गुमनामी बाबा: नेताजी को लेकर बेशुमार गालियां

बिटिया खबर

: सत्‍य की पीठ पर छुरा बनाम विचार-विमर्श, शास्त्रार्थ और बहस : गुमनामी बाबा को नेताजी सुभाष मानने की होड़ तो है, लेकिन एक भी वजह नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा….! जय हिन्द। जैसे नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में रहे हैं जिनसे लम्‍बे समय तक युवा वर्ग प्रेरणा लेता रहा। उनका ‘जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया। सिंगापुर के टाउन हाल के सामने नेताजी ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया, तो मानो आसमान ही हड़बड़ा गया। सुभाष चंद्र बोस जलियांवाला बाग कांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
यह तो है एक जांबाज शख्सियत, जो सच और न्‍याय के लिए जीवन भी जूझता रही। ले‍किन आज नेता जी के वंशजों में वह दमखम रंचमात्र भी नहीं बचा। ऐसे लोग अब हकीकत जानने के बजाय श्‍वान-श्रंगाल यानी सियार की तरह हुक्का-हुआं करने की आदत पाले हैं। ऐसे लोग न तो सच बोलना चाहते हैं, और न ही सच का सामना करने का साहस ही उनमें है उनके पास न तो कोई सवाल उपजते हैं, और न ही वे सवालों काा समाधान ही करना चाहते हैं। दरअसल, उन्‍हें सवाल सहन ही नहीं होते। वे केवल मूर्खतापूर्ण कृत्‍य करते हैं और जीवन अंध-भक्‍त ही बने रहना चाहते हैं।
इसका एहसास मुझे जीवन में अक्‍सर होता रहा है। लेकिन ताजा घटना तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस वाली उस मूर्खतापूर्ण बमबारी की तरह गूंजीं। इस अफवाह में कहा गया था कि फैजाबाद में रहे गुमानामी बाबा ही दरअसल नेता जी सुभाषचंद्र बोस हैं। यह भी कहा गया कि वे अंग्रेजी हुकुमत के डर से वे फैजाबाद में छिपे रह कर अपना जीवन व्‍यतीत कर रहे हैं। ऐसा न करें, तो भारत सरकार और ब्रिटिश सरकार अपनी एक न जाने कौन सी संधि के तहत नेताजी को इंग्‍लैंड के हवाले कर उन्‍हें जेल में बंद कर देगी।
यह अपने आप में एक बेहद शर्मनाक बकवास है। खासतौर इसलिए कि ऐसे हमलावर लोगों में किसी भी विषय को जानने-समझने, मनन करने की कोई क्षमता न तो है, और न ही औकात है। और ना ही सत्य का सामना करने का साहस ही जुटा पाते हैं ऐसे लोग। वे केवल मूर्खतापूर्ण व्यवहार ही कर सकते हैं। ठीक उसी तरीके से जैसे इस्लाम के अनुयाइयों के दिल-दिमाग में पैगम्‍बर मोहम्मद साहब पर चर्चा करने की ही इजाजत नहीं होती। वे कभी बर्दाश्त करने का साहस नहीं करते। कुछ ठोस करने का साहस भी नहीं दिखा सकते। और कहने की जरूरत नहीं कि यह सारे के सारे लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपना आदर्श मानते हैं। वह नेताजी, जो साहस का पर्याय हुआ माना जाता था, और समाधानों को खोजने वाला शलाका-पुरूष कहलाता था।
