#metoo: चेतन भगत नापसंद, लेकिन विनोद दुआ का अंदाज घटिया

बिटिया खबर
: आप अगर सही भी हैं तो भी उस वीडियो में कही बातें एक अहंकारी पुरुष जैसी : आप बचपन से ही पसंदीदा थे, ज़ायका जैसा पकाऊ प्रोग्राम भी आपकी वजह से देखती थी : मी टू के आरोप पर सफाई का वीडियो देखा …उससे बहुत निराश हुई हूँ :

अनीता मिश्रा
नई दिल्‍ली : प्रिय विनोद जी,
आप हमारे पसंदीदा पत्रकारों में से एक रहे हैं। ब्लैक एंड व्हाइट टी वी के समय से ही आपके प्रोग्राम , विश्लेषण इंटरव्यू बहुत अच्छे लगते थे। बचपन से बड़े होने तक आप हमेशा पसंद रहें हैं। यहां तक कि ज़ायका जैसा पकाऊ प्रोग्राम भी आपकी वजह से देखती थी।
फिर आपकी इज़्ज़त और ज्यादा बढ़ गई जब आप सत्ता के चाटुकार न बनकर पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए लगातार सरकार पर प्रहार करते रहे। बहुत गुमान रहा कि हमारा पसंदीदा जर्नलिस्ट आज तक वैसा ही है।
मगर आज आपका #मी टू के आरोप पर सफाई का वीडियो देखा …उससे बहुत निराश हुई हूँ। लगा नही कि ये वही विनोद जी हैं जिनका वायर वाला प्रोग्राम समय निकाल कर सुनती हूँ।
बात सही है कि मी टू में कई ग़लत इल्ज़ाम भी हो सकते हैं ( हुए भी है लोगों ने उनके ग़लत होने के सबूत भी दिए है)
इतने साल पहले जो भी आपने कहा था या नही कहा था आप उसके लिए सहजता से माफ़ी भी मांग सकते थे। अगर अतीत में आपके चुटकुले से किसी को ठेस लगी तो आप कह सकते थे कि आप सॉरी फील कर रहे हैं। लेकिन आप तो बहुत कमज़ोर और लिजलिजे तर्क दे रहे हैं। माफ कीजिये आपके अंदाज़ में ग़ुरूर है , एक फैसला सा है कि “आप ही” सही हैं। शायद आप सही साबित हों लेकिन हम आरोप लगाने वाले को महज आपके कहने से ग़लत कैसे मान लें जबकि अकबर साहेब की काफी लानत मलामत की है। आप पर कोई ऐसे गंभीर आरोप भी नही हैं। आप माफी मांग कर उस महिला से अपने बड़प्पन का मुज़ाहिरा कर सकते थे।
चेतन भगत मुझे एकदम पसंद नही लेकिन मुझे उनकी माफी मांग लेने वाला अंदाज़ अच्छा लगा। अगर हमारी वजह से किसी का दिल दुखा तो हम सॉरी तो बोल ही सकते है। इसमें क्या बिगड़ जाएगा। हमारे जैसे लोग जो आपको बहुत पसंद करते थे शायद और ज्यादा पसंद करने लगते। आरोप से आपका कद घटा है तो माफी से बढ़ जाता। आपने तो कमजोर तर्कों से ख़ुद को कमतर कर लिया।
आपसे ये उम्मीद बिल्कुल नही थी। आप अगर सही भी हैं तो भी उस वीडियो में कही बातें एक अहंकारी पुरुष जैसी हैं। सच में, आपने बहुत निराश किया है।
मैं एक बात उन तमाम लोगों से भी कहना चाहूंगी जो ऐसी बातों के लिए आवाज़ उठाते हैं कि हमारी सारी क्रांतियां, विरोध सिर्फ विपक्ष के लिए नही हैं। अगर आवाज़ सही – गलत के लिए है तो हर जगह बराबर होनी चाहिए। जिसे पसंद करते हैं उसकी बात आने पर उस व्यक्ति के साथ खड़े हो जाएं और जिसे नापसंद करते हैं उसकी बात होने पर आरोप लगाने वाले के साथ खड़े हो जाएं ये सही नही है।
विनोद आप और आपके सपोर्टर एक बार फिर आत्ममंथन करें और सोचें कि क्या इस तरह की प्रतिक्रिया आप पर जंचती है। अंधे सपोर्टर बेशक साथ देंगे पर हम जैसे चाहने वाले वाकई निराश हैं।

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