न्‍याय में घूसखोरी, पत्रकार को मिली हंगामी डायरी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के जिलों में चल रही है न्‍याय की दूकानें, टका-टका में बिक रहे हैं फैसले : जज, पुलिस, सीबीआई और नेताओं को दिये गये भुगतान का पोथन्‍ना है यह डायरी : यूपी के एक बड़े दबंग प्रॉपर्टी डीलर की डायरी दृष्‍टांत पत्रिका के सम्‍पादक के हाथ लगी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक धाकड़ पत्रकार को एक ऐसी डायरी मिल गयी है, जिसके हर पन्‍ने की हर लाइन पर दर्ज हर नाम पर हंगामा खड़ा हो सकता है। मामला है इस देश में न्‍याय की प्रक्रिया में जुटी विभिन्‍न विभागों की सारी मशीनरी को खरीदने-बेचने की कवायद का। यह डायरी है देश के राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक नामचीन प्रॉपर्टी डीलर और बिल्‍डर की। एक बड़ी विशाल पोथी नुमा इस डायरी के एक-आध, या दर्जन दो दर्जन अथवा सैकड़ों-हजारों नहीं, बल्कि हजारों पन्‍नों में दर्ज हर लाइन में ऐसे नापाक नामों पर हुई लेन-देन दारी का पूरा खुलासा है।

इस पत्रकार का नाम है अनूप गुप्‍ता। अपने आप में एक अनोखे प्रयासों से पत्रकारिता की मशाल सुलगाने में व्‍यस्‍त इस अलमस्‍त अनूप गुप्‍ता एक मासिक पत्रिका दृष्‍टांत का प्रकाशन कर रहे हैं, और प्रखर लाइव के नाम से डॉट कॉम भी संचालित करते हैं। हाल ही वे प्रखर पोस्‍ट नाम से एक साप्‍ताहिक अखबार भी प्रकाशित करने जा रहे हैं। अनूप का नाम अपने बेधड़क-बेलौस पत्रकारिता और खुलासा-पत्रकारिता से है।

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पत्रकार

आपको बता दें कि यह मामला उन विभागों-प्रकोष्‍ठों की करतूतों के समवेत षडयंत्र से सम्‍बद्ध है, जहां न्‍याय की खरीद-फरोख्‍त की कवायदें चलती हैं। इस साजिशों में न्‍यायपालिका के साथ ही साथ पुलिस, नेता, अफसर, सीबीआई और दीगर लोग भी शामिल हैं, और खूब रंगे हुए हैं। इस डायरी में इन लोगों के नाम के सामने दी गयी रकम, उसकी तारीख, और दिये गये भुगतान के ब्‍योरों तक की बारीक जानकारियां दर्ज हैं। यहां तक किस जज को कितना पैसा दिया गया, किस अफसर को गड्डी थमायी गयी, किस केस में अभियुक्‍तों की जमानत के लिए कितना पैसा जज या वकील को दिया गया, स्‍टे करने या कराने के लिए कितनी धनराशि दी गयी, सीबीआई के अफसरों को कितना-कितना ढेला थमाया गया, और पुलिस के किस अफसर को किस तारीख को किस काम के लिए थैली पहुंचा दी गयी। वगैरह-वगैरह।

सपा सरकार के मंत्री रहे और खनन माफिया गायत्री प्रजापति समेत तीन दुराचारी लोगों को जमानत देने का मामला हो, या फिर पॉक्‍सो जज ओपी मिश्र की बेहूदा जजगिरी का प्रकरण हो। चाहे यह जस्टिस एसएन शुक्‍ला के बेहद गम्‍भीर दुराचरण का मसला हो, या फिर बात-बात पर मोटी रकम उगाह कर फैसले देने या उसे पलट देने की कवायदें हों। सामान्‍य तौर पर यही माना जाता है कि ऐसी मामलों की जांच में बहुत ज्‍यादा वक्‍त होता है। इनका कोई सटीक कारण तो अब तक नहीं मिल पाया है, लेकिन चर्चाओं के अनुसार इसमें भारी लेनदेन की जलेबी खूब नाचती बतायी जाती है।

लेकिन ऐसे ज्‍यादातर मामला बिना किसी ठोस प्रमाण के छूट जाते हैं, और नतीजा यह कि अभियुक्‍तों को ससम्‍मान रिहाई मिल जाती है। लेकिन अनूप गुप्‍ता के हाथों लग गयी इस डायरी से ऐसा हो पाना शायद अब मुमकिन नहीं हो पायेगा। कारण यह कि अनूप इस डायरी के आधार पर अपनी पत्रिका में श्रंखलाबद्ध रिपोर्ट प्रकाशित करने जा रहे हैं।

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