एनडी तिवारी: उज्‍जवला और रोहित के घर में घुसने से रोक दिया था तिवारी ने

बिटिया खबर
: उनकी कुछ कृपापात्र महिलायें तो अपनी युवा लडकियों के साथ उनसे मिलने जातीं : कुमाऊं में भीडभाड में कभी-कभी उदंड लोग पीछे से उनकी धोती खींच देते : उत्‍तराखंड के गठन के विरोधी तिवारी ने ही उत्‍तरांचल का नामकरण किया :

शम्‍भूदयाल बाजपेई
बरेली :  वह 17 वर्ष की उम्र में स्‍वतंत्रता आंदोलन में जेल जाने वाले ऐसे किशोर थे जो जेल की एक ही कोठरी में अपने पिता साथ बंद रहे ।
गरीबी के चलते उन्‍हों ने हाई स्‍कूल और इंटर की बोर्ड परीक्षायें प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में उत्‍तीर्ण कीं ।
वह ऐसे और इतने पिछडे क्षेत्र के गांव में जन्‍में थे , जहां कई मील तक प्राइमरी स्‍कूल तक नहीं थे । आवागमन के साधन नहीं थे ।
आगे की पढाई के लिए वह घर से कुछ रुपये चुरा कर भाग कर इलाहाबाद गए । वहां ट्यूशन पढाते हुए एम.ए., एलएली किया । विश्‍व विद्यालय छात्र संघ के अध्‍यक्ष बने ।
अखिल भारतीय युवक कांग्रेस अध्‍यक्ष बने और 52 में चुनाव जीत कर सबसे कम उम्र के विधायक बने ।
बचपन में एक एक पैसे को तरसने वाले पहाड के ‘नरैण ‘ ने भारत का बजट बनाया। उप्र के चार बार मुख्‍य मंत्री , उत्तराखंड के मुख्‍य मंत्री और केन्‍द्र में वित्त , विदेश , उद्योग और श्रम मंत्री रहे ।
उन्‍हों ने प्राय: पूरी दुनिया घूमी । जिस देश में जाते वहां की विकास परक योजनाओं को समझते । वह अर्थ शास्‍त्र और योजना के मास्टर थे । आगामी पचास साल को लेकर योजनायें बनाते । पुल , सडकें, मिलें , कारखाने सर्वाधिक उन्‍हीं की देन हैं । वह सही अर्थ में विकास पुरुष थे । उनका मानना था कि आद्यौगिक समृद्धि के बिना जन सामान्‍य का जीवन स्‍तर ऊपर नहीं उठ सकता । वह देर रात तक अधिकारियों के साथ बैठक करते , छोटी छोटी बात पर भी ध्‍यान देते , बडा बडा से शातिर नौकर शाह भी उनकी गहरी समझ और बिषय में पकड के आगे पानी मांगता ।
वह सुदर्शन , शालीन , सहज , सरल और बहुत सहनशील थे । अधिकारी उन्‍हें पसंद करते थे । काशीपुर , हल्‍द्वानी और भीमताल में वह मंत्री – मुख्‍य मंत्री रहते हुए भी गाडी से उतर कर चाय वाले , ठेला – खोमची लगाने वालों से कुमाऊंनी में बात करने लगते । कुमाऊं में भीडभाड में कभी कभी उदंड लोग पीछे से उनकी धोती खींच देते , उन्‍हें भला – बुरा कह देते , लेकिन तिवारी जी के चेहरे पर सौम्‍यता बनी रहती , उनकी नाराजगी प्रकट नहीं होती ।
सुंदर महिलाओं के प्रति उनका सहज आकर्षण था । उनका साहचर्य उन्‍हें ऊर्जा देता था । महत्वाकांक्षी युवतियां उनकी नजदीकी चाहतीं । उनकी कुछ कृपा पात्र महिलायें तो अपनी युवा लडकियों के साथ उन से मिलने जातीं ।
