: जर्नलिज्म में भूखों मरने से बेहतर होता है रेस्टोरेंट खोल कर दूसरों का पेट भरना : पत्रकारिता में अब सिर्फ या तो दर्दनाक भुखमरी पसरी है, या फिर विशुद्ध दलाली : मेधा और क्षमता का बेहतर इस्तेमाल तो होगा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जर्नलिज्म में क्या बचा है। पत्रकारिता में अब सिर्फ या तो दर्दनाक भुखमरी पसरी है, या फिर विशुद्ध दलाली। मूल्यों और आदर्शों की नाव पर चढ़ कर या तो भूखों मरते रहो और भविष्य के पांवों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारते रहो, और या फिर दलाली और झूठ की धारा पर तैरते हुए सब कुछ खोकर भी सब कुछ हासिल करने के थोथे सपनों को पकाते रहो । और अंत में चेहरे पर खुशी का मुखौटा पोत कर भीतर ही अपनी अन्तरात्मा को गलते-सड़ते देखते रहो। तो भइया, दलाली की चकाचौंध दुनिया में मैं खुद को नहीं खो देना चाहता। और न ही भूखे मरना चाहता हूं। भूखे मरने से बेहतर होता है रेस्टोरेंट खोल कर दूसरों का पेट भरना। इसीलिए मैंने अब स्वीट मार्ट और रेस्टोरेंट खोल लिया, जहां मेरी मेधा और क्षमता का बेहतर इस्तेमाल तो होगा। दलाली के धंधे से लाख दर्जा बेहतर है अपना व्यवसाय शुरू करना।
तो साहब, कौशलेंद्र विक्रम मौर्य ने अपनी जिन्दगी को एक नया खूबसूरत आयाम दे दिया है। करीब आठ बरस पुरानी पत्रकारिता की चकाचौंध को कौशलेंद्र ने अलविदा बोल दिया। कौशलेंद्र के इस नए व्यवसाय का नाम है वक्रतुंड स्वीट एंड रेस्टोरेंट। सीतापुर रोड और हरदोई रोड को आपस में बाईपास से जोड़ने वाली सड़क पर आईआईएम रोड की चौड़ी सड़क सीतापुर रोड से आगे करीब आधा किलोमीटर बढ़ते हैं ही वक्रतुंड स्वीट्स एंड रेस्टोरेंट का बोर्ड दिख जाएगा। आपको सड़क के दाहिनी तरफ दिख जाएगा जबकि बायीं तरफ है अमन अस्पताल और बहुमंजिली पैराडाइज पॉम अट्टालिका।
बहराइच के जरवल रोड निवासी कौशलेंद्र की पढ़ाई-लिखाई नवोदय विद्यालय से हुई। उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय और फिर पत्रकारिता। इसके फौरन बाद वे लेखन में उतर पड़े और कई पत्रिकाओं में काम किया। कोई 5 साल तक पत्रिकारिता की लेकिन उसके बाद उन्होंने पाया पत्रकारिता के लिए तो जन्मे जरूर, लेकिन पूरी पवित्रता के साथ पत्रकारिता करने में पेट एक बड़ी बाधा है। बाजार की पत्रकारिता में पवित्रता अब न्यूनतम होती जा रही है। उन्होंने पाया कि कुछ चंद लोगों को छोड़ दिया जाए तो पत्रकारिता में लेशमात्र की भी पत्रकारिता नहीं बची।
कौशलेंद्र आखिर करते भी तो क्या करते। बोले कि वे पत्रिकारिता तो अपने जीवन में बनाए रखेंगे लेकिन आजीविका के लिए उन्हें कुछ दूसरा भी काम करना पड़ेगा। पत्रकारिता की नौकरी बेहद अस्थाई और न्यूनतम आय का जरिया है। अपमान और आत्मग्लानि का छौंका बहुत तेज महसूस होता है। कष्टप्रद जीवन है। कौशलेंद्र ने पत्रकारिता को आय का स्रोत का माध्यम नहीं माना और पहले तो कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया और फिर अभी मिठाई और रेस्टोरेंट।
18 अक्टूबर को कौशलेंद्र की इस नई दुकान का उद्घाटन हुआ। भारी भीड़ जुटी। कई पत्रकार भी मौजूद थे। लंबी बातचीत चली, सभी अपनी अपनी कहानी सुना रहे थे इसी बीच मैंने कौशलेंद्र से पूछ लिया:- अब तो तुम हलवाई हो गए हो, पत्रकारिता तर्पण कर दिया। अपनी पहचानी अदा में कौशलेंद्र मुस्कुराए:- सर, पत्रकारिता तो मेरे रग-रग में है और हमेशा रहेगी। लेकिन पेट में भी तो कुछ जाना चाहिए, या नहीं। फिर क्या था, गजब हंसी के बगूले उड़ने लगे।