अमृत विचार: सिर्फ एक नाम सच्चा शम्भूदयाल, बाकी सब झुट्ठे

दोलत्ती बिटिया खबर

: अखबार प्रबंधन की कलई खुलने पर संपादक बौखलाए : पत्रकारिता में अपने अनुभव का लिखा चिट्ठा : 

दोलत्‍ती संवाददाता

बरेली : प्रिय गंभीर जी,
चार – पांच दिन से अमृत विचार आफिस को लेकर आपकी अनवरत अभियानी पोस्टें मेरी जानकारी में लायीं गयीं । पहले दिन लखनऊ से लौटते समय रास्ते से जानकारी मिलने पर मैंने तुम्हें फोन भी किया था ।
दूसरा कोई होता तो मैं जवाब भी देता । उसे कैसे , क्या कहूं जो छोटे भाई के रूप में मेरा स्नेह भाजन रहा है , जिसे दैनिक जागरण में पहली बार वेतन पर मैंने करवाया था। तुम अपनी सीमायें भूल सकते हो पर मैं अपनी संस्कार – मर्यादा से बंधा हूं और बंधा ही रहना चाहता हूं।
भले ही कुछ पत्रकार कहते हैं कि एक निहित एजेंडे के तहत तुम यह अभियान छेडे हो पर मेरा दिल इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा । कैसे मान लूं कि जिस गंभीर को मैं करीब 25 वर्ष से जानता हूं, जिसके जीवन के तमाम उतार – चढाव का साक्षी रहा हूं , जो मेरे विचार धारा – स्वभाव और घर – परिवार से भलीभांति परिचित है वह किसी के कहने पर ऐसा कर – खेल सकता है ? पत्रकारिता क्या है, जीवन क्या है और कर्मशीलता क्या है ? क्या मुझे अब अब तुमसे समझना पडेगा ? मैं 65 वर्ष का हो गया हूं और अभी भी किसी भी सहयोगी से अधिक परिश्रम करता हूं। तुम यह भी जानते हो कि मुझे अब नौकरी करने की जरूरत नहीं है, दोनों बेटे स्थापित हैं और इस अखबार की जिम्मेदारी लेने से पहले मैं घर में रह कर सिख इतिहास पर किताबें लिखने पर काम कर रहा था। स्वाध्याय और लेखन मेरा सर्वप्रिय जीवन आधार रहा है जिस सुख से अखबार की नौकरियों में संभव न होने से वंचित रहा और पुन. वंचित हो गया।
मैंने तुम्हें अमृत विचार ज्वाइन करने पर इसकी वजहें बतायीं थी – सुदीर्घ अखबारी अनुभव और सम्पर्क बेकार चले जाते । अखबार को खडा करने में इनका उपयोग करने पर बडी संख्या में पत्रकारों और गैर पत्रकारों रोजगार के अवसर मिलेंगे । यह इस लाइन के अपने अनुभव , सम्पर्क का सदुपयोग और समाज के प्रति छोटा सा सकारात्मक योगदान होगा , समाज सेवा होगी। तुम देख रहे होगे कि इस बीच बडे मीडिया घरानों में कितनी बडी संख्या में पत्रकारों की छटनी हुई है और अच्छे पत्रकार भी दस – दस हजार रुपये की नौकरी को भटक रहे हैं । कहीं अवसर ही नहीं है । अमृत विचार ने कितने पत्रकारों को जाड कर उन्हें आश्रय दिया है। स्वंय विचार करो कि पत्रकार हितैषी होना उन्हें आजीविका के अवसर उपलब्ध कराने में सहायक होना है या अखबार बंद कराना है?
एक बात और । दैनिक जागरण , पंजाब केसरी समेत कई अखबारों और जीन्यूज समेत आधा दर्जन टीवी चैनेलों में दो – दो दर्जन से अधिक लोग संक्रमित हुए , क्या बंद हुए ? उप्र में चार – पांच मंत्री , चीफ सेक्रेटरी का स्टाफ , मुख्य मंत्री के मीडिया सेल के लोग संक्रमित हुए , क्या लोक भवन बंद हुआ ? राज्यपाल के स्टाफ के प्रमुख चार – पांच लोग पाजिटव हुए , क्या राजभवन बंद हुआ?
तुम जानते हो कि मेरे भी पत्नी – बच्चे हैं । ढाई साल का पोता मेरे साथ ही घर में ज्यादा समय बिताता है, सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिश करने वाला छोटा बेटा भी तीन महीने से यहीं साथ है । फिर भी मैं नियमित रूप से आफिस बैठता हूं, लखनऊ और मुरादाबाद आफिस जाता हूं। अखबार के काम से दिल्ली भी। क्या मैं और मेरा परिवार कोरोना से परे है? ऐसा तो नहीं है कि मैं घर बैठता हूं और दूसरे साथी काम करते हों । तुम्हारी यह सूचनायें भी गलत हैं कि आफिस की वजह से लोग संक्रमित हुए। तीन महीने में आधा दर्जन से अधिक बार पूरा आफिस सैनिटाइज हो चुका है , सैनिटाइजर और साबुन की ब्यवस्था है । संपादकीय , विज्ञापन , प्रसार , आईटी वगैरह समेत 80 – 82 लोगोंं का स्टाफ आफिस बैठता है। प्रसार के अलावा सभी की जांच रिपोर्ट आ चुकी है। दो बार मैं सभी लोगों को टेस्ट के लिए मैंने ही भेजा था , किसी और ने नहीं । संक्रमित केवल विज्ञापन में एक , डिजिटल में तीन और संपादकीय में दस हुए हैं जिसमें आज रिपोर्ट में केके और फोटोग्राफर भी हैं , शेष सभी निगेटिव । तुमने अखबार के आफिस को कोरोना कारखाना तो लिख दिया , यह नहीं बताया कि बाकी सभी स्टाफ निगेटिव आया है।
वर्क फ्राम होम की सुविधा हमारे यहां भी है और कई लोग कर भी रहे हैं । लेकिन तुम्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए इसे रिपोर्टर , आईटी वाले , प्रसार वाले , एकाउंट वाले आदि ही ले सकते हैं। अखबार निकालना है तो डेस्क और पेजिनेशन के लोगों को आफिस आना पडेगा । वह काम घर से नहीं हो सकता । वही लोग आ भी रहे हैं और स्वेच्छा से । अखबार जितना मेरा है, उतना ही यहां काम करने हर साथी का । जांच में जिनकी रिपोर्ट निगेटिव आयी है , केवल वही आ रहे हैं। संक्रमित साथी स्वेच्छा से स्वास्थ्य विभाग के अस्पताल में गए थे । मैं और मेडिकल रिपोर्टर उनके सम्पर्क हैं और बेहतर सुविधायें उपलब्ध कराने को सजग हैं । रुहेलखंड मेडिकल कालेज के दरवाजे पहले भी खुले थे , अब तो छह लोग यहां शिफ्ट भी हो चुके हैं।
तुम मेरी जगह होते तो क्या करते ? अखबार का प्रकाशन बंद करा देते ?
शुभ कामनाएं
शंभू दयाल वाजपेयी

1 thought on “अमृत विचार: सिर्फ एक नाम सच्चा शम्भूदयाल, बाकी सब झुट्ठे

  1. वाजपेयी जी ने सही लिखा है। अखबार बन्द करना विकल्प नहीं है। वाजपेयी जी झूठ नहीं बोलते हैं यह मैं जानता हूँ क्योंकि उनके साथ करीब 12 साल तक काम किया हूं। यह भी सच है कि कोई भी सम्पादक अपने स्टाफ को बीमार नहीं देख सकता।

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