वह पारिवारिक और नि‍जी रिश्‍ते बनाते । काम निकाल कर भूल जाने वाले नहीं । गांव – गांव और शहर -शहर में उनके नजदीकी लोग थे । तिवारी जी बीच – बीच उन्‍हें पोस्‍ट कार्ड पत्र भेज कर संवाद – संबंध बनाये रहते । कोई मिलने जाता तो उसके गांव -घर के लोगों का नाम लेकर हाल – चाल पूछते । बहुत लोग उनकी उंगली पकड कर यूपी – उत्तराखंड में राजनीति में आगे बढे , पैसे वाले बने ।
केन्‍द्रीय मंत्री रहते वह एक बार दिल्‍ली से किसी को बिना बताये गायब हो गए । तीसरे दिन पता चला कि वह दो युवतियों के साथ रामपुर में मोदी गेस्‍ट हाउस में हैं ।
उन्‍हें प्रधान मंत्री बनना था , लेकिन नियति चक्र कैसे अप्रत्याशित मोड लेता है कि सारी चमक , चातुर्य और अनुभव धरा रह जाता है । 91 के लोक सभा चुनाव में वह मात्र आठ सौ वोटों से हार गए । हल्‍द्वानी के अब्‍दुल मतीन सिद्दीकी के छोटे भाई ने बहेडी (बरेली) विधान सभा क्षेत्र में मुस्लिम वोट काट लिये । तिवारी जी के नजदीकी मुसि्लम भी कट गए । बाद में धर्म – जाति के नाम पर बह जाने का बहेेडी के लोगों को बडा अफसोस रहा । तिवारी जी को हराने वाले भाजपा के अनजान चेहरे बाजपुर के बलराज पासी उसके बाद राजनीतिक नेपथ्‍य में चले गए । कई चुनाव लडे , पर विधान सभा तक नहीं पहुंच पाये ।
उत्तराखंड में कांग्रेस को बहुमत मिला , प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष हरीश रावत का मुख्‍य मंत्री बनना तय था , लेकिन रात में कांग्रेस हाई कमान का निर्णय बदल गया । बिना किसी प्रयास और अनिच्छा से ही तिवारी जी मुख्‍य मंत्री पद के लिए नामित कर दिये गए । डा. इंदिरा हृदयेश की तिवारी जी के पक्ष में लाबिंग करने में मुख्‍य भूमिका रही । तिवारी जी के मुख्‍य मंत्री रहते वही सर्वाधिक ताकतवर मंत्री भी रही ।
महिला प्रेम ही तिवारी जी के पतन और परेशानी का कारण बना । युवा कांग्रेस के अध्‍यक्ष रहते तिवारी जी केन्‍द्रीय मंत्री प्रो. शेर सिंह के आवास जाते – आते थे । उनकी बेटी उज्‍जवला सिंह युवा काग्रेस की संयुक्‍त सचिव थी। दोनों के सम्‍पर्क-संबंध बने । उल्‍लवला विपिन प्रसाद शर्मा से शादी कर सिंह से शर्मा हो गयीं । तिवारी भी सुशीला तिवारी से विवाह बंधन में बंध चुके थे जो बाद में किंग जार्ज मे‍डिकल कालेज , लखनऊ में डाक्‍टर रहीं । तिवारी जी के उज्‍जवला शर्मा से संबंध जारी रहे । बाद में उज्‍जवला का पति से तलाक हो गया ।
उज्‍जवला ने शुरू में ही प्रयास किया कि तिवारी जी उसके बेटे रोहित को अपना पैतृक नाम दें । लेकिन तिवारी जी ने यह स्‍वीकार नहीं किया । उन्‍हें लगता था कि यह उज्‍जवला के पति की संतान है । तिवारी जी मंत्री – मुख्‍य मंत्री होते रहे और उज्‍जवला शर्मा उनसे पैसे लेती रहीं । वह बेटे को लेकर तिवारी के आवास जातीं । दबाव बढा तो बाद में तिवारी जी ने उज्‍जवला और उसके बेटे रोहित के आने पर रोक लगवा दी । लेकिन यह प्रभावी नहीं हो पायी ।
उज्‍जवला शर्मा देहरादून में मुख्‍य मंत्री आवास आतीं और सीधे तिवारी जी के बेड रूम तक जा धमकतीं । तिवारी जी के पुराने विश्‍वस्त नौकर उज्‍जवला शर्मा का रौद्र रूप देख दायें – बायें हो जाते । उज्‍जवला शर्मा का तब कितना दबदबा था यह एक घटना से समझा जा सकता है ।
