: अलीगंज हनुमान मंदिर के एक बर्खास्तशुदा पुजारी पर हमले से दहल गया मंदिर : एक बड़ी खबर को मामूली प्रेसनोट की तरह पेश कर दिया लखनऊ के पत्रकारों ने : बस पुलिस ने जो भी कहा, उसी को खबर बनाया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह किसी भुसैली, घसीटे या जुम्मन जैसे मामूली आदमी से जुड़ा मामला नहीं था कि जिसे बहुत आसानी से इग्नोर कर दिया जाता। लेकिन लखनऊ के पत्रकारों ने इस शख्स को कुछ इस तरह हाशिये पर घसीटा कि उस शख्स की हस्ती ही धूमिल हो गई। इतना ही नहीं, इस कृत्य ने राजधानी में आसन जमाये बैठे बड़े-बड़े सम्पादकों और नामचीन पत्रकारों की पत्रकारिता के चेहरे पर भी एक अमिट कालिख पोत डाली है।
आइये, हम आपको मिलाते हैं उस शख्स से। इनका नाम है अनिल तिवारी। चंद दिनों पहले चंद्रिका देवी मार्ग पर जिस पुजारी पर हमला हुआ, उसको लेकिन अनिल तिवारी चर्चाओं में आ गये हैं। लखनऊ के क्राइम रिपोर्टरों ने अपनी खबरों में अनिल तिवारी को लपेटा है। लेकिन इन क्राइम रिपोर्टरों को अब तक यह कत्तई भी एहसास नहीं है कि यह शख्स लखनऊ हाई कोर्ट का एक जाना-पहचाना नाम हैं, वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। और इतना ही नहीं, वह हाईकोर्ट यानी अवध बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इन्हीं अनिल तिवारी पर अलीगंज हनुमान मंदिर के एक पुजारी ने जानलेवा हमले का आरोप लगाया है। कुछ दिन पहले ही पुजारी अजय शंकर शुक्ला पर फायर करके घायल कर दिया गया था। प्राणघातक हो सकने वाली गोली उस पुजारी के कांधे पर धंस गयी थी। फिलहाल यह पुजारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती है।
अलीगंज हनुमान मंदिर के प्रशासक है अनिल तिवारी जिनका पूरा ब्योरा हम आपको पहले ही दे चुके हैं। सन 2011 को अनिल तिवारी को हाई कोर्ट के आदेश से इस मंदिर परिसर का प्रशासक नियुक्त कर दिया था। इसके साथ ही साथ पांच अन्य सदस्य भी इस मंदिर की प्रबंध समिति में थे। इसके साथ ही मंदिर में विवादों का एक नया दौर शुरू हो गया। जिसमें घोटाले प्रमुखत: उछलने लगे। समिति का पुनर्गठन हुआ और कई सदस्य लोग समिति से हटा दिये गये। पुजारी अजय शंकर शुक्ला भी इसी विवाद का एक अंग बन गये। प्रशासक अनिल तिवारी ने पुजारी को बर्खास्त कर दिया। लेकिन अजय शुक्ला मंदिर परिसर में बने अपने कमरे पर काबिज ही रहे। लेकिन इन दोनों में टकराव बहुत तेज बढ़ता ही रहा।
लेकिन यहां पर हमारी चिंता का विषय यह मंदिर नहीं, बल्कि उस घटना पर लिखी गई खबरों के तेवर पर है। इस घटना पर जो भी खबरें-सूचनाएं अखबारों में छपी या न्यूज चैनलों पर प्रसारित हुईं, वे केवल पुलिस के बयान तक ही सिमट कर रह गयीं। किसी भी अखबार या चैनल के क्राइम रिपोर्टर ने न तो इस मंदिर की महत्ता पर कोई जानकारी हासिल करने की कोशिश की, जिससे यह साबित हो जाता कि यह लखनऊ का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल अलीगंज हनुमान मंदिर का मामला है और जो अपने आप में विशाल जन समुदाय की आस्था से जुड़ा हुआ है और इस हिसाब से बेहद संवेदनशील भी है।
इतना ही नहीं, एक भी पत्रकार ने यह भी सुनने-समझने की कोशिश की कि अनिल तिवारी हैं क्या। वे मूलत: क्या हैं, क्या करते हैं और उनकी समाज में क्या रसूख या प्रतिष्ठा है। इन पत्रकारों ने अनिल तिवारी को एक सामान्य और मामूली शख्स के तौर पर मान लिया जो किसी सामान्य गोली चलाने वाले का आरोपी बताया जा रहा है। जाहिर है कि पत्रकारों ने इस बेहद संवेदनशील हादसे को एक निहायत घटिया और सामान्य घटना के तौर पर देखा तो जरूर, लेकिन इस घटना के मूल तथ्यों को पहचानने की जरूरत तक नहीं समझी।
कहने की जरूरत नहीं कि इस प्रवृत्ति ने लखनऊ के क्राइम रिपोर्टिंग की असलियत का खुलासा अपने आप ही हो जाता है जहां कोई भी सूचना केवल पुलिस वर्जन तक ही सीमित कर दी जाती है, और केवल पुलिस के बयानों के आधार पर ही उसे खबर की तरह पेश किया जाता है। एक बार भी यह देखने की कोशिश नहीं की जाती है कि जो कुछ सुना और छापा जा रहा है उसके पीछे असलियत क्या है। जाहिर है यह प्रवृत्ति के चलते समाचार-संस्थान खुद को खबरों की पोटली नहीं, बल्कि उनके अखबारों और समाचार चैनलों के पुलिसपरस्त नजरिया का ही प्रतीक है जहां केवल पुलिस साक्षात भगवान और उसकी जुबान से निकले कोई भी शब्द साक्षात ब्रह्म और ब्रह्मसत्य होते हैं।
असलियत में ऐसी खबरें तो खबर के नाम पर कलंक ही बनती है।
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आस्था की ड्योढ़ी पर रक्त-तिलक