हां, ऐसे अतिवादियों का सबसे बड़ा असलहा-हथियार उनकी गालियां हैं और बेशर्म गालियां। दोलत्‍ती डॉट कॉम ने कोई साल भर पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर उस जोरदार अफवाहों पर एक खबर लिखी थी। इस खबर का केंद्र फैजाबाद वाले उन बाबा संन्यासी का व्यवहार और उनको लेकर चल रहे चर्चाओं को लेकर था, जिसमें अंधभक्‍तों का कहना था कि यह गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस हैं और अंग्रेजी सरकार से छुपकर फैजाबाद में छुपे हुए। लेकिन ऐसे किसी भी अंधभक्त ने यह जानने की कोशिश नहीं। ऐसे किसी भी सवाल पर लोगों ने यह सोचने का साहस नहीं दिखाया कि अंग्रेजी सरकार के हुए अवसान के 37 साल बाद आखिर किसी व्यक्ति को अंग्रेजी सरकार से क्या खतरा हो सकता है। यह भी किसी ने नहीं सोचा कि इस पूरे दौरान भारतीय सरकार का ऐसे व्यक्ति से क्या लेना-देना होगा जो कृषकाय हो।
आपको बता दें सन 84 में गुमनामी बाबा मृत्यु हो गई थी। गुमनामी बाबा के करीबी लोगों और अपने अनुभव के आधार पर गुमनामी बाबा के बारे में थोड़ी बहुत राय रखने वाले फैजाबाद डिग्री कॉलेज के अंग्रेजी शिक्षक प्रोफेसर वीएन अरोड़ा से दोलत्‍ती संवाददाता से लंबी बातचीत हुई थी। इस पूरी बातचीत में प्रोफेसर अरोड़ा ने दोलत्‍ती के सामने अपना निष्कर्ष निकाला था कि उन्हें लगता है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। लेकिन उनका यह भी कहना था कि अगर वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे तो इस दुनिया के सबसे बड़े फ्राडिया यानी धोखेबाज या बहुरूपिया थे। हमने प्रोफेसर वीएन अरोड़ा से हुई इस बातचीत को यूट्यूब पर लगाया था। प्रो अरोड़ा से हुई इस बातचीत वीडियो को दर्शकों ने खूब सराहा, लाइक किया, शेयर किया। लेकिन करीब 500 से ज्यादा लोग इस वीडियो को डिसलाइक कर गए। इतना ही नहीं, करीब इतने ही लोगों ने मुझे बेहिसाब गालियां दी,जो इस वीडियो के लिंक में आज भी दर्ज है।
मैंने उन्हें किसी भी तरीके की छेड़छाड़ नहीं की है। वजह यह कि मैं चाहता हूं कि लोगों को हमेशा पता चलता रहे कि सच-संधान में लगे लोगों को कितनी असहिष्णुता, उग्रता और हमलावर व्‍यवहार का सामना करना पड़ता है। उग्रता और असहिष्‍णुता का आलम यह है कि ऐसे अंधभक्‍त लोग किस तरह सच बोलने वालों को मां-बहन की गालियां देते हैं।
आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन है। मैं सुभाष चंद्र बोस के चरणों उनके स्मृतियों में अपना शीश जो झुकाता हूं, नमन कर रहा हूं। वजह यह कि मैं चाहता हूं कि जिस तरह सुभाष चंद्र बोस जी अन्याय के खिलाफ जीवन भर युद्ध करते रहे, उसी तरह मैंने और मेरे जैसे लोग भी उग्रता, असहिष्णुता और हमलावर लोगों का विरोध करते रहें। लेकिन मेरा विरोध हमलावर नहीं होता। हम किसी को भी गाली नहीं दे सकते। हम किसी सत्‍य की पीठ पर छुरा नहीं मार सकते। हमारे विरोध का स्थान विचार-विमर्श तक है, शास्त्रार्थ तक है, बहस तक है। और हम यही करते रहेंगे। आप केवल गालियां ही दे सकते हैं, आप केवल हमलावर ही बने रह सकते हैं, आप केवल असहिष्णुता को ही अपना इकलौता आवरण मान चुके हैं, तो आपको क्या कहा जाए। लेकिन इतना जरूर है कि आप चाहे कुछ भी हों, लेकिन नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कल्पना के असली सेनानी तो कतई नहीं हो सकते।

सुभाष चंद्र बोस बनाम गुमनामी बाबा से हुई बातचीत अगर आप देखना चाहे तो कृपया नीचे लिंक पर क्लिक कीजिएगा

नेताजी सुभाष चंद्र बोस बनाम गुमनामी बाबा  

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