मैं द्रौपदी मुर्मू। लेकिन तुम कौन हो ?

बिटिया खबर

: 24 साल तक आईएएस के बाद राजनीति में कूदे यशवंत सिन्‍हा राष्‍ट्रपति चुनाव में चारोंखाने चित्‍त : आईएएस-गिरी से नेतागिरी यूपी में केवल पुनिया के बस। हरीश चंद्र, हरदेव सिंह, आरपी शुक्‍ला जैसे मुंह की खा गये : क्रास-वोटिंग में शिकार भी हुए, पारिवारिक लोगों पर भी गजब आरोप :

कुमार सौवीर

लखनऊ : तुम नेता हो, इसलिए अपनी औकात में ही रहो। तुम लाख चाहो, तो भी कभी आईएएस नहीं बन पाओगे। इतना ही नहीं, तुम अपनी यह दो-कौड़ी की नेतागिरी जिस दिन छोड़ोगे, तो उसी दिन हमेशा-हमेशा के लिए बर्बाद हो जाओगे। लेकिन मैं आईएएस अफसर हूं, लेकिन जब चाहूंगा तो यह आईएएस-गिरी को लात मार दूंगा और अगर नेता बनना चाहूंगा तो पूरा देश मुझे पलकों में बिठा लेगी। क्‍या समझे।
यह हैं वह शब्‍द जो एक आईएएस अफसर के, जिसने अपनी डीएम-गिरी में अपने सामने खड़े नेता को इतना शर्मसार कर दिया, कि वह खून के आंसू बहाते हुए मौके से अलग हट गया। लेकिन आज हालत यह है कि बाद में वही आईएएस अफसर अपनी नेता-गिरी चमकाने के लिए कोशिश तो खूब करता रहा। ऊंचे लगे अंगूरों को तोड़ने के लिए उसने छलांगें-कुलांचें भी खूब भरीं। लेकिन आखिरकार वह दो-कौड़ी का साबित हुआ। उसके साथी-संगी भी उसका साथ छोड़ गये, और वह अपनी उछालों के चलते अपने घुटने और कुहनियों के साथ ही अपने चेहरे को भी खूब लहू-लुहान करता रहा।
आईएएस अफसर से नेता बनने की छलांग लगाने वाले इस शख्‍स का नाम है यशवंत सिन्‍हा। सन-37 में जन्‍मे और खासे पढ़े यशवंत सन-60 में आईएएस बन गये। कुशल प्रशासक तो रहे हैं वे, लेकिन बिहार के एक नेता को जिस तरह उन्‍होंने सरेआम बुरी तरह झिड़क दिया था, उसकी खासी आलोचना हुई थी। फिर वे सन-84 में नेतागिरी में कूदे, और अब राष्‍ट्रपति चुनाव में मुंह की खा गये। लेकिन राष्‍ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के साथ जिस तरह उनकी जमकर छीछालेदर साबित हो गयी, उसने इतना तो साबित कर ही दिया कि आईएएस बन पाना भले ही किसी व्यक्ति के लिए मुमकिन हो सकता है लेकिन आईएएस बनकर नेता बनने की चुनौती लेकर उससे जीतना हर शख्‍स के लिए बलबूते की बात नहीं होती है। वे न केवल मुर्मू के सामने चारों-खाने चित्‍त हो गये, बल्कि उनके वोटों पर जिस तरह सेंध लगी, उससे उनके नेता बनने के सारे कीड़े हमेशा-हमेशा के लिए खत्‍म हो गये होंगे। अब तो यह तब नहीं पता चल रहा है कि उनके बेटे ने भी उनके पक्ष में वोट दिये भी थे या नहीं। अब वे भले ही कोई दावा करें या न करें लेकिन अब उन्होंने हमेशा-हमेशा के लिए राजनीति का सारा रास्ता पूरी तरह बंद कर लिया है।
दोलत्‍ती को जो जानकारी मिली, उसके हिसाब से आईएएस की नौकरी छोड़ कर राजनीति में कूदने वालों की केवल दो ही दिशा रही है। एक तो यह कि वे अपनी बेईमानी का ठप्‍पा का उछाल कर उसे राजनीतिक ऊंचाईं तक पहुंचाना चाहते थे। मसलन, ओम पाठक। ओम पाठक लखनऊ के डीएम थे, लेकिन सन-84 में उन्‍होंने राजनीति के लिए नौकरी से इस्‍तीफा दे दिया। लेकिन वे असफल हुए। हालांकि उन पर आरोप भी लगे थे कि अगर वे नौकरी ने छोड़ते तो उन पर अभियोग लग सकता था। इसके अलावा हरीश चंद्र ने भी एक राजनीतिक दल बना कर अपनी किस्‍मत चमकाने की असफल कोशिश की। पीसीएस के हरदेव सिंह और आरपी शुक्‍ला ने भी चापांकल के निशान वाली पार्टी में अपना भाग्‍योदय करने का फैसला किया, लेकिन वे असफल हुए। देश में ऐसे आईएएस अफसरों की तादात बहुत ज्‍यादा रही है, लेकिन फिलहाल केवल पीएल पुनिया ही इकलौते आईएएस अफसर माने जा सकते हैं, जो वाकई जमीनी नेता है और बाकायदा चुनाव जीत कर पद हासिल करते हैं।
मगर यशवंत सिन्हा ही यह महान-पराजय उनकी राजनीतिक दल के साथ गोटियां चलनने से भी अपशकुन हो गयी। खुद को वे नेता के बजाय राजनेता के तौर पर ही प्रस्‍तुत करते रहे हैं। कुल 24 बरस तक सरकारी नौकरी बजाने के बाद वे भारतीय जनता पार्टी के साथ गलबहियां करने लगे। भारत के पूर्व वित्त मंत्री रहने के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री भी बने, और फिर तृणमूल कांग्रेस के नेता रहे है | सन-1958 में उन्‍होंने राजनीति शास्त्र में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की, आईएएस बने। 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे कर जनता पार्टी में 1986 को राष्‍ट्रीय महासचिव बना कर राज्‍यसभा सन 1988 में उन्हें बनाया गया। चन्द्र शेखर के मंत्रिमंडल में नवंबर 1990 से जून 1991 तक वित्त मंत्री रहे। जून 1996 में वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। मार्च 1998 में उनको वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। उस दिन से लेकर 22 मई 2004 तक संसदीय चुनावों के बाद नई सरकार के गठन तक वे विदेश मंत्री रहे।
उन्होंने 2005 में फिर से संसद में प्रवेश किया। जून 2009 को उन्होंने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। मार्च 2021 को श्री सिन्हा ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर पुनः सक्रिय राजनीति में आये, जहां उन्‍हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। टीएमसी में शामिल होने का वजह बताते हुए श्री सिन्हा कहते है ”देश दोराहे पर खड़ा है। हम जिन मूल्यों पर भरोसा करते हैं, वे खतरे में हैं। न्यायपालिका समेत सभी संस्थानों को कमजोर किया जा रहा है। यह पूरे देश के लिए एक अहम लड़ाई है। यह कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है बल्कि लोकतंत्र बचाने की लड़ाई है।” फिर वे जुलाई 2002 तक वित्त मंत्री रहे। अपने कार्यकाल के दौरान सिन्हा को अपनी सरकार की कुछ प्रमुख नीतिगत पहलों को वापस लेने के लिए बाध्य होना पड़ा था जिसके लिए उनकी काफी आलोचना भी की गयी। फिर भी, सिन्हा को व्यापक रूप से कई प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है।

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