मेरे मित्र बाजपुर के स्‍व. . पं. जनक राज शर्मा बीजेपी से कांग्रेस में आकर स्‍थापित होने को प्रयत्नशील थे । उन्‍होंने दिल्‍ली जाकर उज्‍जवला शर्मा को पकडा । दोनों साथ देहरादून आये , मुख्‍य मंत्री आवास में तिवारी जी के साथ लंच हुआ और बाहर निकले तो दर्जा राज्‍य मंत्री की लाल बत्ती लगी गाडी लेकर । वह राज्‍य गन्‍ना विकास परिषद के चेयरमैन बना दिये गए थे । यह बात मुझे जनक भाई ने ही बतायी थी ।
तिवारी जी को इसी कमजोरी के चलते हैदराबाद गर्वनर हाउस में योजनाबद्ध तरीके से फंसाया गया ।
देहरादून में उत्तराखंड वालों ने मुंह मोड लिया , रोहित तिवारी जी के जैविक पिता होने का मुकदमा जीत गया तो कुछ शांत जीवन बिताने के लिए अपने पुराने नौकरों के साथ लखनऊ शिफ्ट हो गए । मुलायम सिंह यादव ने अपने पुराने रिश्‍तों और तिवारी जी के उपकारों का पूरा सम्‍मान करते हुए बेटे मुख्‍य मंत्री अखिलेश से कह कर उन्‍हें सरकारी मकान और राज्‍य अतिथि का दर्जा दिलवाया । उज्‍जवला शर्मा बेटे रोहित को लेकर यहां धमक गयीं और तमाम शक्ति प्रदर्शन के बाद अंतत: तिवारी जी के पास पहुंचने में कामयाब हो गयीं । बीसों साल से साथ रहने वाले पुराने नौकर भाग गए या भगा दिये गए और बूढे कमजोर तिवारी जी असहाय हो गये । भाई – भतीजों से उन्‍हों ने शुरू से ही निश्चित दूरी बना रखी थी । अब वह केवल उज्‍जवला शर्मा और रोहित के सहारे थे । जो वे कहते वैसा उन्‍हें करना – चलना पडता । तिवारी जी की सम्‍पत्ति और राजनीतिक पहचान , जो जितनी रह गयी थी , का निमर्म देाहन होना था । मुलायम – अखिलेश , कांग्रेसी नेताओं से लेकर अमित शाह के दरबार तक ले जाना । बेबस तिवारी कर क्‍या सकते थे ? वह क्‍या चाहते हैं , उन्‍हें कया दर्द साल रहा है , यह देखने वाला उन्‍हें चाहने वालों की भीड में कोई नहीं था । इस दयनीय स्थिति ने उन्‍हें अंदर से और तोड दिया ।
अटल बिहारी वाजपेयी के बाद नारायण दत्त तिवारी का जाना एक बडा निर्वात है । दोनों ने भरपूर और सरस-समृद्ध जीवन जिया । दोनों ही ब्यक्ति से अधिक एक संस्‍था थेे । नियति का कैसा विचित्र विधान है , दोनों के अंतिम आठ-दस वर्ष बडे कष्‍ट मय रहे । दोनों ही भारतीय राजनीति के 60- 65 वर्षों तक केन्‍द्र – चेहरे रहे । दोनों ही जाति , सम्‍प्रदाय, भाई-भतीजा वाद और क्षेत्र वाद की संकुचित सीमाओं से ऊपर उठे सही अर्थों में राजनेता थे । उत्ताराखंड से ज्‍यादा तिवारी जी यूपी के नेता थे । उत्तराखंड में तो उनका जनाधार और आना-जाना नैनीताल और ऊधम सिंह नगर जिलों तक ही सीमित था । वह राज्‍य विभाजन के खिलाफ थे और कहा था कि उत्तराखंड राज्‍य उनकी लाश पर बनेगा । राज्‍य का मुख्‍य मंत्री बनने पर उन्‍होंने उत्तराखंड का नाम ‘उत्तरांचल’ किया

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