भाजपा ने नैतिकता बेच कर अनैतिकता खरीद ली, चार एमएलसी का इस्‍तीफा

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: अचरज की बात तो यह है कि यह दूकानदारी एक संन्‍यासी-योगी ने की : लखनऊ के सबसे बड़े जमीन-माफिया हैं बुक्‍कल नवाब, गोमती नदी तक बेच डाला था : यशवंत सिंह मायावती से बचने के लिए मुलायम के सामने गिड़गिड़ाते थे, जबकि उदय सिंह के आनंद से कनेक्‍शंस थे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राजनीति और दूकान में चलने वाली बेच-खरीद का धंधा कोई नया पैंतरा नहीं होता है। अतीत में ऐसी तमाम घटनाएं हैं, जहां असम्‍भव समझे जाने वाली काम बेहद आसान से निपटा लिये गये। ऐसी होने वाली डीलों में आदान भी हुआ और प्रदान भी खूब हुआ। कभी नकद, कभी अवसर, कभी भविष्‍य, तो कभी अपनी दबी हुई पूंछ को निकालने की कवायदें ऐसी चालों में खूब शामिल होती रही हैं। और ऐसा भी नहीं है, कि ऐसी डील हमेशा इसी तरह खामोश ही रही हों, कई मामलों में तो यह धंधे खुलेआम हुए, तो कभी अचानक धोखे से खोल दिये गये।

लेकिन बिहार के बाद यूपी में आज जो कुछ भी हुआ, वह राजनीति में एक बड़ा काला धब्‍बा ही माना जाएगा।

राजनीति का ताजा दांव-पलट यह है कि लखनऊ में चार विधान परिषद सदस्‍यों ने अपने पदों से इस्‍तीफा दे दिया है। इनमें एक तो बसपा के थे, जबकि बाकी तीनों एमएलसी समाजवादी पार्टी के पुराने कारिंदे रहे हैं, इनमें से कई तो विधानसभा और विधानपरिषद में भी कुर्सी हासिल कर चुके हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इन चारों इस्‍तीफे सीधे भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए हुए हैं। सच कहें तो इन चारों ने अपनी राजनीति में अपनी यह कुर्सियां केवल मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ, उप मुख्‍यमंत्री केशव मौर्य और डॉक्‍टर दिनेश शर्मा की सरकार में उनकी कुर्सियां बचाने की पेशकश के तौर पर ही छोड़ी हैं।

लेकिन यह मामला केवल यहीं तक सीमित नहीं है। जाहिर है कि इस इस्‍तीफा का मतलब निर्मल-निर्दोष त्‍याग तो रंचमात्र है ही नहीं।

सच बात तो यह है कि इस बारे में पहला त्‍याग अगर किसी ने किया था, वह थे पुत्‍तू अवस्‍थी। बाराबंकी की हैदरगढ़ सीट से विधायक थे। लेकिन अचानक राजनाथ सिंह को विधानसभा में आना था, इसलिए बिना किसी शर्त के पुत्‍तू अवस्‍थी ने अपनी यह सीट राजनाथ सिंह के पक्ष में छोड़ दी। हालांकि बाद में पुत्‍तू पर यह आरोप लगते ही रहे कि उन्‍होंने राजनाथ सिंह से वाजिब कीमत हासिल की थी। लेकिन प्रत्‍यक्षत: ऐसा एक भी प्रमाण कभी भी सामने नहीं आया।

लेकिन इस मामले में असलियत पहले से ही अदा हो चुकी है। सच बात तो यह है कि इसके लिए हर एमएलसी अपनी कीमत चुका रहा है। खुद की खाल बचाने के लिए। बहुत दूर क्‍यों जाते हैं आप। बुक्‍कल नवाब को ही देखिये। यह आदमी गोमती नदी के लिए आरक्षित सिंचाई विभाग की जमीन में कई बीघों का घोटाला कर चुका है। कागजातों में हेरफेर करके बुक्‍कल ने 15 करोड़ रूपयों तक का गबन किया। उस जमीन को अपनी जमीन बताया, जबकि वह जमीन सिंचाई विभाग की थी। हाईकोर्ट भी इस मामले में मुख्‍यसचिव तक को लगाम कस चुका है। इतना ही नही, बुक्‍कल पर आरोप हैं कि उन्‍होंने वक्‍फ की कई बड़ी जमीनों पर कब्‍जा किया, और फिर उसे बेंच डाला।

लेकिन इससे भी अलग यह इसलिए सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण हो जाता है, क्‍योंकि इस पूरी खरीददारी मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की निगरानी में हुई। कहने की जरूरत नहीं कि योगी आदित्‍यनाथ धर्माधिकारी के तौर पर गोरक्षनाथ मंदिर के पीठाधीश्‍वर हैं।

इस्‍तीफा देने वालों में सपा के बड़े दिग्‍गज मधुकर जेटली और यशवंत सिंह के अलावा बसपा के जयवीर सिंह भी शामिल हैं। जयवीर सिंह की बेहद करीबी बसपा सुप्रीमो मायावती के भाई आनंद कुमार से है। सूत्र बताते हैं कि जयवीर सिंह का शिक्षा-जगत में खासा दखल है, और उनके धंधे में आनंद भी लम्‍बे समय तक जुड़े रह चुके हैं।

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