गुमनामी बाबा: जस्टिस सहाय ने किया लफड़ा खत्‍म

बिटिया खबर

: अंधभक्‍तों के पास सिर्फ मूर्खता ही भरी पड़ी है : केवल अफवाहों पर ही जिन्‍दा है नेताजी को लेकर कहानी :
दोलत्‍ती संवाददाता
लखनऊ : जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने फैसला कर लिया कि फैजाबाद के गुमनामी बाबा का नेताजी सुभाष चंद्र बोस से कोई लेना-देना नहीं था। इसके साथ ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस और गुमनामी बाबा को लेकर सारी अटकलें ही खत्‍म हो गयी हैं। लेकिन हैरत की बात है कि आज भी ऐसे लोगों की तादात काफी है, जो सुभाषचंद्र बोस नेता जी ही गुमनानी बाबा हैं। बावजूद इसके कि ऐसे अंधभक्‍तों के पास अपने इस अंध विश्‍वास का कोई भी आधार नहीं बचा है।
जन चर्चाओं के अनुसार अनुसार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही गुमनामी बाबा हैं। लेकिन जन चर्चा और सत्यता अलग अलग होती है, इसको मानने को तैयार नहीं हैं ऐसे अंधभक्‍त। कोई भी तर्क नहीं, केवल अंधविश्‍वास। लेकिन गुमनामी बाबा का पता करने के लिए गठित जस्टिस विष्‍णु सहाय आयोग ने इस मामले में दूध का दूध और पानी ही पानी साफ कर दिया है। जस्टिस सहाय ने कहा दिया है कि जन अस्‍थाओं में भले ही नेताजी जिन्‍दा हों, लेकिन यथार्थ तो यही है कि गुमनानी बाबा और सुभाषचंद्र बोस के बीच कोई भी साम्‍य नहीं है, जिससे यह पता चल पाये कि यह दोनों परस्‍पर एक ही व्‍यक्ति हैं।
जस्टिस विष्‍णु सहाय के मुताबिक नेताजी और गुमनामी बाबा अलग अलग शख्सियत है और उन्हें एक दूसरे से जोड़ना बेमानी है। लखनऊ हाई कोर्ट जस्टिस रहे विष्णु सहाय ने गुमनामी बाबा की असलियत को जगजाहिर कर दिया है। जांच के लिए बनाए गए आयोग का नतीजा साफ है। आयोग अध्यक्ष ने साफ कर दिया है गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस अलग अलग व्यक्ति हैं, एक दूसरे का पर्याय नहीं। इस जांच आयोग के नतीजों के बाद से बिल्कुल साफ हो गया है कि गुमनामी बाबा को लेकर चल रही चर्चाएं और जन्म स्थान मूर्खता निराधार थी।
आपको बता दें कि पहले लखनऊ में सन 78 तक एक व्यक्ति बड़े ही रहस्यमय ढंग से पहचाना जाता था लेकिन उसके बाद इस वृद्ध ने अपना डेरा फैजाबाद में डाल दिया। जल्दी इस व्यक्ति के बारे में यह मशहूर होने लगा गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस है जो अंग्रेजों से डरकर जहां-तहां छिपे बैठे हैं। वजह है अगर इसका खुलासा हो जाएगा कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस है तो अंग्रेजी सरकार उनको पकड़ कर इंग्लैंड ले जाएगी और यह और फिर उन्हें या तो जेल में डाल दिया जाएगा या फिर उन्हें मार डाला जाएगा। लेकिन ऐसी चर्चाएं क्यों पसरी यह तो बड़े आश्चर्य की बात है।
मुल्क की आजादी के बाद 35 साल बाद जब भारतवासियों का शासन चल रहा है ऐसी हालत में अपने ही किसी जन नेता को लेकर कोई मूर्खतापूर्ण फैसला सरकार क्यों करेगी जिसे वह खुद ही अपने सांसद में फंस जाए। लेकिन यह भी सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि अगर गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस है तो फिर उन्हें डर किस बात का है। वे खुले आमआम आम आदमी के साथ क्यों नहीं खड़े हुए। ऐसे ढेरों सवाल उछल रहे हैं लेकिन कोई भी अंधभक्‍त यह मानने को तैयार नहीं है कि सुभाषच्रदं जी अभी जीवित हैं भी या नहीं।
सरकार ने सन 2016 में गुमनामी बाबा की असलियत को खोजने के लिए एक जांच आयोग का गठन कर दिया था जिसके अध्यक्ष थे जस्टिस विष्णु सहाय आयोग। आयोग ने 3 साल बाद यह रिपोर्ट सरकार को सौंपी और विधानसभा के पिछले सत्र में पटल पर रख दी गई। दोलत्‍ती डॉट कॉम गुमनामी की जांच भी यह साबित हो चुका है कि गुमनानी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस परस्‍पर अलग-अलग व्‍यक्तित्‍व हैं।
खैर, इस विवाद से इतर एक सवाल तो जरूर उछलने ही लगा है कि आखिर विष्णु सहाय आयोग को गुमनामी बाबा के बारे में छानबीन करने के लिए 3 साल की जरूरत क्यों पड़ी।

सुभाष चंद्र बोस बनाम गुमनामी बाबा से हुई बातचीत अगर आप देखना चाहे तो कृपया क्लिक कीजिएगा

नेताजी सुभाष चंद्र बोस बनाम गुमनामी बाबा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *