नहीं साहब। यह फोटो नहीं, अफवाहों का पिटारा है

मेरा कोना

: कोई भी कट्टर धार्मिक व्‍यक्ति इबादत के दौरान जूते नहीं पहनता : सवाल यह है कि अगर यह फोटो सच ही है, तो फिर नमाजियों ने अपने चेहरे पर रूमाल क्‍यों बांध रखा : बेहतर है कि हम ऐसी साजिशों को खारिज करें और उनका पर्दाफाश करें:

कुमार सौवीर

लखनऊ : अपनी बात कहने से पहले आप इतना जरूर समझ लीजिए कि मैं किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता का हिमायत नहीं कर सकता। धर्म की जो व्‍याख्‍या इस वक्‍त की जा रही  है या  समझायी जा रही है, मैं उसके सख्‍त खिलाफ हूं। मैं सनातनी हूं और कुदरत के सनातन धर्म पर अटल विश्‍वास रखता हूं। किसी व्‍यक्ति के बनाये धर्म पर मेरा तनिक भी यकीन नहीं, मेरा साफ मानना है कि जब किसी को कुदरत पर यकीन नहीं होता, तो वह अपने लाभ के लिए ऐसे-वैसे धर्म-नुमा व्‍याख्‍यान देना, बनाना शुरू कर देता है।

आप चाहें तो मुझे काफिर कह दीजिए, मुझे आपकी गालियों की तनिक भी चिन्‍ता नहीं। मैं नहीं डरता अपने ऐसे विरोधियों से।

मैं सख्‍त विरोधी हूं, उन लोगों का, जो धर्म को लेक‍र अपनी रोटी सेंकते हैं। मुझे लगता है कि विभिन्‍न धार्मिक विचारधाराओं के बीच होते टकराव को हम केवल समझदारी से ही खत्‍म सकते हैं। इसके लिए जरूरत इस बात की है कि धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन का धंधा तत्‍काल बंद किया जाए। सारा झगड़ा-टंटा इसी से शुरू होता है। जिसे जो भी धर्म-कर्मकाण्‍ड करना है, वह अपने घर में करे, बाहर या सड़क पर हर्गिज नहीं। अपने धर्म पर आस्‍था रखना आपका निजी मामला है, किसी को जबरिया थोपने या फिर उसे सुनाने की कोशिश भी मेरी नजर में साजिश है।

लेकिन सबसे जरूरी है कि इसके पहले यह तय किया जाए कि लोगबाग अफवाहों की साजिशों को तोड़ें।

मेरे पास आज एक फोटो पहुंची। इसमें एक सड़क पर नमाजियों की कतारें हैं। नमाज सिर झुकाये, अपने हाथ बांधे खड़े हैं। ले‍किन उन सभी नमाजी के हाथों में ढेले-पत्‍थर हैं।

पहली नजर में तो यह फोटो ऐसा संदेश देती है कि मुसलमान अब सीधे हिन्‍दुओं से दो-दो हाथ करने पर आमादा है। वह इतना हमलावर है कि नमाज के दौरान भी हिन्‍दुओं से निपटने -निपटाने की हरचंद कोशिश कर रहा है। इधर कुछ हुआ, उधर कोहराम मचा दिया जाएगा। फोटो बताती है कि आज के मुसलमान अब इंसानियत का सबसे बड़ा खतरा-शत्रु बन चुका है।

लेकिन यह झूठ है। सच तो यह है कि यह फोटो किसी सार्वजनिक नमाज का नजारा नहीं है। हर्गिज नहीं। दरअसल, यह एक शातिराना ट्रिक है, एक घटिया साजिश है, जिसे जानबूझ कर फ्रेम किया गया है। अब यह किस और किन लोगों ने यह साजिश बुनी है, वह बताने की जरूरत नहीं है। इसके लिए बाकायदा सांगठनिक ताकतें सक्रिय रहती हैं। कोई भी मुसलमान जूते पहन कर नमाज नहीं पढ़ता। खास तौर पर तब, जब कि वह पंक्ति यानी पांत अर्थात जमात में हो। सामूहिक उपासना में हो। इतना ही नहीं, हर नमाज नंगी जमीन पर नमाज नहीं पढ़ता, उसके लिए दरी, अंगौछा जैसा आसन-बिछावन अनिवार्य होता है। और फिर नमाज के लिए नीयत बांधने में ईंटा-पत्‍थर अवरोध है। हैरतनाक बात यह है कि अगर यह लोग नमाज पढ़ रहे हैं तो फिर अपना चेहरा क्‍यों ढांपे हुए हैं। किस बात का भय है इन्‍हें। हद है यार, हद।

लेकिन सच यह है कि ताली केवल एक हाथ से नहीं बजती। इसके लिए दोनों हाथों की जरूरत होती है।

मुसलमानों में भी ऐसी शातिराना साजिशें खूब उफनाती ही रहती हैं। आपको खूब याद होगा पांच साल पहले का मंजर, जब कोकराझार और बर्मा-म्‍यांमार में रोहिंग्‍या मुसलमानों पर हमारे हिन्‍दुस्‍तानी मुसलामान दहशतगर्दों ने क्‍या-क्‍या नहीं अफवाहें फैलायीं। अफ्रीका के तेल विस्‍फोट में मरे सैकड़ों लोगों की भुनी लाशें बर्मा और म्‍यांमार के माथे पर चस्‍पा कर दिया गया। हांगकांग और ताइवान में समुद्री हादसे के बाद किनारे लगीं लाशों को भी बर्मा का अंजाम बताया गया।

और हां, आखिरी बात और है। आप याद कीजिए कि बर्मा में हुआ दंगे से हमारे देश के मुसलमान इतना क्‍यों गुस्‍से में आ गये, कि मुम्‍बई की शहीद सैनिकों के पुनीत स्‍थल को तोड़ दिया। लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, आगरा, समेत यूपी ही नहीं, देश में हंगामा किया गया और इसका फतवा सीधे मस्जिद से किया गया। लखनऊ में लक्ष्‍मण टीला वाली मस्जिद से जुम्‍मा की नमाज के बाद हजारों मुसलमान सड़क पर उतरे। तलवार, बरछी, खुखरी से लैस। राहगीरों  को पीटा गया और चुन चुन कर हिन्‍दू औरतों-बच्चियों के कपड़े फाड़े गये।

खैर, हो हुआ सो हुआ। उस पर अब राख डालनी चाहिए। लेकिन कम से कम अब तो हम लोग सम्‍भल लें, समझ लें, संकल्‍प ले लें कि अब न हिन्‍दू बनेंगे न मुसलमान। सिर्फ इंसान बनेंगे।

ईद मुबारक हो मेरे दोस्‍त।

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