नवेली अफसरों के तेवर तो वाकई सीमा से बाहर जाते दिखने लगे

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: केंद्रीयत सेवा में चुनी गयी महिला अफसरों ने अब पालने में ही रंग दिखाना शुरू कर दिया : कोई जेई के मसले पर हंगामा करती हैं, तो कोई जंगल में अमंगल मचाने पर आमादा : जिस अफसर पर नेताओं का प्रश्रय मिलता है, उसकी शोखियां बर्दाश्‍त से बाहर :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राष्‍ट्रीय सेवाओं में ऐसा कभी भी नहीं हुआ, जो अब हो रहा है। अदब और संस्‍कार तो दूर, यह नये-नवेले अफसर अपनी हदबंदी तक का अतिक्रमण करते दिख रहे हैं। खुलेआम। खासतौर पर महिला अफसर तो सारी सीमा ही तोड़ने पर आमादा हैं। इन नवेलियों में कोई हंगामा कर बैठती हैं, तो कोई बिना किसी तर्क के बवाल करने पर आमादा हो जाती हैं। कोई तो अपने कार्यक्षेत्र में आने वाले नागरिकों को अपनी रियाया समझने लगी हैं। जनता से बाकायदा बदतमीजी करना अपना अधिकार समझती हैं। सरेआम झिड़कना, हो-हल्‍ला करना उनकी आदत में शामिल होता जा रहा है। और तो और, कई तो ऐसी नवेलियां हैं, जो अपनी वरीय सेवाओं ही नहीं, अपने वरिष्‍ठ अधिकारियों से अभद्रता कर बैठती हैं।

आईएफएस यानी भारतीय वन सेवा की नयी अफसरों ने अपने प्रशिक्षण सत्र में जो भी हंगामा बरपाया है, उसने साबित कर दिया कि बिलकुल ताजा-ताजा अफसरी पाये इन अफसरों के तेवरों के संकेत भविष्‍य के लिए खतरनाक हो चुके हैं। चीजों को समझने की प्रक्रिया के दौरान समझने के बजाय केवल हंगामा खड़ा देना इन नयी अफसरों की फितरत साबित करता है, कि मामला कितना बिगड़ चुका है और भविष्‍य में कितना भयावह स्‍तर तक बिगड़ हो सकता है।

ऐसा भी नहीं है कि यह केवल केंद्रीयत सेवाओं तक ही सीमित हो, प्रान्‍तीय सेवाओं में भी यह संक्रमण खासा धंस चुका है। लेकिन चूंकि ऐसे प्रान्‍तीय सेवाओं की अफसर सीधे प्रशासनिक नियंत्रण के आधीन होती हैं, इसलिए उनसे बहुत ज्‍यादा बिगाड़-उखाड़ सकना मुमकिन नहीं हो पाता है। और जो ज्‍यादा बिगडैल हो जाती हैं, उन्‍हें स्‍वाभाविक तौर पर अपने महकमे के आला अफसरों का सीधा सम्‍बन्‍ध होता है। और कहने की जरूरत नहीं कि जब ऐसी नौबत आती है, तो फिर मामला बेकाबू हो जाता है। लखनऊ के मडि़यांव पुलिस थाने की महिला थाना प्रभारी तो हर सीमा को तोड़ चुकी थी। वजह थी पुलिस महकमे का एक एडीजी स्‍तर के अधिकारी का प्रश्रय।

कई महिला जिलाधिकारियों ने तो कई बार हद तक तोड़ दी थी। कोई ईंटें तोड़ कर इसलिए हंगामा करती है ताकि उनका कमीशन बढ़ जाए। कोई खुद को बादशाहानी समझती हैं, और इसी नशे में लखीमपुर खीरी के संरक्षित-सुरक्षित दुधवा जंगलों में कहर तोड़ने पर आमादा हो जाती है। हंगामा भी ऐसा, जो वन विभाग को हिला दे। कोई अपने गाल पर होती प्रशंसा पर खुश हो जाती हैं, लेकिन बाद में उसकी शिकायत पर हंगामा कर बैठती हैं। कुछ को तो केवल इलाहाबाद ही पसंद है, उसके लिए वह कुछ भी करने पर आमादा हो जाती हैं। वरिष्‍ठ अफसरों को अपनी जूती की नोंक पर रखने वाली ऐसी अफसर ऐसा-ऐसा नाटक-हंगामा करती हैं, कि प्रशासन तक हिल जाए।

कहने की जरूरत नहीं कि, यह हालत बताती है कि यूपी में प्रशासनिक ढांचे की ईंटें या तो बुरी तरह संक्रमित हो चुकी हैं, या फिर वे उखड़ने की नौबत तक पहुंच गयी हैं।

आइये, आपसे मुलाकात कराते हैं उन बेअंदाज महिला अफसरों से, जिन्‍होंने अपने रवैये से पूरे प्रशासन और सरकार को हिला दिया। यह श्रंखला-बद्ध रिपोर्ट है, जो कई अंकों तक चलेगा। रोजाना। आप उसे देखना-पढ़ना चाहें तो निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा :-

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