईकोर्ट लखनऊ में रिट याचिका संख्या 36 /एमबी/2012 पर नजरें इनायत की जा सकती हैं। बताते चलें कि इस रिट याचिका का निस्तारण हमारे विचार से अभिजीत रूप से समय की बर्बादी करते हुए किया गया जिसका निस्तारण वर्ष 2012 में ही उसी समय किया जाना चाहिए था उसे बेवजह भूमाफिया को लाभ पहुंचाने के नजरिए से अनावश्यक इतने वर्षों तक लंबित रखा गया अंततोगत्वा दिनांक 19 नो 2020 को बिना किसी दंड के बिना किसी पेनल्टी के याचिकाकर्ता को उसकी याचिका वापसी पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया के किए बिना बाइज्जत रिट याचिका वापसी का आदेश पारित कर दिया जबकि वहीं पर देखा जाए तो वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2020 तक कितना सरकारी धन सरकारी वकीलों की फीस के रूप में दिया गया कितना ज्यादा अदालत का कीमती समय बर्बाद किया गया इन सब को नजरअंदाज करते हुए संबंधित न्यायाधीशों ने बिना किसी पेनाल्टी के याचिकाकर्ता को बरी कर दिया जिस पर मैंने सोशल मीडिया पर खुली टिप्पणी की थी जिसके एवज में लखनऊ के एक विद्वान अधिवक्ता ने मुझे कॉल करके बताया कि आप ने अदालत की अवमानना की है । जब मैंने इस बारे में पूछा कि अवमानना किस विषय को लेकर की , तो उनका कहना था कि आप ने रिट याचिका का हवाला दिया है जिसके क्रम में माननीय न्यायालय की अवमानना हुई है । जब मैंने उनसे कहा इस रिट याचिका को न्यायाधीशों ने गलत ढंग से निस्तारित किया है।
    तब उनका कहना था कि जस्टिस रितु राज अवस्थी के पी०ए० ने उनको फोन करके बुलाया और कहा कि इस पोस्ट को डालने वाले व्यक्ति को समझाओ। वकील साहब की बातें सुनकर मुझे एक और हंसी भी आ रही थी तो दूसरी ओर संदे भी हो रहा था कि आखिर क्या वजह है कि जस्टिस ऋतुराज अवस्थी जी के पीए ने इस रिट याचिका के क्रम में विरोध स्वरूप लिखी गई पोस्ट का संज्ञान एक जस्टिस के पीए ने कैसे ले लिया और कैसे उन वकील साहब ने मुझे काल करके अमुक रिट याचिका के ऊपर जस्टिस का हवाला देते हुए बात की ? जस्टिस रितु राज अवस्थी साहब के पीए के द्वारा पोस्टकर्ता को समझाने के लिए क्यों कहा गया ??? जब मैंने वकील साहब से कहा कि यदि कोई न्यायाधीश गलत ढंग से किसी याचिका पर आदेश पारित करता है यदि स्टाइलिश करता है और ऐसे में यदि शिकायतकर्ता या अमुक लेखक अपना कोई विरोध दर्ज कराता है तो इसमें न्यायालय की अवमानना कहां से होती दिखाई दे रही है इस पर वकील साहब को कुछ रास ना आया और उन्होंने मुझे विरोध स्वरूप झट से ब्लॉक कर दिया…!!!
    मेरा कहने का आशय सिर्फ इतना है कि वर्तमान समय में न्याय के मंदिरों के हालात बद से बदतर हो चुके हैं जिनका वर्णन मैंने अपनी उक्त टिप्पणी में बखूबी कर दिया है । ये वर्णन साक्ष्यों के आधार पर आधारित है। हद तो तब पार हो जाती है जब वकील साहब ने जस्टिस ऋतुराज अवस्थी के अलावा पूर्व जस्टिस एस०एन० शुक्ला जी के बारे में भी अनाप-शनाप बहुत कुछ भला बुरा कहा भला तो नहीं कहा बुरा ही बुरा कहा वो भी ऑन रिकॉर्ड मौजूद है।
    जी हां पुख्ता तौर पर कुछ ऐसी हो गई है हमारी कानून-व्यवस्था जिसकी कल्पना शायद स्वप्न में भी नहीं की जा सकती थी किन्तु आज साक्षात देखने-सुनने को मिल रहा है। ऐसे हालातों में यह कहना मैं कतई भी गलत नहीं समझता कि …कथित न्यायपालिका कहीं न कहीं खुद भी अपनी अवहेलना करवाने की दोषी हो सकती है।

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