प्रेस-कांफ्रेंस में कप्‍तान से बोले पत्रकार जी, मै दारोगा की टांग तोड़ दूंगा

मेरा कोना

: कमाल की धाकड़ पत्रकारिता होती है हरदोई में : न अदब, न चलने का शऊर, न लिखने की तमीज, न बोलते का सलीका : खबर छानने-लिखने के लिए मुनीम रख रखा है पत्रकार ने : न इंच भर कागज, न कलम, लेकिन कमर से दीखता तमंचा जरूर लटका रहता है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कमर में उठंगा लाइसेंसी तमंचा, जिसे इसलिए ही टांगा गया है ताकि लोग लोग-बाग देख सकें कि यह साहब भी तमंचा रखते हैं। सारा कामधाम जब धौंस-पट्टी से हो जाए तो फिर कलम की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती। देर रात शराब खोरी, धूप चढ़ते तक खर्राटे लेना, उसके बाद नेताओं और अफसरों का चरण-चुम्‍बन। उसी बीच दलाली के लिए इधर जाना, उधर आना। शाम होते ही डग्‍गाबाजी शुरू, बोतल खुली, गालियां, मार-पीट। फिर सरेआम पिटाई से चूर होकर बिस्‍तर पर पुन:-शयन।

जरा सोचिये कि क्‍या इसी को पत्रकारिता कहते हैं। लेकिन लखनऊ से लेकर जयपुर, नोएडा, गाजियाबाद, रायपुर, बस्‍तर, बहराइच, इलाहाबाद और अब हरदोई आदि इलाकों तक निर्लज्‍ज पत्रकारों ने खुद को कूटने जाने में महारत हासिल की है। कई पत्रकारों ने अपनी सुरक्षा के लिए सरकारी सुरक्षाकर्मी तैनात करा लिया है। लेकिन जब साइत हो जाती है, तो फिर पिटाई का सूचकांक उछल ही जाता है। सिपाही भी तब तक धुत्‍त हो जाता है, फिर कौन पिटा-पिटाया, किसी को क्‍या पता।

हरदोई भी इसमें पीछे या अछूता नहीं है। आजकल के दौर वाली पत्रकारिता का डंका भी यहां खूब बजता है। कमाल की धाकड़ पत्रकारिता होती है हरदोई में, न अदब, न चलने का शऊर, न लिखने की तमीज और न बोलते का सलीका है ऐसे पत्रकारों में। खबर लिखने की हैसियत ही नहीं है इनमें। इसका इलाज भी खोज लिया गया है कि खबर छानने-लिखने के लिए मुनीम रख लिया जाए। न इंच भर कागज, न कलम, लेकिन कमर से दिखता भौकाली तमंचा जरूर लटका रहता है।

हैरत की बात है कि यह पत्रकार पहले तो सरजी, सरजी बोल कर मक्‍खनबाजी करते रहते हैं। लेकिन कुछ वक्‍त बाद ही अपना जलवा इतना भौकाली बना लेते हैं कि फिर किसी शातिर अपराधी की तरह पेश आते हैं। यह तक नहीं समझते कि सामने कौन है और वह किससे बात कर रहा है।

हरदोई में यही सब तो हुआ था। बस पलड़ा अचानक उल्‍टा पड़ गया।

हुआ यह कि एक जश्‍न के दौरान जी चैनल के पत्रकार आनन्‍द शुक्‍ला उर्फ मुन्‍ना ने शराब के नशे में जमकर हंगामा किया, पुलिस ने जब ऐतराज किया तो पत्रकार जी ने हंगामा खडा कर दिया। इतना ही नहीं, उन्‍होंने अपना लाइसेंसी रिवाल्‍वर निकाल कर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। पुलिस ने उनको दबोचा और सीधे थाने के हवालात में ठेल दिया। सुबह किसी भी तरह जमानत देकर वे बाहर निकले।

शाम को पुलिस कप्‍तान ने एक प्रेस-कांफ्रेंस बुलायी थी। मुन्‍ना जी भी वहां पहुंच गये और वहां पिछली रात हुई घटना के लिए दारोगा को जिम्‍मेदार ठहराते हुए तत्‍काल सस्‍पेंड करने की मांग की। इतना ही नहीं, मुन्‍ना जी ने कप्‍तान से तमक कर यहां तक बोल दिया कि अगर उस दारोगा को निलम्बित नहीं किया जाएगा, तो मैं उस दारोगा की टांग तोड़ दूंगा।

फिर क्‍या। हुआ वही, जो होना चाहिए था। मुन्‍ना जी के इस लहजे से आहत कप्‍तान ने घंटी बजायी और कोतवाली पुलिस को बुला कर मुन्‍ना जी पर एक मुकदमा दर्ज कराने का हुक्‍म दिया कि जश्‍न में शराब के नशे में मुन्‍ना ने अपनी लाइसेंसी रिवाल्‍वर का अवैधानिक किया था, इसलिए उस लाइसेंस का खारिज कर दिया।

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